Atmadharma magazine - Ank 099
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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ः ६०ः आत्मधर्मः ९९
भगवान आत्मा एकेक समयमां पोतानी अनंती रिद्धिने साथे राखीने परिणमी रह्यो छे; पण पोते
पोतानी रिद्धिनो महिमा भूलीने परना महिमामां मोही पडयो छे. तेने आचार्यभगवान चैतन्यरिद्धि देखाडे छे के
अरे जीव! तारी अनंती रिद्धि तारामां ज भरी छे, माटे तारी रिद्धिने तुं बहारमां न शोध. तुं तारा आत्मानी
सामे जो तो तने तारी बेदह रिद्धि देखाय. बहारना जड पदार्थोमां तारा आत्मानी रिद्धि नथी, माटे बहारमां तो
न जो, अने तारामां पण अनंती शक्तिना भेद पाडीने न जो. केम के तारो आत्मा बधी शक्तिथी अभेदरूप छे,
तेमांथी एक शक्ति जुदी नथी पडती. एक शक्तिने जुदी पाडीने लक्षमां लेवा जतां रागनी उत्पत्ति थाय छे, पण
कांई वस्तुमांथी ते शक्ति जुदी पडती नथी. माटे अनंतशक्तिथी अभेदरूप आत्माने लक्षमां लेतां पोतानी
अनंती रिद्धि प्रतीतमां आवी जाय छे; तेनी प्रतीत थतां परनो महिमा टळी जाय छे, एनुं नाम प्रथम
सम्यग्दर्शनरूपी अपूर्व धर्म छे.
आत्मानी एक शक्तिमां बीजी अनंती शक्तिओ पण अभेद छे. तेमां एक दर्शनशक्ति छे, ते
अनाकारउपयोगमयी छे. बधा पदार्थो छे–एम बधाने सामान्यपणे देखवानी दर्शननी शक्ति छे, पण तेमांथी
कोईने आघापाछा करवानी तेनी शक्ति नथी. दर्शन बधा पदार्थोने सामान्यपणे देखे तेमां आत्मा पोते पण
भेगो ज छे, पण ‘आ हुं अने आ पर’ एवा भेद दर्शन नथी पाडतुं.
जगतना बधा पदार्थो सत्रूपे छे; जगतमां एक जीव ज सत् छे ने बीजुं बधुं भ्रम छे–एम नथी; जीव
छे.
आ दर्शनउपयोग सूक्ष्म छे, छद्मस्थ तेने पकडी न शके पण अनुमानथी जाणी शके. जे सम्यग्दर्शन अने
मिथ्यादर्शन कहेवाय छे ते आ दर्शनउपयोगना भेद नथी, ते तो श्रद्धानी पर्यायना प्रकारो छे. ‘सम्यग्दर्शनज्ञान–
चारित्राणि मोक्षमार्गः’ कह्युं छे तेमां आ दर्शनउपयोगनी वात नथी पण सम्यक्श्रद्धानी वात छे. दर्शनउपयोग तो
अज्ञानीने पण होय छे, ते कांई मुक्तिनुं कारण नथी. मोक्षनुं कारण तो शुद्धआत्मानी श्रद्धा–ज्ञान–रमणतारूप
शुद्धउपयोग छे. अहीं तो अनंतशक्तिवाळो आत्मा ओळखाववा माटे तेनी दर्शनशक्तिनुं वर्णन कर्युं छे.
जगतमां बधुं सत् छे तेने सामान्यपणे दर्शन देखे छे; तेम ज, जगतमां बधुं सत् होवा छतां तेमां एक
जीव ने बीजुं अजीव, एक सिद्ध ने बीजो निगोद, एक ज्ञानी ने बीजो अज्ञानी–एम जुदी जुदी विशेष सत्ता छे,
तेने जाणनार ज्ञानउपयोग छे. दर्शन अने ज्ञान बंने शक्ति आत्मामां अनादिअनंत छे.
सामान्य सत्ता तरीके बधुंय सत् छे. द्रव्य सत् छे, गुण सत् छे ने पर्यायो पण सत् छे. अने विशेषपणे
तेमां द्रव्यना जीव अने अजीव एवा बे भेद छे, जीवना गुणोमां श्रद्धा–ज्ञान–आनंद वगेरे भेदो छे, पर्यायमां
विकार अने निर्मळ एवा भेदो छे, क्षेत्रथी पण असंख्य प्रदेशोनो भेद छे ने काळथी पण भूत–वर्तमान–भावी
इत्यादिरूपे भेद छे. तेमां विशेष भेदोने लक्षमां न लेतां सामान्य सत्तामात्रने देखनारुं दर्शन छे ने विशेषपणे
जाणनारुं ज्ञान छे. आ बंने शक्तिओ आत्मामां एक साथे अनादिअनंत छे. तेमां दर्शनशक्तिमां सर्वदर्शीपणुं
प्रगटवानी ताकात भरी छे, ने ज्ञानशक्तिमां सर्वज्ञता प्रगटवानी ताकात भरी छे. आ शक्तिनी प्रतीत करतां
व्यक्तिनी प्रतीत पण थई जाय छे. आ त्रीजी शक्तिमां दशिशक्ति वर्णवी छे ते सामान्य शक्तिरूप छे, ने पछी
नवमी सर्वदर्शित्व शक्ति वर्णवीने आ शक्तिनुं पूरुं कार्य बतावशे.
धर्म केम थाय तेनी आ वात चाले छे. प्रथम तो धर्म कयां थाय? आत्मानो धर्म कयांय निमित्तमां थतो
नथी, देहमां थतो नथी ने शुभाशुभ विकारमां पण थतो नथी; आत्मानो धर्म तो आत्मानी निर्मळपर्यायमां थाय
छे.–पण ते धर्म केम थाय? ते धर्म कयांय बहारमां पर सामे जोवाथी न थाय, तेम ज पोतानी पर्याय सामे
जोवाथी पण न थाय, पण अनंतधर्मवाळा त्रिकाळी आत्मानी सन्मुख द्रष्टि करवाथी ज पर्यायमां धर्म थाय छे. ते
अनंतधर्मवाळा आत्मानी शक्तिओनुं आ वर्णन चाले छे.
आत्माना परिणमनमां अनंत शक्तिओ ऊछळे छे, पण जे रागादि थाय तेने अहीं चैतन्यमूर्ति
आत्माना परिणमनमां लीधा ज नथी केम के ते आत्मानो स्वभाव