नथी. आत्मानी अनंत शक्तिमां एक दशि शक्ति छे, तेनो स्वभाव ‘बधुं छे’ तेने देखवानो छे, पण कयांय
परमां पोतापणुं मानीने मोह करवानो के कांई फेरफार करवानो तेनो स्वभाव नथी. आवी शक्तिवाळा पोताना
आत्मानी प्रतीत करे तो स्वरूपनी सावधानी जागे अने मूर्च्छा टळी जाय. अनादिथी एकेक समयनो मोह छे ते
आत्मानुं भान करतां टळी जाय छे. त्रिकाळी अनंतशक्तिनो पिंड हुं छुं–एम ज्यां स्वीकार थयो त्यां एक
समयपूरतो मोह रही शके नहि.
विषयभूत आखो आत्मा पण प्रतीतमां आवी गयो. तेमां अनंतशक्तिओ अभेदपणे आवी जाय छे, पण
विशेषपणे समजाववा माटे गुणना लक्षणभेदथी ४७ शक्तिओनुं वर्णन कर्युं छे. आखा आत्मानी कबूलात वगर
तेनी एक शक्तिनी पण यथार्थ कबूलात थती नथी. एक दर्शनशक्तिए लोकालोकना सर्व पदार्थोने देखी लीधा
एटले एक शक्तिए सर्व शक्तिओने कबूली लीधी; तेथी एक दर्शनशक्तिनी प्रतीत करतां ‘अनंत गुणो छे’
एवी आत्मसामर्थ्यनी प्रतीत पण थई ज गई.
स्वरूप नथी’ एम भेद पाडीने ज्ञान जाणे छे. दर्शनशक्तिनी साथे ज आवी ज्ञानशक्ति पण परिणमे छे. ते
ज्ञाननुं ज कार्य स्व–परनो ने हेय–उपादेयनो विवेक करवानुं छे.
दरेक शक्तिनो आकार छे.
उत्तरः– दर्शनने अनाकार कह्युं छे ते तो तेनो विषय सामान्य सत्तामात्र ज छे ते अपेक्षाए कह्युं छे.
अपेक्षाए तेने ‘अनाकार’ कहेवामां आव्युं छे. ‘अनाकार’ कहेतां भेदनो अभाव समजवो, पण लंबाई–
पहोळाईरूप आकारनो अभाव न समजवो; लंबाई–पहोळाईरूप आकार तो दर्शनने पण छे. दरेकेदरेक गुण
आकारवाळो ज छे. जेवडो वस्तुनो आकार छे तेवडो ज तेना दरेक गुणनो आकार छे. वस्तुना बधा गुणनो
आकार एक सरखो होय छे, कोई गुणनो आकार नानो–मोटो नथी होतो. जड–चेतन वगेरेनो भेद पाडीने
देखतुं नथी माटे दर्शन अनाकार छे, पण जो पोताना असंख्य प्रदेशोरूप आकार तेने न होय तो तेनुं अस्तित्व
ज कयां रहे? असंख्यप्रदेशोरूपी चैतन्यमंदिरमां आत्मानी अनंतशक्तिओनुं वास्तु छे. एक सूक्ष्म रजकणथी
मांडीने सिद्ध भगवान, कोई पण पदार्थना द्रव्य–गुण के पर्याय आकार वगरना न होय; पछी भले आकार
नानो होय के मोटो, पण आकार वगरनुं तो कोईनुं अस्तित्व न ज होय. आत्मानी दर्शनशक्तिनुं क्षेत्र तो
असंख्यप्रदेशी ज छे पण तेनामां लोकालोकने देखी लेवानुं सामर्थ्य छे; आकार मर्यादित होवा छतां सामर्थ्य
अमर्यादित छे.
कयांय याद पण नथी कर्या, केम के तेनो तो आत्माना स्वभावमां अभाव छे. आवी शुद्धशक्तिना पिंडरूप
आत्माने प्रतीतमां लेतां ज बीजा बधानी रुचि खसी जाय छे, ने शक्तिओनुं निर्मळ परिणमन थई जाय छे–
एवी आ वात छे. सत्स्वभावी भगवान आत्मा अनंतशक्तिनो भंडार स्वयंसिद्ध छे; ते द्रव्य निरपेक्ष, तेनी
अनंती शक्तिओ पण निरपेक्ष अने तेनुं समय समयनुं परिणमन पण बीजाथी निरपेक्ष छे. रागने तो
आत्माना परिणमनमां गण्यो नथी. बधी शक्तिओना निर्मळ परिणमनथी ऊछळतो ज्ञानमात्र भाव ते ज
आत्मा छे. आवा आत्माने प्रतीतमां लईने साधक जीव परिणमे छे तेने अनंतगुणोमां पहेली अवस्था पलटीने
बीजी निर्मळ अवस्था