ः ७४ः आत्मधर्मः १००
श्री समयसारनी छठ्ठी–सातमी गाथामां आवी जता –
व्यवहारनयना चार प्रकारो अने
निश्चयना आश्रये तेमनो निषेध
पंचाध्यायीमां गा. प२प थी पप१मां व्यवहारनयना चार प्रकारोनुं वर्णन कर्युं छे, तेनुं मूळ समयसारनी
छठ्ठी–सातमी गाथामां रहेलुं छे. समयसारनी छठ्ठी–सातमी गाथामांथी ए चारे प्रकारना व्यवहार नीकळे छे अने
‘ज्ञायकभाव’ बतावीने ते चारे प्रकारना व्यवहारनो निषेध कराव्यो छे.
व्यवहारनयना चार प्रकारो आ प्रमाणे छे–
(१) उपचरित असद्भूत व्यवहार
(२) अनुपचरित असद्भूत व्यवहार
(३) उपचरित सद्भूत व्यवहार
(४) अनुपचरित सद्भूत व्यवहार
(१) उपचरित असद्भूत व्यवहारः व्यक्त राग एटले के बुद्धिपूर्वकनो राग ते जीवनो छे एम जाणवुं
ते उपचरित असद्भूत व्यवहार छे.
(२) अनुपचरित असद्भूत व्यवहारः अव्यक्त राग एटले के अबुद्धिपूर्वकनो राग ते जीवनो छे
एम जाणवुं ते अनुपचरित असद्भूत व्यवहार छे.–आ बंने व्यवहारोने ‘असद्भूत’ कहीने रागथी जीवने
जुदो ओळखाव्यो छे. श्री समयसारनी छठ्ठी गाथामां ‘णवि होदि अप्पमत्तो ण पमत्तो’ एटले के जे ज्ञायकभाव
छे ते अप्रमत्त पण नथी अने प्रमत्त पण नथी–एम कह्युं छे तेमां उपरना बंने प्रकारना व्यवहारनो निषेध
आवी जाय छे.
(३) उपचरित सद्भूत व्यवहारः ज्ञान परने जाणे छे एम कहेवुं, अथवा तो ज्ञानमां राग जणातां
‘रागनुं ज्ञान छे’ एम कहेवुं, ते उपचरित सद्भूत व्यवहार छे.
–छठ्ठी गाथामां ‘णाओ जो सो उ सो चेव’ एटले के जे ज्ञायकपणे जणायो ते तो ते ज छे–एम कह्युं
छे तेमां आ त्रीजा प्रकारना व्यवहारनो निषेध आवी जाय छे.
(४) अनुपचरित सद्भूत व्यवहारः ‘ज्ञान ते आत्मा’ इत्यादि गुण–गुणी भेद पाडवा ते
अनुपचरित सद्भूत व्यवहार छे.
–सातमी गाथामां ‘णवि णाणं ण चरितं ण दंसणं जाणगो सुद्धो’ एटले के ज्ञायक आत्माने
निश्चयथी ज्ञान पण नथी, चारित्र पण नथी अने दर्शन पण नथी, ते तो शुद्ध ज्ञायक ज छे–एम कह्युं छे तेमां
गुणगुणी भेदरूप अनुपचरित सद्भूतव्यवहारनो पण निषेध आवी जाय छे.
(प) ‘ज्ञायकभाव’ ते निश्चय छे.
ए रीते समयसारनी छठ्ठी–सातमी गाथामां निश्चय ‘ज्ञायकभाव’ ना आश्रये उपरना चारे प्रकारना
व्यवहारनो निषेध थई जाय छे.
अहीं, परनुं आत्मा कांई करे एवो पर साथेना संबंधवाळो व्यवहार तो लीधो नथी तेथी तेना
निषेधनी पण वात करी नथी. अहीं तो आत्मानी पर्यायमां थता व्यवहारनी ज वात लीधी छे अने तेनो ज
निषेध कर्यो छे.
अहीं जे पांच प्रकारो कह्या छे तेमां पहेलो–पहेलो प्रकार बीजा–बीजा प्रकारनो साधक छे अने बीजो–
बीजो प्रकार पहेला–पहेला प्रकारने साध्य छे.
आ विषय उपरना विस्तृत प्रवचनो अहीं सामे पाने आपवामां आव्या छे.
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