Atmadharma magazine - Ank 099
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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ः प८ः आत्मधर्मः ९९
अनेकान्तमूर्ति भगवान आत्मानी
केटलीक शक्तिओ
(३)
* दशि शक्ति *
*
(वीर सं. २४७प कारतक सुद प)
ज्ञानमात्र आत्मस्वभावनी द्रष्टि करतां आत्मानी अनंत शक्तिओनुं निर्मळ परिणमन अभेदपणे थाय
छे, तेनुं आ वर्णन छे. अनंत शक्तिओमांथी अहीं केटलीक शक्तिओ वर्णवे छे, तेमां एकला द्रव्यस्वभावनुं ज
वर्णन छे. आ ज चैतन्यनी अविनाशी लक्ष्मी छे. आत्मामां बधी शक्तिओनुं एक साथे ज परिणमन थाय छे
पण अनेक शक्तिओ समजाववा माटे अहीं तेमनुं जुदुं जुदुं वर्णन कर्युं छे. रागादि भावो तो आत्माना त्रिकाळी
स्वरूपमां छे ज नहि; आत्मामां बहु बहु तो आवा अनंत गुणोनो गुणभेद छे; परंतु अभेद आत्मानी द्रष्टि
वगर एकला गुणभेदना लक्षथी पण आत्मा जणाय तेवो नथी.
आत्मा ज्ञानमूर्ति छे, तेना स्वभावमां शरीर नथी, कर्मो नथी, अने रागादि विकार पण नथी. पर्यायमां
विकार थाय तेने गौण करीने, जे एकलो ज्ञानमात्र द्रव्यस्वभाव छे तेनी द्रष्टिथी परिणमतां निर्मळ ज्ञानादि
अनंत गुणो एक साथे ऊछळे छे, ते ज आत्मा छे. आत्माना स्वभावमां शुं–शुं छे तेनी आ वात छे, आत्मामां
शुं–शुं नथी तेनी वात अत्यारे नथी; आत्मामां देहादिनी क्रिया नथी, राग नथी–तेनुं अत्यारे वर्णन नथी, पण
आत्मामां अनंतशक्तिओ अस्तिरूप छे तेनुं आ वर्णन छे. अनंत शक्तिरूप स्वभावनी अस्ति कहेतां तेनाथी
विरुद्ध एवा रागादिभावनी नास्ति तेमां आवी ज जाय छे.
सौथी पहेलां तो चैतन्यमात्र भावने धारण करनारी जीवत्वशक्तिनुं वर्णन कर्युं, ते जीवत्वशक्ति
जीवद्रव्यने टकावी राखवानुं कारण छे. अहीं तो भेदथी वर्णन करीने समजाव्युं छे, खरेखर कांई जीवत्वशक्ति
अने जीवद्रव्य जुदां नथी; द्रव्य कांई जीवत्वशक्तिथी जुदुं नथी के जीवत्वशक्ति तेने टकावे. आत्मद्रव्यनो ज
चैतन्यस्वरूपे अनादिअनंत टकी रहेवानो स्वभाव छे, तेने अहीं जीवत्वशक्ति तरीके ओळखाव्यो छे. त्यार पछी
चितिशक्ति वर्णवीने आत्मानो चैतन्यस्वभाव बताव्यो.
जुओ भाई! दरेकेदरेक आत्मानुं स्वरूप अहीं कहेवाय छे तेवुं ज छे. एकेक आत्मा पोतानी अनंत–
शक्तिनो धणी परमेश्वर छे; पण देह सामे नजर करीने त्यां ज पोतापणुं मानीने पोतानी प्रभुताने भूली रह्यो
छे. तेने अहीं आत्मानी प्रभुता ओळखावे छे. अरे जीव! तुं पामर नथी पण अनंतशक्तिमान परमेश्वर छो.
अत्यारे पण आत्मा पोते अनंतशक्तिथी भरेलो प्रभु छे, पण श्रद्धा अने ज्ञानरूपी आंख आडा पाटा बांधी
दीधा छे तेथी पोते पोतानी प्रभुताने देखतो नथी.
अनंत शक्तिनो पिंड चैतन्यमूर्ति आत्मा छे; तेनामां शरीर–मन–वाणी के कर्मो तो त्रणकाळमां कदी रह्या
ज नथी; पर्यायमां एक समयपूरतो विकार अनादिथी रह्यो छे, परंतु ते विकार कदी आत्माना स्वभावपणे थई
गयो नथी, क्षणिक विकार वखते पण कायमी स्वभावनो अभाव