माघः २४७८ः ७९ः
विकार थाय तेने आत्मा जाणवो–एने ज छेल्लामां छेल्लो स्थूळ व्यवहार गण्यो छे. राग थाय ते पण आत्मानो
अंश छे तेथी तेमां आत्मानो व्यवहार होई शके. परंतु परनुं आत्मा कांई करे एवो तो आत्मानो व्यवहार नथी,
ते तो नयाभास छे.
‘आत्माने अशुद्धपणुं परद्रव्यना संयोगथी आवे छे’–एवुं शास्त्रनुं वाक्य छे ते असद्भूतव्यवहारनयनुं
कथन छे. पोताना स्वभावथी आत्माने अशुद्धपणुं नथी पण परद्रव्यना संयोग उपर लक्ष करतां तेनी पर्यायमां
अशुद्धता थाय छे. परद्रव्य तो आत्माथी भिन्न ज छे, परद्रव्यनो संयोग कांई आत्मामां आवी गयो नथी, पण
तेना लक्षे आत्मानी अवस्थामां अशुद्धता थाय छे; ते अशुद्धताने आत्मा जाणवो ते असद्भूत व्यवहारनय छे.
अने ज्ञायकभाव कदी अशुद्धतारूपे परिणमतो नथी–एवा ज्ञायकभावने आत्मा जाणवो ते निश्चय छे. ते
निश्चयना आश्रये अशुद्धतारूप व्यवहारनो निषेध थई जाई छे, एनुं नाम धर्म छे. निश्चयस्वरूपना आश्रयथी ज
धर्मनी शरूआत थाय छे अने तेना ज आश्रये साधकदशा वधीने पूर्ण थाय छे.
(आ विषयना प्रवचननो बीजो हप्तो हवे पछी आपवामां आवशे.)
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पूज्य गुरुदेवश्रीना प्रवचनमां वंचायेला
सुशास्त्रोनी यादी
१श्री समयसार१४ श्री योगसार (अमितगति आचार्य)
२श्री नियमसार१प श्री इष्टोपदेश
३श्री प्रवचनसार१६ श्री समयसार–नाटक
४श्री पंचास्तिकाय१७ श्री मोक्षमार्गप्रकाशक
पश्री अष्टप्राभृत१८ श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी
६श्री परमात्म–प्रकाश१९ श्री सम्यग्ज्ञान दीपिका
७श्री षट्खंडागम (भाग १)२० श्री अनुभवप्रकाश
८श्री कार्तिकेयानुप्रेक्षा२१ श्री उपादान–निमित्तनो संवाद (भैया भगवतीदासजी कृत)
९श्री पद्मनंदी पचीसी२२ श्री उपादान–निमित्त दोहा (पं. बनारसीदासजी रचित)
१० श्री समाधिशतक२३ श्री उपादान–निमित्तनी चिठ्ठी (पं. बनारसीदासजी)
११ श्री तत्त्वार्थसार२४ श्री परमार्थ वचनिका (प. बनारसीदासजी)
१२ श्री आत्मानुशासन२प श्री रहस्यपूर्ण चिठ्ठी (पं. टोडरमल्लजी)
१३ श्री बहद् द्रव्यसंग्रह
–सं. १९९१ बाद उपरना शास्त्रो उपर पू. गुरुदेवश्रीए सभामां विस्तृत प्रवचनो कर्या छे. ए उपरांत
गोमट्टसार, षट्खंडागम, कषायप्राभृत, महाबंध, त्रिलोकप्रज्ञप्ति, आदिपुराण वगेरे पुराणो, तत्त्वार्थसूत्र,
सर्वार्थसिद्धि, तत्त्वार्थराजवार्तिक, श्लोकवार्तिक, प्रमेयकमलमार्तंड, आप्तमीमांसा, अष्टसहस्री, भगवती
आराधना, वसुबिंदु प्रतिष्ठापाठ, रत्नकरंड श्रावकाचार तेम ज पंचाध्यायी वगेरे अनेक अनेक शास्त्रोना खास
महत्वना भागो उपर पण तेओश्रीए प्रवचनमां विवेचन कर्युं छे.
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