थई गयो नथी. स्वभाव तो त्रिकाळ अनंत शक्तिनो पिंड एवो ने एवो छे. ते त्रिकाळ स्वभावनी प्रतीति
करतां परिणमनमां स्वरूपनो लाभ थाय छे. द्रव्य–गुण तो त्रिकाळ एवा ने एवा छे ज, पण तेनो स्वीकार
करतां ज पर्यायमां तेनो लाभ थाय छे एटले के निर्मळ परिणमन थाय छे. ते परिणमनमां अनंती शक्तिओ
एक साथे परिणमे छे तेनुं आ वर्णन चाले छे. जीवत्वशक्ति अने चितिशक्तिनुं वर्णन कर्युं. हवे त्रीजी
दशिशक्तिनुं वर्णन करे छेः
ज्ञानमात्रभावमां एक समयमां अनंती शक्तिओ भेगी छे, आगळ–पाछळ नथी.
दशिशक्ति छे.
भेदो छे. पदार्थोना विशेषो अथवा भेदोने लक्षमां न लेतां, तेमनी सामान्य सत्तामात्रनुं अवलोकन करे छे तेथी
दर्शन–उपयोग अनाकार छे. ‘आ अनाकार उपयोग छे’ एम जेणे लक्षमां लीधुं ते तो ज्ञान छे. स्व अने पर,
सामान्य अने विशेष बधुं सत् छे, ते सत्मात्रने दर्शन उपयोग देखे छे. ‘बधुं सत् छे’ एटले ‘सत्’ अपेक्षाए
पदार्थोमां जीव–अजीव इत्यादि भेद पडता नथी. आनो अर्थ एम न समजवो के दर्शनउपयोग जीव–अजीव
बधाने एकमेकपणे देखे छे. पदार्थोनी जेवी भिन्न भिन्न सत्ता छे तेवी ज दर्शनउपयोग देखे छे; परंतु ते सत्तामात्र
ज देखे छे एटले के ‘आ सत् छे’ एटलुं ज ते लक्षमां ल्ये छे; सत्मां ‘आ जीव छे ने आ अजीव छे, आ हेय छे
ने आ उपादेय छे’ एवा विशेष भेद पाडीने जाणवुं ते ज्ञाननुं कार्य छे. दर्शनने, ज्ञानने, आनंदने, बधा द्रव्य–
गुण–पर्यायने अने त्रणलोकना समस्त पदार्थोने विकल्प वगर दर्शनशक्ति देखे छे, पण तेमां ‘आ जीव छे, आ
ज्ञान छे’ एवा कोई भेद ते नथी पाडती. ‘आ जीव छे, आ अजीव छे, आ स्व छे, आ पर छे’ एम बधा
पदार्थोने भिन्न भिन्नपणे राग वगर ज्ञान जाणे छे. छद्मस्थने ज्ञान पहेलां दर्शनउपयोग होय छे, ने सर्वज्ञने
ज्ञाननी साथे ज दर्शनउपयोग होय छे. छद्मस्थने पण ज्ञान अने दर्शन बंनेनुं परिणमन तो एक साथे ज छे,
परिणमनमां कांई एवो क्रम नथी के पहेलां दर्शनशक्ति परिणमे अने पछी ज्ञानशक्ति परिणमे. शक्ति तो बधी
एक साथे ज परिणमे छे, मात्र उपयोगरूप वेपारमां तेने क्रम पडे छे.
छे–एम अहीं बताववुं छे. आत्मस्वभावना लक्षे जे ज्ञानमात्रभाव परिणम्यो ते ज्ञानमात्रभावमां रागादि
विकार ऊछळता नथी पण दर्शन वगेरे अनंती शक्तिओ ऊछळे छे. केवळी भगवानने पहेलां दर्शन अने पछी
ज्ञान थाय–ए मान्यता तो मिथ्या छे; परंतु छद्मस्थनेय पहेलां दर्शन परिणमे अने पछी ज्ञान परिणमे ए वात
काढी नाखी छे. ज्ञानमात्रभावमां आत्मानी बधी शक्तिओ एक साथे ऊछळी रही छे एटले ज्ञान अने दर्शनना
परिणमनमां समयभेद नथी.
आत्माना ज्ञान–दर्शन वगेरे खीलतां नथी, ने अंदर गुण–गुणी–भेदना विकल्पना आश्रये पण ज्ञान–दर्शन
वगेरे खीलता नथी; अभेद आत्मानी आश्रये ज बधी शक्तिओनुं परिणमन खीली जाय छे.