सर्व सिद्ध भगवंतोने नमस्कार हो!
वर्तमानमां अपूर्ण ज्ञान होवा छतां पूर्ण ज्ञानीने नमस्कार करे छे तो ते कोनी सन्मुख रहीने नमस्कार
करशे? अपूर्ण ज्ञाननी सन्मुख रहीने पूर्ण ज्ञाननो स्वीकार करी शकाय नहि. ज्यां पूर्ण ज्ञान
प्रगटाववानी ताकात भरी होय तेनी सन्मुखता करे तो ज पूर्णज्ञाननो स्वीकार थई शके. हुं अल्पज्ञ होवा
छतां सर्वनो आदर करुं छुं–तेमने नमुं छुं–मारा ज्ञानमां तेमने स्थापुं छुं, आम नमस्कार करनारने
पोताने ‘पूर्ण ज्ञान प्रगटवानो आधार कोण छे’ तेनी द्रष्टि थया विना खरेखर पूर्ण ज्ञानने नमस्कार न
थई शके. तेथी, सर्वज्ञने नमस्कार करवामां खरेखर तो पोताना ज्ञानस्वभावमां ज नमवानुं–ढळवानुं
आव्युं.
ज्ञाननो आधार पण मारो ज्ञानस्वभाव ज छे. कोई विकार के निमित्त मारा ज्ञाननो आधार नथी. जो
शुभभावना आधारे ज्ञान खील्युं एम माने तो पूर्ण थया पछी ते ज्ञान टकी शके नहि केमके त्यां शुभरागनो तो
अभाव छे. जो राग के इन्द्रियोना आधारे ज्ञान थतुं होय तो तो तेमनो अभाव थतां सिद्धने ज्ञाननोय अभाव
थई जाय! माटे जे जीव राग के ईंद्रियोना आधारे ज्ञान माने ते पूर्णज्ञानी एवा सिद्ध भगवानने खरेखर
नमस्कार करी शके नहि एटले के पोताना स्वभाव तरफ ते वळी शके नहि. आत्मानी त्रिकाळी ज्ञानशक्तिना
आधारे ज केवळज्ञान प्रगटे छे एम समजीने, द्रव्यस्वभावनी सन्मुख जईने जे प्रतीत करे तेणे ज अनंत सिद्ध
भगवंतोने खरुं वंदन कर्युं छे.
नवा नवा थया ज कर्या छे; एटले, श्री कुंदकुंदाचार्यदेवे सिद्धोने वंदन कर्युं त्यारे सिद्धोनी जे संख्या हती तेना
करतां अत्यारे तेमां लाखो सिद्धोनी संख्या वधी गई छे. ते सिद्धभगवंतोने पुण्य–पाप नथी छतां सर्वज्ञपणुं टकी
रह्युं छे, तो ते सर्वज्ञपणुं वस्तुस्वभावना आधारे ज प्रगटयुं छे ने टकयुं छे. आवा सिद्धभगवंतोने वंदन करनार
जीव पोताना पुण्य–पापरहित स्वभावनो आदर अने विश्वास कर्या विना सिद्धोने खरुं वंदन करी शकतो नथी.
‘हुं सिद्धोने वंदन करुं छुं’ एटले के मारी पर्यायमां अल्पज्ञता ने रागद्वेष होवा छतां तेनो आदर न करतां, हुं
पूर्ण वस्तुस्वभावनी सन्मुख जाउं छुं.....वस्तुस्वभावमां परिणमुं छुं.–आनुं नाम स्वभावद्रष्टि–द्रव्यद्रष्टि छे अने
आनुं ज नाम सिद्धने वंदन छे.