Atmadharma magazine - Ank 101
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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फागणः २४७८ः ९३ः
आराधना करनारा श्रावकोनी अगियार भूमिकाओ छे; तेमां एकथी छ पडिमा सुधीना जघन्य श्रावको छे,
सातथी नव पडिमा सुधीना मध्यम श्रावको छे अने छेल्ली बे पडिमावाळा उत्तम श्रावको छे.–पण आ बधांय
पदो शुद्धपरमात्मतत्त्वना श्रद्धा–ज्ञानपूर्वक ज होय छे; केम के पडिमा तो पांचमा गुणस्थाने होय छे ने दर्शनशुद्धि
तो चोथा गुणस्थाने होय छे. शुद्धआत्माना भानथी दर्शनशुद्धि थया वगर तो चोथुं गुणस्थान पण होतुं नथी,
तोपछी पांचमा गुणस्थाननुं श्रावकपणुं के पडिमा तो होय ज कयांथी? दर्शनशुद्धि पछी आत्मस्वभावनुं
अवलंबन जेम जेम वधतुं जाय तेम तेम गुणानुसार श्रावकनी अगियार भूमिकाओ होय छे. अंतरमां
अखंडानंद परिपूर्ण परमात्मस्वभावनी श्रद्धा पछी तेमां जेटली रमणता थाय तेटले अंशे पडिमा वगेरे होय छे.
स्वभावना अवलंबने जेम जेम शुद्धता वधती जाय छे तेम तेम राग छूटतो जाय छे अने ते अनुसार रागना
निमित्तो साथेनो संबंध पण सहजपणे छूटतो जाय छे. अंतरनी शुद्धता सिवाय बाह्यक्रियाकांडमां के रागमां धर्म
मानी ल्ये तेने तो मिथ्यात्व छे, तेने एक पण पडिमा होती नथी. अंतरनी शुद्धपरिणतिपूर्वक शुभराग होय तेने
तो व्यवहारथी पडिमा कहेवाय, परंतु अंतरनी शुद्धपरिणति वगरना एकला शुभरागने तो व्यवहार पडिमा पण
कहेवाय नहि.
ए खास ध्यान राखवुं के श्रावकोनां जे अगियार पदो छे ते बधांय सम्यक्त्वपूर्वक हठ विनानी
सहजदशा छे. दर्शनशुद्धिपूर्वक श्रावकनी अगियार पडिमाओनुं स्वरूप आ प्रमाणे छेः–
(१) दर्शनपडिमाः आ पांचमा गुणस्थानवाळा श्रावकनी वात छे; दर्शनशुद्धि तो चोथा गुणस्थाने होय
छे ने आ दर्शनपडिमा पांचमा गुणस्थाने होय छे; आ पडिमावाळा श्रावकने मध, मांस, मदिरा वगेरेना
त्यागरूप आठ मूळगुण प्रतिज्ञापूर्वक होय छे, स्वभावना आश्रयमां तेने एटली शुद्धता प्रगटी गई छे के त्यां ते
प्रकारनो राग होतो ज नथी.–दर्शनशुद्धिपूर्वक आवी दशा प्रगटे तेनुं नाम पहेली पडिमा छे.
(२) व्रतपडिमाः चैतन्यना भानपूर्वक तेमां लीनता वधतां श्रावकना बार अणुव्रत प्रगटे छे. त्यां बार
व्रतनो जे शुभविकल्प छे ते तो राग छे–आस्रव छे, ते खरेखर पडिमा नथी; अंतरमां चैतन्यस्वभावना
अवलंबने जेटलो रागनो अभाव थईने वीतरागतानी वृद्धि थाय छे तेटली आराधना अने भक्ति छे, अने तेने
अनुसार पडिमा होय छे. दर्शन–पडिमा पछी चैतन्यनुं अवलंबन वधतां शुद्धताना विशेष अंशो प्रगटे त्यारे
बीजी व्रतपडिमा प्रगटे छे. ए प्रमाणे दरेक पडिमामां समजी लेवुं. जेम जेम शुद्धताना अंशो वधता जाय छे तेम
तेम राग छूटतो जाय छे अने तेम तेम पडिमा वधती जाय छे. आ रीते बधी पडिमाओमां शुद्ध चैतन्यनुं ज
अवलंबन छे.
(३) सामायिक पडिमाः चैतन्यना भानपूर्वक तेना आश्रये जेटली निर्विकल्पशांति रहे तेटली सामायिक
छे; श्रावक हंमेशां एकाग्रतानो महावरो करे छे. स्वभावना अवलंबने जेटली वीतरागता थई गई छे तेटली
सामायिक तो तेने सदाकाळ चोवीसे कलाक वर्ते छे, ने ते उपरांत विशेष लीनतानो प्रयत्न करे छे.–आवी
सामायिक पडिमा छे.
स्वभावना अवलंबने शुद्धता वधतां जेने सामायिक पडिमा प्रगटी, ते श्रावक ज्यारे सामायिकमां बेठो
होय त्यारे ज तेने सामायिक पडिमा होय अने पछी खातां–पीतां वखते तेने ते पडिमा न होय–एम नथी;
स्वभावना आश्रये जेटली वीतरागता प्रगटी छे ते अनुसार पडिमा सदाय वर्ते ज छे.
बार व्रतमां सामायिकव्रत आवे छे पण तेमां नियमपूर्वक नथी ने त्रीजी पडिमामां तो नियमपूर्वक
सामायिक होय छे.
स्वभावना भानपूर्वक दर्शनपडिमावाळा श्रावकने दर्शनपडिमा कायम होय छे, व्रतपडिमावाळाने
व्रतपडिमा कायम होय छे, सामायिकपडिमावाळाने सामायिकपडिमा कायम होय छे.–स्वभावना अवलंबने तेटली
तेटली शुद्धता वर्त्या ज करे छे.
(४) प्रोषधोपवास पडिमाः आठम–चौदस पर्वतिथिओना दिवसे चैतन्यनी शांतिपूर्वक उपवास करे ने
आहारनो राग छूटी जाय;–आवी शुद्धता प्रगटे तेनुं नाम चोथी पडिमा छे. तेमां जे स्थिरताना अंशनी वृद्धि छे
तेनुं नाम पडिमा छे, त्यां जे राग छे ते कांई धर्म नथी.