Atmadharma magazine - Ank 100
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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माघः २४७८ः ७पः
श्री समयसारनी छठ्ठी–सातमी गाथामां आवी जता–
व्यवहारनयना चार प्रकारो अने
निश्चयना आश्रये तेमनो निषेध
***
श्री समयसार गाथा ६–७ उपर पू. गुरुदेवश्रीना प्रवचनोमांथी.
वीर सं. २४७६ अषाड सुद १० थी १प
*
नथी अप्रमत्त के प्रमत्त नथी जे एक ज्ञायक भाव छे,
ए रीत ‘शुद्ध’ कथाय, ने जे ज्ञात ते तो ते ज छे. ६.
आ छठ्ठी गाथामां आचार्यदेव कहे छे के आत्मा ज्ञायकभाव छे ते प्रमत्त–अप्रमत्त नथी. अहीं ज्ञायकभाव
प्रमत्त–अप्रमत्त नथी एम कहीने, पर्यायमां कांईक रागादि भावो थाय छे तेनो निषेध कर्यो छे; एटले जीवनी
पर्यायमां कांईक रागादि भावो छे एवो व्यवहार आमां आवी जाय छे खरो, पण ज्ञायकस्वभावनो आश्रय
कराववा तेनो निषेध छे. आ छठ्ठी गाथामां त्रण प्रकारना व्यवहारनो निषेध करीने ज्ञायकभाव बताव्यो छे.
चोथा प्रकारना व्यवहारनो निषेध सातमी गाथामां करशे.
(१) उपचरित असद्भूत व्यवहार अने तेनो निषेध
ज्ञायकभाव शुभ–अशुभ भावोरूपे परिणमतो नथी–एम कह्युं ते निश्चय छे, अने पर्यायमां जे व्यक्त
रागादि जणाय छे ते उपचरित असद्भूत व्यवहार छे. पोताना ज्ञानमां जे पुण्य–पापना भावो जणाय छे अने
आ भावो मारां छे–एम ख्यालमां आवे छे ते उपचरित असद्भूत व्यवहार छे. राग आत्मानो छे एम जाणवुं
तेने उपचरित असद्भूत व्यवहारनय कहीने एम समजावे छे के निश्चयथी ते राग तारुं स्वरूप नथी, तारा
अनारोप ज्ञायकभावमां राग नथी.
(२) अनुपचरित असद्भूत व्यवहार अने तेनो निषेध
ज्यां अल्पज्ञना ख्यालमां न आवी शके तेवो स्थूळ विकार छे त्यां, अल्पज्ञना ख्यालमां न आवी शके
एवो सूक्ष्म अबुद्धिपूर्वकनो विकार पण छे; तेने जीवनो कहेवो ते अनुपचरित असद्भूत व्यवहार छे एटले के
परमार्थे ते जीवनुं स्वरूप नथी. ज्ञायकभाव प्रमत्त के अप्रमत्त नथी एम कह्युं तेमां अबुद्धिपूर्वकना रागनो पण
निषेध आवी जाय छे. प्रमत्तदशा वखते (–छठ्ठा गुणस्थाने) बुद्धिपूर्वकनो राग छे अने ते वखते अबुद्धिपूर्वकनो
राग पण छे. ज्ञायकभाव प्रमत्त–अप्रमत्त नथी एम कहीने ते बंने प्रकारना रागनो निषेध कर्यो छे. ए रीते छठ्ठी
गाथाना पहेला पदमां उपचरित असद्भूत व्यवहार तेम ज अनुपचरित असद्भूत व्यवहार ए बंनेनो निषेध
आवी जाय छे. समयसारनी रचना घणी गंभीर छे.
सम्यक् अने मिथ्या नयोनुं लक्षण
पंचाध्यायीकार सम्यक् अने मिथ्यानयोनुं लक्षण वर्णवतां प६१ मी गाथामां कहे छे के जे नय
‘तद्गुण–संविज्ञान’ एटले के वस्तुना पोताना भावने बतावनार होय ते सम्यक् नय छे. एक वस्तुने
बीजी वस्तु साथे संबंध बतावे तेने तो त्यां नयाभास कह्यो छे; केम के परना भावने पोतानो कहेवाथी शुं
साध्य छे? व्यवहारे