Atmadharma magazine - Ank 098
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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मागशरः २४७८ः २७ः
आत्माना ज्ञानमात्रमां उछळती
अनंत शक्तिओ
श्री समयसार पृ. प०४ना. प्रश्न–उत्तर उपर पू. गुरुदेवश्रीनां प्रवचनो
(वीर सं. २४७प कारतक सुद ३)
आत्मामां ज्ञानादि अनंत धर्मो छे; तेने परद्रव्योथी अने परभावोथी भिन्न ओळखाववा माटे
आचार्यदेव ‘ज्ञानमात्र’ कहेता आव्या छे. त्यां ज्ञानलक्षण वडे अनंत धर्मवाळो आत्मा ज प्रसिद्ध थाय छे तेथी
ज्ञानमात्र आत्माने अनेकान्तपणुं छे–ए वात सिद्ध करी.
(जुओ, आत्मधर्म अंक ९७)
हवे आचार्यदेव ते अनंतधर्मवाळा आत्मानी केटलीक शक्तिोओनुं वर्णन करवा मांगे छे तेथी तेनी
भूमिकारूपे प्रथम शिष्यना मुखमां प्रश्न मूके छे अने तेनो उत्तर आपतां ‘ज्ञानमात्र आत्मामां अनंती शक्तिओ
ऊछळे छे’ एम सिद्ध करीने पछी ४७ शक्तिओनुं अद्भुत वर्णन करशे.
*
प्रश्नः– जेमां क्रम अने अक्रमे प्रवर्तता अनंत धर्मो छे एवा आत्माने ज्ञानमात्रपणुं कई रीते छे? शिष्य
अभेद आत्माने लक्षमां लेवा मागे छे तेथी एम पूछे छे के प्रभो! आत्मामां अनंत धर्मो होवा छतां तेने
ज्ञानमात्रपणुं कई रीते छे? शरीरादि परनो अने दया के हिंसादिक विकारी भावोनो तो आत्माना स्वभावमां
अभाव छे, आत्मामां पोताना अनंत धर्मो छे–एटलुं लक्षमां लईने शिष्य पूछे छे के पर्याय अपेक्षाए क्रमे
प्रवर्तता अने गुण अपेक्षाए एक साथे–अक्रमे प्रवर्तता एवा अनंत धर्मो आत्मामां होवा छतां आत्माने
ज्ञानमात्रपणुं कई रीते छे? एक ज्ञानमात्रभावमां अनंतधर्मो कई रीते समाई जाय छे?
उत्तरः– परस्पर भिन्न एवा अनंत धर्मोना समुदायरूपे परिणमेलो जे एक ज्ञप्तिमात्र भाव छे ते
आत्मा ज छे तेथी आत्माने ज्ञानमात्रपणुं छे; माटे ज्ञानमात्र एक भावमां आवी जती अनंत शक्तिओ
आत्मामां ऊछळे छे. अहीं आचार्यदेव अनंत धर्मोना परिणमनने ज्ञानमात्र भावना परिणमनमां समाडी
दईने, ज्ञान अने आत्माने अभेद वर्णवे छे.
आत्मामां अनंतगुणो छे, तेओ परस्पर भिन्न छे. जेम आत्मा कदी जडरूप थतो नथी तेम आत्मानो
ज्ञानगुण कदी दर्शनगुणरूपे थतो नथी, कोई पण गुण बीजा गुणरूपे थई जतो नथी. जेम एक द्रव्यमां बीजा
द्रव्यनो अभाव छे तेम एक द्रव्यना अनंत गुणोमांथी एक गुणमां बीजा गुणनो अभाव छे. आत्मद्रव्य तो
परथी त्रिकाळ स्वतंत्र छे अने तेना एकेक गुणो पण बीजा गुणथी स्वतंत्र छे. ए रीते अनंतगुणो परस्पर
भिन्न छे; गुण अपेक्षाए अनंतता अने द्रव्यपणे एकता–ए रीते अनेकांत पण आमां आवी गयो.
एक द्रव्य बीजा द्रव्यथी भिन्न; द्रव्यना अनंत गुणोमां दरेक गुण परस्पर भिन्न; तेम ज ते दरेक गुणनी
एकेक समयनी पर्याय पण भिन्न भिन्न स्वतंत्र छे. अनंतगुणोनी पर्यायो एक साथे छे पण तेमांथी कोई एक
गुणनी पर्यायने बीजा गुणनी पर्याय साथे एकता थती नथी, तेम ज एक ज गुणनी क्रमे थती अनंत पर्यायोमां
पण एक समयनी पर्याय पूर्व समयनी पर्यायरूप न थाय, तेम ज पछीनी पर्यायरूप पण न थाय.–ए रीते दरेक
गुणनी दरेक पर्याय स्वतंत्र छे. गुणो परस्पर भिन्न छे तेम पर्यायो पण परस्पर भिन्न छे. एक गुणने कारणे
बीजा गुणनी अवस्था थती नथी; पुरुषार्थगुणने कारणे ज्ञाननी अवस्था न थाय, ने ज्ञानने लीधे पुरुषार्थनी
अवस्था न थाय. पुरुषार्थनी अवस्था पुरुषार्थगुणथी थाय, ज्ञाननी अवस्था ज्ञानगुणथी थाय. दरेक गुणनी
अवस्थामां पोतानुं स्वतंत्र वीर्य छे, एटले दरेक पर्याय पोते पोताना सामर्थ्यथी ज पोतानी रचना करे छे.
अहो! पर्यायनुं कारण पर तो नहि, ने द्रव्य–गुण पण नहि, पर्याय पोते ज पोतानुं कारण छे. एक ज समयमां
पोते ज कारण अने कार्य छे, एटले खरेखर तो कारण–कार्यना भेद पाडवा ते व्यवहार छे. दरेक द्रव्य पोतापणे
सत्, दरेेक गुण पोतापणे सत् अने एकेक समयनी दरेक पर्याय पण पोतपोताना स्वरूपे