एक साथे थाय छे. आवा आत्मानी प्रतीत अने बहुमान सिवाय धर्मना नामे जे कांई करे ते बधुंय रणमां पोक
समान व्यर्थ छे. जेम निर्जन वनमां सिंहना पंजामां फसायेलुं हरणियुं गमे तेटला पोकार करे, पण ते कोण
सांभळे?–त्यां तेने बचावनार कोई नथी; तेम जीव मिथ्यात्वरूपी वनमां रहीने गमे तेटला क्रियाकांड करे पण
तेना पोकारने आत्मा सांभळे तेम नथी केम के आत्मानी तो तेने प्रतीत नथी. अनंतशक्तिसंपन्न
चैतन्यभगवान हुं ज छुं–एम पोताना आत्मानी प्रतीत करवी ते धर्मनो मूळ पायो छे.
शक्तिसंपन्न छे.’–पण जीवने तेनो विश्वास न बेठो, तेथी समवसरणमां तीर्थंकरभगवान पासे जईने पण एवो
ने एवो पाछो आव्यो. माटे अहीं आचार्यभगवान कहे छे के अहो! आत्मा चैतन्यभगवान छे, तेनी
अनंतशक्तिनो भंडार तेनामां ज भर्यो छे, तेनी प्रतीत करो......तेनो महिमा करीने तेमां अंतर्मुख थाओ. तमारा
कल्याणनुं क्षेत्र तमारामां ज छे, आत्माना गुणनुं क्षेत्र आत्माथी जुदुं न होय. आत्मानुं रहेठाण कयांय बहारमां
के विकारमां नथी. पण अनंतशक्तिनो चैतन्यपिंड आत्मा पोते ज पोतानुं रहेठाण छे.–तेनो विश्वास करीने तेनो
आश्रय करतां कल्याण प्रगटे छे.
अनंत ज्ञानी–आचार्योए बधा आत्माने पूर्णपणे जोया छे. तुं
पण पूर्ण छे, परमात्मा जेवो छे. ज्ञानीओ स्वभाव जोईने कहे
छे के तुं प्रभु छे, कारण के भूल अने अशुद्धता तारुं स्वरूप
नथी. अवस्थामां क्षणिक भूल छे तेने अमे गौण करीए छीए.
भूलने अमे न जोईए कारण के अमे भूलरहित
आत्मस्वभावने मुख्यपणे जोनारा छीए. अने एवा पूर्ण
स्वभावने कबूल करीने तेमां स्थिरता वडे अनंत जीवो
परमात्मदशारूप थया छे. तेथी ताराथी थई शके ते ज कहेवाय
छे.........‘हुं सिद्ध समान प्रभु छुं’ एवो विश्वास तने ताराथी
न आवे त्यां सुधी सर्वज्ञ परमात्माए कहेली वातो तारा
अंतरमां बेसे नहि.