Atmadharma magazine - Ank 099
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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ः प६ः आत्मधर्मः ९९
श्री नियमसारनी प३ मी गाथानुं
स्पष्टीकरण
*
श्री नियमसार शास्त्र आचार्यशिरोमणि भगवान कुंदकुंदाचार्यदेवे रच्युं छे अने तेना पर संस्कृत टीका
अध्यात्ममस्त महामुनिवर श्री पद्मप्रभमलधारिदेवे रची छे. अहींथी (सोनगढथी) श्री नियमसारनो गुजराती
अनुवाद प्रकाशित थयो छे. तेमां प३ मी गाथानो जे अर्थ करवामां आव्यो छे तेना विषे एक भाईए शंका व्यक्त
करी छे अने ते अर्थने विपरीत कह्यो छे. वस्तुतः तो प्रस्तुत अर्थ ज टीका साथे परिपूर्ण रीते बंधबेसतो अने
न्यायसंगत छे; छतां ते विषे शंका उपस्थित करवामां आवी होवाथी नीचे प्रमाणे स्पष्टीकरण करवुं उचित धारुं छुं.
मूळ गाथा, तेनी संस्कृत छाया अने संस्कृत टीका नीचे प्रमाणे छेः
सम्मत्तस्स णिमित्तं जिणसुत्तं तस्स जाणया पुरिसा।
अंतरहेऊ भणिदा दंसणमोहस्स खयपहुदी।।५३।।
सम्यक्त्वस्य निमित्तं जिनसूत्रं तस्य ज्ञायकाः पुरूषाः।
अन्तर्हेतवो भणिताः दर्शनमोहस्य क्षयप्रभृतेः।।५३।।
अस्य सम्यक्त्वपरिणामस्य बाह्यसहकारिकारणं वीतराग–सर्वज्ञमुखकमलविनिर्ग्गतसमस्तवस्तु–
प्रतिपादनसमर्थद्रव्यश्रुतमेव तत्त्वज्ञानमिति। ये मुमुक्षवः तेप्युपचारतः पदार्थनिर्णयहेतुत्वात् अंतरंगहेतव
इत्युक्ताः दर्शनमोहनीयकर्मक्षयप्रभृतेः सकाशादिति।
गाथा अने टीकानो अनुवाद नीचे प्रमाणे करवामां आव्यो छेः
[सम्यक्त्वस्य निमित्तं] सम्यक्त्वनुं निमित्त [जिनसूत्रं] जिनसूत्र छे; [तस्य ज्ञायकाः पुरुषाः]
जिनसूत्रना जाणनारा पुरुषोने [अन्तर्हेतवः] (सम्यक्त्वना) अंतरंग हेतुओ [भणिताः] कह्या छे,
[दर्शनमोहस्य क्षयप्रभृतेः] कारणके तेमने दर्शनमोहना क्षयादिक छे.
आ सम्यक्त्वपरिणामनुं बाह्य सहकारी कारण वीतराग–सर्वज्ञना मुखकमळमांथी नीकळेलुं समस्त
वस्तुना प्रतिपादनमां समर्थ एवुं द्रव्यश्रुतरूप तत्त्वज्ञान ज छे. जे मुमुक्षुओ छे तेमने पण उपचारथी पदार्थ–
निर्णयना हेतुपणाने लीधे (सम्यक्त्वपरिणामना अंतरंगहेतुओ कह्या छे, कारण के तेमने दर्शनमोहनीयकर्मना
क्षयादिक छे.
टीकाकार मुनिवरना अभिप्रायमां मूळ गाथानो शो अर्थ छे ते, गाथा अने टीका सरखावीने, आपणे
जोईएः–
‘सम्यक्त्वस्य निमित्तं जिनसूत्रं’ एटलो गाथानो जे भाग छे तेनी टीका ‘अस्य सम्यक्त्वपरिणामस्य
बाह्यसहकारिकारणं वीतरागसर्वज्ञमुखकमलविनिर्ग्गतसमस्तवस्तुप्रतिपादनसमर्थद्रव्यश्रुतमेव तत्त्वज्ञानमिति’
ए प्रमाणे छे; माटे टीकाना अर्थ साथे सरखावतां निःसंदेहपणे स्पष्ट थाय छे के गाथाना ते भागनो अर्थ
‘सम्यक्त्वनुं निमित्त जिनसूत्र छे’ एम ज थई शके.
‘तस्य ज्ञायकाः पुरुषाः अन्तर्हेतवो भणिताः दर्शनमोहस्य क्षयप्रभृतेः’ एटलो जे गाथानो भाग छे
तेनी टीका ‘ये मुमुक्षवः तेप्युपचारतः पदार्थनिर्णयहेतुत्वात् अंतरंगहेतव इत्युक्ताः दर्शनमोहनीयकर्मक्षयप्रभृतेः
सकाशादिति’ ए प्रमाणे छे; माटे गाथाना आ भागनो अर्थ आम ज थई शके के ‘जिनसूत्रना जाणनारा
पुरुषोने (सम्यक्त्वना) अंतरंगहेतुओ कह्या छे, कारण के तेमने दर्शनमोहना क्षयादिक छे.’
आ सिवाय बीजो कोई अर्थ टीका साथे संगत ज नथी.
गाथानुं विस्तृत रूप ते ज टीका अने टीकानुं संक्षिप्त रूप ते ज गाथा. गाथामां संक्षेपथी समायेला कसने
विकसाववामां आवे तो टीका बने अने टीकाना विस्तारने घट्ट बनावीने संक्षेपवामां आवे तो गाथा बने. आ