पण आत्मा परनो तो कर्ता नथी. व्यवहारे आत्मा रागनो कर्ता छे, केम के राग ते पोतानी पर्यायनो भाव छे
तेथी तेमां ‘तद्गुणसंविज्ञान’ लागु पडे छे.
तारा द्रव्यनी प्रभुतामां तो विकार नथी, पण पर्यायमां विकार छे. असद्भूत व्यवहारथी ते विकारने
पर्यायनी प्रभुता छे–एम तुं जाण; विकार थवानी लायकात तारी पर्यायनी छे. ते विकारने ‘असद्भूत
व्यवहार’ कहेतां ज तेमां ए वात आवी गई के निश्चयथी ते तारुं स्वरूप नथी. चैतन्यना स्वभावमां विकार
नथी तेथी ते ‘असद्भूत’ छे, अने पोतानी पर्याय छे माटे ते ‘व्यवहार’ छे. ए रीते, पर्यायमां राग छे तेने
ओळखीने स्वभावमां तेनो निषेध करवा माटे तेने ‘असद्भूत व्यवहार’ कह्यो छे. त्यां जे व्यक्त राग छे ते
उपचरितअसद्भूत व्यवहार छे अने जे अव्यक्तराग छे ते अनुपचरितअसद्भूत व्यवहार छे.
कर्यो छे. असद्भूत व्यवहारथी विकार जीवनो छे–एम जे समजे ते जीव विकारनुं कारण परने माने नहि, तेमज
विकारने पोतानुं परमार्थस्वरूप माने नहि. विकारने असद्भूत–व्यवहारथी जीवनो कहेतां ज तेमां ए बंने वात
आवी जाय छे के निश्चयथी विकार ते जीवनुं स्वरूप नथी तेम ज पर चीज जीवने विकार करावती नथी. विकारनी
लायकात पोतानी वर्तमान पूरती पर्यायनी छे तेथी तेने व्यवहार कहीने निश्चयस्वभावमां तेनो निषेध कर्यो.
आत्मा परनुं करे एवो तो कोई नय ज नथी तेथी तेना निषेधनी पण वात अहीं लीधी नथी.
ज्ञानप्रधान कथनमां द्रव्य–पर्याय बंनेनुं ज्ञान कराववा एम कह्युं के विकारपणे आत्मा ज परिणमे छे. पण त्यां
ए वात समजी लेवी के कथन असद्भूत व्यवहारनयथी छे.
कयारे कर्यो? जो पर्यायमां विकार बिलकुल थतो ज न होय तो तेनो निषेध करवानी पण जरूर न पडे. साधक
जीव पोते पर्यायमां अल्प विकारपणे परिणमे छे तेथी तेनो स्वभावना आश्रये निषेध कर्यो छे. व्यवहारे पोतानी
पर्यायमां विकार थवानी प्रभुता छे एटले के विकारपणे आत्मा परिणमे छे एम असद्भूत व्यवहारनयथी
जाणीने निश्चयथी तेनो निषेध कर्यो. विकार कोई पर संयोग करावता नथी तेम ज आत्मा पर संयोगमां कांई
फेरफार करी शकतो नथी एटले के परमां तो आत्मानी प्रभुता नथी तेथी परनो तो निषेध करवानुं रहेतुं नथी.
जे पोतानी पर्यायनी प्रभुताथी करतो होय तेनो निषेध करी शकाय. पर करावतुं होय तो तेने रोकी न शकाय.
विकारमां आत्मानी एक समयपूरती पर्यायनी प्रभुता छे, अने द्रव्यनी प्रभुता त्रिकाळ छे तेमां विकार नथी.
विकारमां आत्मानी प्रभुता छे एम असद्भूत व्यवहारथी ज्ञान करावीने द्रव्यनी प्रभुतामां तेनो निषेध कर्यो. तुं
ज्ञायकस्वभावने लक्षमां ले, पर्याय उपरथी तारुं लक्ष खेंची ले. परम शुद्ध ज्ञायकस्वभावनी सन्मुख द्रष्टि करवाथी
पर्यायमां शुद्धता थशे. तारी पर्यायमां तारा अपराधथी विकार थाय छे माटे तेने व्यवहार कह्यो पण तारुं परमार्थ
स्वरूप बताववा तेनो निषेध करीए छीए. विकार पोतानी पर्याय छे तेथी तेने व्यवहार कहीने–अभूतार्थ
गणीने–तेनो निषेध कर्यो, पण परनो निषेध न कर्यो केम के पर साथे तो आत्माने कांई संबंध नथी. स्वभावने
चूकीने पोतानी पर्यायमां पोते विकार करे छे ने स्वभावना लक्षे पोते तेने टाळे छे.
कुंभार घडो करे के आत्मा देहनी क्रिया करे ए वातने तो अहीं नयाभासमां गणी छे. आत्मा परनो