Atmadharma magazine - Ank 098
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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ः ३०ः आत्मधर्मः ९८
ने ते ज्ञप्तिक्रियामां अनंतधर्मोनुं भेगुं परिणमन होवाथी, अनंतधर्मवाळा आत्माने ज्ञानमात्रपणुं ज छे.
ज्ञानमात्रभावमां ज अनंतशक्तिओ ऊछळी रही छे–परिणमी रही छे. अनंती सहभावी शक्तिओ वगर एकलुं
ज्ञान रही शकतुं नथी.
अनंती शक्तिथी ऊछळतो भगवान आत्मा कई रीते जणाय? ते वात आगळ कहेवाई गई छे के
ज्ञानलक्षणने अंतरमां वाळतां आत्मा लक्षमां आवे छे; ए सिवाय बीजा कोई उपाये आत्मा जणाय तेम नथी.
शरीरनी क्रियाथी के भक्ति–पूजा–उपवास वगेरे शुभ क्रियाकांडथी आवो आत्मा जणाय तेम नथी, पण ज्ञानने
अंतर्मुख करवारूप जे जाणनक्रिया छे ते ज आत्माने जाणवा माटेनी क्रिया छे. ए सिवाय बीजा लाख उपाय
करे,–लाखो–करोडो रूपिया दानमां खरचे, घणी जात्राओ करे, त्यागी थईने व्रतादि करी करीने सुकाई जाय–तो
पण ते कोई बाह्य उपायथी आ चैतन्यभगवान आत्मा दर्शन आपे तेवो नथी. अंदरमां नजर करतां ज न्याल
करी नांखे–एवो चैतन्यभगवान छे. केटला वर्षो पर सामे जोया करे तो स्वनी सामे जोवानुं थाय?–पर सामे
जोवाथी स्वनी सामे जोवानुं कदी थाय ज नहि. ज्ञानलक्षणने अंतरना लक्ष्य तरफ वळीने ज्यां चैतन्यमूर्ति
आत्माने लक्षमां लीधो त्यां ज्ञप्तिक्रिया थई, ते ज्ञप्तिक्रियामां अनंत गुणोनी निर्मळ परिणति भेगी ज ऊछळवा
लागी. रागना लक्षे के निमित्तना लक्षे शक्तिओ निर्मळपणे ऊछळती–परिणमती नथी. अहीं आचार्यदेव एकली
शक्तिओ ज नथी बतावता पण शक्तिओनुं निर्मळ परिणमन पण भेगुं ज लई ल्ये छे; ‘शक्तिओ ऊछळे छे’
एम कहीने शक्तिओने परिणमती बतावी छे.
द्रव्यनुं परिणमन थतां बधा गुणो परिणमे छे; मूळ द्रव्यनुं परिणमन थाय छे त्यां तेना बधा गुणो पण
परिणमी जाय छे, द्रव्यथी गुण कांई जुदा नथी. अनंत गुणोथी अभेद आत्मद्रव्यने लक्षमां लईने ज्यां साधक
जीव परिणम्यो त्यां तेना परिणमनमां अनंती शक्तिओ निर्मळपणे ऊछळवा लागी. अनंतशक्तिओ आत्मामां
अभेद थईने परिणमी तेने ज अहीं ‘ज्ञानमात्र भाव’ कह्यो छे.
आत्माना अनंत गुणोमां लक्षणभेद छे पण क्षेत्रभेद के काळभेद नथी. ज्ञानगुण मगजमां रहे ने
आनंदगुण हृदयमां रहे–एवा प्रकारनो भेद नथी. आत्माना असंख्य प्रदेशोमां ज एक साथे अनंत गुणो रहेलां
छे, गुणोनुं क्षेत्र भिन्न भिन्न नथी. अहीं तो एम ज कह्युं के आत्माना परिणमनमां अनंती शक्तिओ एक साथे
ज ऊछळे छे, बधी शक्तिओ एक साथे निर्मळपणे परिणमे छे. गुणना निर्मळ परिणमनमां ओछा–वधतापणुं छे
ते वात अहीं नथी लीधी. श्रद्धा गुणमां क्षायकसम्यक्त्वनुं परिणमन थई जाय छतां चारित्रगुणनी निर्मळता पूरी
न ऊघडे–एवा गुणभेदने अहीं मुख्य नथी कर्या. अभेद द्रव्य परिणमतां बधा गुणो निर्मळपणे परिणमे छे–एम
अहीं अभेदनी मुख्यताथी कह्युं छे. अभेदद्रव्यनी द्रष्टिथी साधकजीव परिणमे छे त्यां सम्यक्श्रद्धा–ज्ञाननी साथे
चारित्र वगेरे बधा गुणोनो अंश पण भेगो ज परिणमे छे. अहीं परिणमन कहेतां बधा निर्मळ परिणामो ज
लेवाना छे, विकारने तो आत्माथी जुदो पाडयो छे माटे विकारी परिणामोने आत्माना परिणमनमां लेवाना
नथी. अहीं तो द्रव्य–गुण अने निर्मळ परिणतिने अभेद करीने तेटलो ज आत्मा गण्यो छे, भेदने के विकारने
आत्मा नथी गण्यो, तेने तो ज्ञानलक्षणना बळे आत्माथी जुदा पाडी दीधा छे.
सम्यग्दर्शन थतां बधा गुणो एक साथे पूरा खीली जता नथी एटले गुणभेद छे; परंतु वस्तुपणे बधा
गुणो अभेद छे तेथी बधा गुणोनो अंश तो एक साथे ऊघडी जाय छे. एक गुण तद्न शुद्ध थई जाय ने बीजा
गुणमां सर्वथा मलिनता रहे–अंशे पण निर्मळता न थाय तो तो गुणो सर्वथा भेदरूप थई जाय.–एम बनतुं
नथी अहीं तो कह्युं के ज्ञप्तिमात्रभावमां बधा गुणोनुं परिणमन एक साथे ज छे; निर्मळतामां हीनाधिकताना
भेद पडे ते वात गौण छे.
–ए रीते, अनंत शक्तिवाळा आत्माने ‘ज्ञानमात्र’ कहीने ओळखाव्यो; अने ते ज्ञानमात्रभावमां
अनंती शक्तिओ भेगी ज परिणमी रही छे एम बताव्युं. हवे आचार्यदेव तेमांनी ‘केटलीक’ शक्तिओनुं वर्णन
करे छे. केटलीक केम कीधी? कारण के, छद्मस्थजीव सामान्यपणे आत्मामां अनंत शक्तिओ छे–एम तो जाणी शके
परंतु विशेषपणे ते अनंती शक्तिओने भिन्न भिन्न जाणी न शके; तेम ज वाणीद्वारा पण अनंती शक्तिओनुं
वर्णन थई न शके, वाणीमां तो अमुक ज आवे;