Atmadharma magazine - Ank 099
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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पोषः २४७८ः पपः
उपादेय छे–एवी निर्विकल्प श्रद्धा–ते निश्चयसम्यक्त्व छे. ते सम्यक्त्वपरिणामनुं बाह्य सहकारी कारण जिनसूत्र
छे. वीतराग–सर्वज्ञदेवना मुखकमळमांथी नीकळेली अने समस्त पदार्थोनुं स्वरूप कहेवामां समर्थ एवी वाणी ते
सम्यक्त्वपरिणामनुं बाह्य निमित्त छे.–पण ते वाणी कोनी पासेथी सांभळेली होवी जोईए?–ज्ञानी पासेथी ज
ते वाणी सांभळेली होवी जोईए, ते बताववा माटे अहीं अंतरंगनिमित्तनी खास वात मूकी छे के जे मुमुक्षुओ
छे एवा धर्मी जीवो पण उपचारथी पदार्थनिर्णयना हेतु होवाने लीधे सम्यक्त्वना अंतरंगनिमित्त छे, केम के
तेमने दर्शनमोहना क्षयादिक छे. शास्त्र करतां धर्मी जीवनो आत्मा मुख्य निमित्त छे ते बताववा माटे अहीं तेमने
अंतरंगहेतु कह्या छे. सम्यग्दर्शनमां धर्मी जीवनी वाणी ते बाह्यनिमित्तकारण छे, अने सम्यग्दर्शनादिरूपे
परिणमेलो तेमनो आत्मा ते अंतरंगनिमित्तकारण छे.
शुद्ध आत्मस्वभावनी रुचिथी अपूर्व सम्यग्दर्शन प्रगट करनार जीवने एकली वीतरागनी वाणी ज
निमित्त नथी होती, परंतु सम्यग्दर्शन–ज्ञानादिरूपे परिणमेला धर्मी जीव पण निमित्तरूपे होय ज छे; तेथी
निमित्त तरीक ते अंतरंगहेतु छे. पण आ आत्मानी अपेक्षाए तो ते पण बाह्यकारण ज छे. वाणी करतां आत्मा
उपर वधारे वजन आपवा माटे ज तेने अंतरंगहेतु कह्या छे. सम्यक्त्वनुं खरुं (परमार्थ) अंतरंगकारण तो
पोतानो शुद्ध कारणपरमात्मा ज छे. तेनी अपेक्षाए तो ज्ञानी तेम ज वाणी ए बंने बाह्य हेतुओ छे.
सम्यक्त्वना परमार्थकारणनुं तो पूर्वे खूब वर्णन कर्युं, अत्यारे तो तेना निमित्तनी वात चाले छे; निमित्तमां
अंतरंग अने बाह्य एवा बे प्रकार कहीने अहीं ज्ञानीना आत्माने मुख्यहेतु तरीके बताव्यो छे.
अहीं अंतरंगहेतुओ तरीके ‘मुमुक्षुओ’ लीधा छे. केम के अत्यारे कहेनार तरीके साक्षात् केवळी भगवान
अहीं नथी; वीतरागनी वाणी अत्यारे तो मुमुक्षुओ एटले के चोथा–पांचमा–छठ्ठा गुणस्थाने वर्तता धर्मात्माओ
पासेथी मळे छे, तेथी उपचारथी ते मुमुक्षुओने अंतरंगहेतुओ कह्या छे. ते मुमुक्षुओने पोताने अंतरमां
दर्शनमोहना क्षय वगेरे वर्ते छे तेथी ते सम्यक्त्वना अंतरंगहेतु छे. जेने दर्शनमोह टळ्‌यो न होय एवो
मिथ्याद्रष्टि जीव सम्यक्त्वनुं निमित्त थाय नहि.
सामा ज्ञानी पण आ आत्माथी बाह्य छे तेथी ते उपचारथी हेतु छे; अने वाणी करतां तेमना आत्मानो
अभिप्राय ते मुख्य निमित्त छे एम बताववा तेने उपचारथी अंतरंगहेतु कह्या छे. धर्मी जीवनो अंर्तअभिप्राय
शुं छे ते समजीने पोते पोतामां तेवो अभिप्राय प्रगट करीने सम्यग्दर्शन पामे तेमां ज्ञानी अंतरंगनिमित्तकारण
छे. अने वाणी ते बाह्य कारण छे. आ बंने कारण व्यवहारथी ज छे. निश्चयकारण तो पोतानो शुद्ध
कारणपरमात्मा ज छे. तेना आश्रये सम्यग्दर्शन प्रगट करे त्यारे निमित्त केवुं होय ते अहीं ओळखाव्युं छे.
कोई जीव सम्यक्त्वमां मात्र बाह्यनिमित्तने (शास्त्रने) ज स्वीकारे ने अंतरंगनिमित्त तरीके ज्ञानीने न
स्वीकारे तो तेणे खरेखर सम्यक्त्वने ज जाण्युं नथी. सम्यक्त्वपणे परिणमीने जेमणे दर्शनमोहना क्षयादिक कर्या
छे एवा सम्यग्द्रष्टिने ज सम्यक्त्वना निमित्त तरीके न स्वीकारतां, जे जीव एकला शास्त्रथी के कोई पण
मिथ्याद्रष्टिना निमित्तथी पण सम्यग्दर्शन थई जवानुं माने तेने तो सम्यक्त्वना साचा निमित्तनुं पण भान
नथी. आ गाथामां सम्यक्त्वना अंतरंग तेम ज बाह्य बंने निमित्तोनुं यथार्थ स्वरूप बताव्युं छे.
जयवंत वर्तो! ते परम कल्याणकारी सम्यक्त्व,
अने तेना अंतर–बाह्य निमित्तो!
*
– सुधारो –
‘आत्मधर्म’ अंक ९८ पृ. ३३ कोलम २ लाईन १ मां “आत्माना
अस्तित्वमां ज्ञाननी नास्ति छे” एम छपायुं छे तेने बदले “शास्त्रना
अस्तित्वमां ज्ञाननी नास्ति छे” ए प्रमाणे सुधारीने वांचवुं.
*