आराधना करनारा श्रावकोनी अगियार भूमिकाओ छे; तेमां एकथी छ पडिमा सुधीना जघन्य श्रावको छे,
सातथी नव पडिमा सुधीना मध्यम श्रावको छे अने छेल्ली बे पडिमावाळा उत्तम श्रावको छे.–पण आ बधांय
पदो शुद्धपरमात्मतत्त्वना श्रद्धा–ज्ञानपूर्वक ज होय छे; केम के पडिमा तो पांचमा गुणस्थाने होय छे ने दर्शनशुद्धि
तो चोथा गुणस्थाने होय छे. शुद्धआत्माना भानथी दर्शनशुद्धि थया वगर तो चोथुं गुणस्थान पण होतुं नथी,
तोपछी पांचमा गुणस्थाननुं श्रावकपणुं के पडिमा तो होय ज कयांथी? दर्शनशुद्धि पछी आत्मस्वभावनुं
अवलंबन जेम जेम वधतुं जाय तेम तेम गुणानुसार श्रावकनी अगियार भूमिकाओ होय छे. अंतरमां
अखंडानंद परिपूर्ण परमात्मस्वभावनी श्रद्धा पछी तेमां जेटली रमणता थाय तेटले अंशे पडिमा वगेरे होय छे.
स्वभावना अवलंबने जेम जेम शुद्धता वधती जाय छे तेम तेम राग छूटतो जाय छे अने ते अनुसार रागना
निमित्तो साथेनो संबंध पण सहजपणे छूटतो जाय छे. अंतरनी शुद्धता सिवाय बाह्यक्रियाकांडमां के रागमां धर्म
मानी ल्ये तेने तो मिथ्यात्व छे, तेने एक पण पडिमा होती नथी. अंतरनी शुद्धपरिणतिपूर्वक शुभराग होय तेने
तो व्यवहारथी पडिमा कहेवाय, परंतु अंतरनी शुद्धपरिणति वगरना एकला शुभरागने तो व्यवहार पडिमा पण
कहेवाय नहि.
त्यागरूप आठ मूळगुण प्रतिज्ञापूर्वक होय छे, स्वभावना आश्रयमां तेने एटली शुद्धता प्रगटी गई छे के त्यां ते
प्रकारनो राग होतो ज नथी.–दर्शनशुद्धिपूर्वक आवी दशा प्रगटे तेनुं नाम पहेली पडिमा छे.
अवलंबने जेटलो रागनो अभाव थईने वीतरागतानी वृद्धि थाय छे तेटली आराधना अने भक्ति छे, अने तेने
अनुसार पडिमा होय छे. दर्शन–पडिमा पछी चैतन्यनुं अवलंबन वधतां शुद्धताना विशेष अंशो प्रगटे त्यारे
बीजी व्रतपडिमा प्रगटे छे. ए प्रमाणे दरेक पडिमामां समजी लेवुं. जेम जेम शुद्धताना अंशो वधता जाय छे तेम
तेम राग छूटतो जाय छे अने तेम तेम पडिमा वधती जाय छे. आ रीते बधी पडिमाओमां शुद्ध चैतन्यनुं ज
अवलंबन छे.
सामायिक तो तेने सदाकाळ चोवीसे कलाक वर्ते छे, ने ते उपरांत विशेष लीनतानो प्रयत्न करे छे.–आवी
सामायिक पडिमा छे.
स्वभावना आश्रये जेटली वीतरागता प्रगटी छे ते अनुसार पडिमा सदाय वर्ते ज छे.
तेटली शुद्धता वर्त्या ज करे छे.
तेनुं नाम पडिमा छे, त्यां जे राग छे ते कांई धर्म नथी.