वर्णन छे. आ ज चैतन्यनी अविनाशी लक्ष्मी छे. आत्मामां बधी शक्तिओनुं एक साथे ज परिणमन थाय छे
पण अनेक शक्तिओ समजाववा माटे अहीं तेमनुं जुदुं जुदुं वर्णन कर्युं छे. रागादि भावो तो आत्माना त्रिकाळी
स्वरूपमां छे ज नहि; आत्मामां बहु बहु तो आवा अनंत गुणोनो गुणभेद छे; परंतु अभेद आत्मानी द्रष्टि
वगर एकला गुणभेदना लक्षथी पण आत्मा जणाय तेवो नथी.
अनंत गुणो एक साथे ऊछळे छे, ते ज आत्मा छे. आत्माना स्वभावमां शुं–शुं छे तेनी आ वात छे, आत्मामां
शुं–शुं नथी तेनी वात अत्यारे नथी; आत्मामां देहादिनी क्रिया नथी, राग नथी–तेनुं अत्यारे वर्णन नथी, पण
आत्मामां अनंतशक्तिओ अस्तिरूप छे तेनुं आ वर्णन छे. अनंत शक्तिरूप स्वभावनी अस्ति कहेतां तेनाथी
विरुद्ध एवा रागादिभावनी नास्ति तेमां आवी ज जाय छे.
अने जीवद्रव्य जुदां नथी; द्रव्य कांई जीवत्वशक्तिथी जुदुं नथी के जीवत्वशक्ति तेने टकावे. आत्मद्रव्यनो ज
चैतन्यस्वरूपे अनादिअनंत टकी रहेवानो स्वभाव छे, तेने अहीं जीवत्वशक्ति तरीके ओळखाव्यो छे. त्यार पछी
चितिशक्ति वर्णवीने आत्मानो चैतन्यस्वभाव बताव्यो.
छे. तेने अहीं आत्मानी प्रभुता ओळखावे छे. अरे जीव! तुं पामर नथी पण अनंतशक्तिमान परमेश्वर छो.
अत्यारे पण आत्मा पोते अनंतशक्तिथी भरेलो प्रभु छे, पण श्रद्धा अने ज्ञानरूपी आंख आडा पाटा बांधी
दीधा छे तेथी पोते पोतानी प्रभुताने देखतो नथी.
गयो नथी, क्षणिक विकार वखते पण कायमी स्वभावनो अभाव