अरे जीव! तारी अनंती रिद्धि तारामां ज भरी छे, माटे तारी रिद्धिने तुं बहारमां न शोध. तुं तारा आत्मानी
सामे जो तो तने तारी बेदह रिद्धि देखाय. बहारना जड पदार्थोमां तारा आत्मानी रिद्धि नथी, माटे बहारमां तो
न जो, अने तारामां पण अनंती शक्तिना भेद पाडीने न जो. केम के तारो आत्मा बधी शक्तिथी अभेदरूप छे,
तेमांथी एक शक्ति जुदी नथी पडती. एक शक्तिने जुदी पाडीने लक्षमां लेवा जतां रागनी उत्पत्ति थाय छे, पण
कांई वस्तुमांथी ते शक्ति जुदी पडती नथी. माटे अनंतशक्तिथी अभेदरूप आत्माने लक्षमां लेतां पोतानी
अनंती रिद्धि प्रतीतमां आवी जाय छे; तेनी प्रतीत थतां परनो महिमा टळी जाय छे, एनुं नाम प्रथम
सम्यग्दर्शनरूपी अपूर्व धर्म छे.
कोईने आघापाछा करवानी तेनी शक्ति नथी. दर्शन बधा पदार्थोने सामान्यपणे देखे तेमां आत्मा पोते पण
भेगो ज छे, पण ‘आ हुं अने आ पर’ एवा भेद दर्शन नथी पाडतुं.
शुद्धउपयोग छे. अहीं तो अनंतशक्तिवाळो आत्मा ओळखाववा माटे तेनी दर्शनशक्तिनुं वर्णन कर्युं छे.
तेने जाणनार ज्ञानउपयोग छे. दर्शन अने ज्ञान बंने शक्ति आत्मामां अनादिअनंत छे.
विकार अने निर्मळ एवा भेदो छे, क्षेत्रथी पण असंख्य प्रदेशोनो भेद छे ने काळथी पण भूत–वर्तमान–भावी
इत्यादिरूपे भेद छे. तेमां विशेष भेदोने लक्षमां न लेतां सामान्य सत्तामात्रने देखनारुं दर्शन छे ने विशेषपणे
जाणनारुं ज्ञान छे. आ बंने शक्तिओ आत्मामां एक साथे अनादिअनंत छे. तेमां दर्शनशक्तिमां सर्वदर्शीपणुं
प्रगटवानी ताकात भरी छे, ने ज्ञानशक्तिमां सर्वज्ञता प्रगटवानी ताकात भरी छे. आ शक्तिनी प्रतीत करतां
व्यक्तिनी प्रतीत पण थई जाय छे. आ त्रीजी शक्तिमां दशिशक्ति वर्णवी छे ते सामान्य शक्तिरूप छे, ने पछी
नवमी सर्वदर्शित्व शक्ति वर्णवीने आ शक्तिनुं पूरुं कार्य बतावशे.
छे.–पण ते धर्म केम थाय? ते धर्म कयांय बहारमां पर सामे जोवाथी न थाय, तेम ज पोतानी पर्याय सामे
जोवाथी पण न थाय, पण अनंतधर्मवाळा त्रिकाळी आत्मानी सन्मुख द्रष्टि करवाथी ज पर्यायमां धर्म थाय छे. ते
अनंतधर्मवाळा आत्मानी शक्तिओनुं आ वर्णन चाले छे.