एक ज्ञानमात्र भावमां समाडी दीधा अने आत्मानुं ज्ञानमात्रपणुं ऊभुं राख्युं.–आटली स्पष्टता करीने हवे ते
ज्ञानमात्रभावमां आवी जती शक्तिओनुं वर्णन करशे.
अनंत गुणो होवाथी, एक गुणनी पर्याय थवानो वारो अनंतकाळे आवे! बधाय गुणोनुं परिणमन तो एक
साथे थाय छे, तेमां कांई क्रम नथी, पण तेनी पर्यायो एक पछी एक थाय छे, एक साथे बे अवस्था थती नथी.
अनंत गुणोनी अवस्था एक साथे छे पण एक गुणनी बे पर्यायो एक साथे थती नथी. जेम के श्रद्धागुणनी
पर्यायमां मिथ्यात्व वखते सम्यक्त्व न होय, सम्यक्त्व वखते मिथ्यात्व न होय; मतिज्ञान वखते केवळज्ञान न
होय, सिद्धदशा वखते संसारदशा न होय–ए रीते अवस्थामां क्रम छे अने ज्ञान, दर्शन, चारित्र, अस्तित्व,
प्रभुत्व वगेरे गुणो बधाय अक्रम छे.–आवा क्रम अने अक्रमरूप वर्तता अनंतधर्मो आत्मामां छे.
आत्मानो धर्म गण्यो छे, केम के ते पण आत्मानी पर्याय छे, ते विकारीपर्यायने एक समयपूरतो आत्मा धारी
राखे छे. अने अहीं शक्तिओना वर्णनमां तो अभेदद्रष्टिप्रधान वर्णन होवाथी बधी शुद्ध शक्तिओ ज लीधी छे,
विकारने आत्मानो धर्म गण्यो नथी.
नास्ति छे. गुणोने क्षेत्रभेद नथी पण लक्षणभेद छे–ए रीते अनेकांत छे. ज्ञान सिवायनी श्रद्धा वगेरे
अनंतशक्तिओ छे ते ज्ञानथी गुणभेदे भिन्न छे, पण ज्ञानमात्र आत्मामां तो बधी शक्तिओ अभेदपणे आवी
जाय छे. ज्ञान ज्ञानपणे छे ने श्रद्धापणे नथी, श्रद्धा श्रद्धापणे छे ने ज्ञानपणे नथी; एम दरेक गुण स्वपणे छे ने
बीजा गुणपणे नथी.–आवो गुणभेद होवा छतां वस्तुपणे आत्मा एकरूप छे. एकेक वस्तुमां अनंत अस्ति–
नास्ति उतरे छे. वस्तुना अनंत गुणोमांथी दरेक गुण बीजा अनंत गुणोरूपे नथी, एकनी अस्तिमां बीजा
अनंतनी नास्ति छे; ए ज प्रमाणे एकेक पर्यायमां पण पोतापणे अस्ति अने बीजा अनंत पर्यायोपणे नास्ति –
एवो अनेकांत छे. एक पर्यायना अनंत अविभागअंशोमांथी दरेक अविभागअंशमां पण ए ज प्रकारे अस्ति–
नास्तिरूप अनेकांत छे.
एम करतां करतां अनंता गुणो बधाय एक ज गुणरूप थई जाय, एटले एक गुण पोते ज आखुं द्रव्य थई जाय,
ने गुणनो अभाव थई जाय. गुण वगर द्रव्यनो ज अभाव थई जाय. ए ज प्रमाणे एकेक पर्याय अने पर्यायनो
नानामां नानो अंश पण जो पररूपे थाय तो छेवटे द्रव्यनो ज अभाव थई जाय. कोई पण पदार्थने ‘छे’ एम
कहेतां ज, ‘परपणे ते नथी’ एम जो न मानो तो ते वस्तुनुं अस्तित्व ज साबित नहि थाय.
सिवायना बीजा अनंत अंशोपणे ते नथी, एवुं तेनुं अनेकांतस्वरूप छे. बधुंय अनेकान्त छे एटले के जे छे ते
स्वपणे छे ने परपणे नथी,–आ सिद्धांत उपर तो आखी सृष्टिनुं चक्र चाली रह्युं छे.
क्रिया छे. आत्मा ज्ञप्तिमात्रभावरूपे छे अने ते ज्ञप्तिमात्रभावमां अनंती शक्तिओनुं परिणमन आवी जाय छे;
माटे ज्ञानमात्र आत्मामां अनंत शक्तिओ ऊछळे छे. पर्याय ज्यां अंतरमां अभेद थईने परिणमी, त्यां ते
ज्ञप्तिक्रियापणे आत्मा ज परिणम्यो छे तेथी ते आत्मा ज छे;