माघः २४७८ः ७१ः
अनेकान्तमूर्ति भगवान आत्मानी
केटलीक शक्तिओ
(४)
* ज्ञान शक्ति *
आत्माना ज्ञानमात्र भावमां अनंत शक्तिओ ऊछळे छे, तेनुं आ वर्णन चाले छे; तेमांथी जीवत्वशक्ति,
चितिशक्ति अने दशिशक्ति–ए त्रण शक्तिओनुं वर्णन कर्युं. हवे चोथी शक्तिनुं वर्णन करे छे.
आत्मानी ज्ञानशक्ति साकार उपयोगमयी छे; ज्ञान पदार्थोना विशेष आकारोने पण जाणे छे तेथी तेने
साकार कहेवाय छे. ज्ञानशक्तिनो एवो महान विशेष स्वभाव छे के ते बधा पदार्थोने विशेषपणे भिन्न भिन्न
जाणे छे. ‘आ जीव, आ अजीव, आ ज्ञान, आ दर्शन, आ सुख’ एम बधाने पृथक् पृथक् ज्ञान जाणे छे. ज्ञान
सिवाय बीजी कोई शक्तिमां आवुं सामर्थ्य नथी. आत्मा ईंद्रियोथी के रागथी जाणे–एवी तो अहीं वात ज नथी,
पण पर तरफ वळीने रागसहित जाणे तेवा ज्ञाननी पण आ वात नथी; अहीं तो स्व तरफ वळीने रागरहित
बधुं जाणे तेवी आत्मानी ज्ञानशक्ति छे तेनी वात छे.
जगतमां अनंता आत्माओ, एकेक आत्मामां अनंत गुणो, एकेक गुणनी अनंत पर्यायो अने एकेक
पर्यायमां अनंत अविभागप्रतिच्छेदो छे; आत्मानी एक समयनी ज्ञानपर्यायमां अनंता सिद्धो अने केवळी
भगवंतो ज्ञेयपणे आवी जाय एवुं एकेक पर्यायनुं अनंतु सामर्थ्य छे.
पर्यायमां जे एकेक समयनुं ज्ञान छे ते त्रिकाळी ज्ञानशक्तिमांथी परिणमे छे. शक्तिनो समुद्र भर्यो छे
तेमांथी पर्यायोनो प्रवाह प्रवहे छे. सादि–अनंत काळ सुधी केवळज्ञाननी पर्यायो प्रवह्या करे तोपण ज्ञानशक्तिमां
जराय हीनता न थाय–एवुं ज्ञानशक्तिनुं अचिंत्य सामर्थ्य छे.
आत्मानुं ज्ञान कोई परना आश्रये, आंख वगेरे निमित्तोना आश्रये के रागना आश्रये परिणमतुं नथी,
पण आ त्रिकाळी ज्ञानशक्तिना आश्रये ज समय समयनुं ज्ञान परिणमे छे. ते एक समयना ज्ञानपर्यायमां
समस्त द्रव्य–गुण–पर्यायोनुं ज्ञान थई जाय छे. ज्ञानमां आखो आत्मा जणाय, तेनो ज्ञानगुण जणाय, दर्शन
जणाय सुख जणाय, तेम ज केवळज्ञानादि पर्यायो पण जणाय,–आवी एकेक समयनी ज्ञानपरिणतिनी ताकात
छे. एवी ज्ञानपरिणति जेमांथी प्रगटे एवी ज्ञानशक्ति आत्मामां त्रिकाळ छे. आवी शक्तिवाळा आत्मानी
प्रतीत करे तेने केवळज्ञाननी शंका रहे नहि.
ज्ञाननी एकेक पर्यायमां अनंत सामर्थ्य छे. एक समयना ज्ञानमां त्रणकाळनां समस्त पदार्थोनुं ज्ञान
समाई जाय छे. ज्ञानमां दर्शननुं ज्ञान, ज्ञाननुं ज्ञान, सुखनुं ज्ञान, द्रव्यनुं ज्ञान–एम बधानुं ज्ञान छे. रागने
पण ज्ञान जाणे छे, पण ज्ञानमां राग नथी, तेम ज रागने लीधे ज्ञान थतुं नथी. ज्ञान करवानो आत्मानो
स्वभाव छे पण विकार करवानो आत्मानो स्वभाव नथी. माटे ज्ञानीना हृदयमां रागनो वास नथी पण शुद्ध
आत्मानो ज वास छे.