ए रीत ‘शुद्ध’ कथाय, ने जे ज्ञात ते तो ते ज छे. ६.
पर्यायमां कांईक रागादि भावो छे एवो व्यवहार आमां आवी जाय छे खरो, पण ज्ञायकस्वभावनो आश्रय
कराववा तेनो निषेध छे. आ छठ्ठी गाथामां त्रण प्रकारना व्यवहारनो निषेध करीने ज्ञायकभाव बताव्यो छे.
चोथा प्रकारना व्यवहारनो निषेध सातमी गाथामां करशे.
ज्ञायकभाव शुभ–अशुभ भावोरूपे परिणमतो नथी–एम कह्युं ते निश्चय छे, अने पर्यायमां जे व्यक्त
आ भावो मारां छे–एम ख्यालमां आवे छे ते उपचरित असद्भूत व्यवहार छे. राग आत्मानो छे एम जाणवुं
तेने उपचरित असद्भूत व्यवहारनय कहीने एम समजावे छे के निश्चयथी ते राग तारुं स्वरूप नथी, तारा
अनारोप ज्ञायकभावमां राग नथी.
ज्यां अल्पज्ञना ख्यालमां न आवी शके तेवो स्थूळ विकार छे त्यां, अल्पज्ञना ख्यालमां न आवी शके
परमार्थे ते जीवनुं स्वरूप नथी. ज्ञायकभाव प्रमत्त के अप्रमत्त नथी एम कह्युं तेमां अबुद्धिपूर्वकना रागनो पण
निषेध आवी जाय छे. प्रमत्तदशा वखते (–छठ्ठा गुणस्थाने) बुद्धिपूर्वकनो राग छे अने ते वखते अबुद्धिपूर्वकनो
राग पण छे. ज्ञायकभाव प्रमत्त–अप्रमत्त नथी एम कहीने ते बंने प्रकारना रागनो निषेध कर्यो छे. ए रीते छठ्ठी
गाथाना पहेला पदमां उपचरित असद्भूत व्यवहार तेम ज अनुपचरित असद्भूत व्यवहार ए बंनेनो निषेध
आवी जाय छे. समयसारनी रचना घणी गंभीर छे.
पंचाध्यायीकार सम्यक् अने मिथ्यानयोनुं लक्षण वर्णवतां प६१ मी गाथामां कहे छे के जे नय
बीजी वस्तु साथे संबंध बतावे तेने तो त्यां नयाभास कह्यो छे; केम के परना भावने पोतानो कहेवाथी शुं
साध्य छे? व्यवहारे