Atmadharma magazine - Ank 101
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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ः ९४ः आत्मधर्मः १०१
जुओ, ‘आठम–चौदसनो उपवास करे छे त्यारे ज आ पडिमा होय छे ने बीजा दिवसोमां आ पडिमा
नथी होती’ एम नथी; तेने तेटली स्थिरतानो अंश वधीने राग तूटी गयो छे एटले प्रौषधोपवासपडिमा तेने
सदाय वर्त्या ज करे छे; बीजा दिवसोमां आहार करतो होय त्यारे पण तेने आ पडिमा तो वर्ते ज छे, केम के ते
वखतेय आठम–चौदसे आहार करवाना रागनो तो तेने अभाव ज वर्ते छे.
श्रावकने अनंतानुबंधी अने अप्रत्याख्यानावरणीय ए बे कषायोनो तो अभाव थई गयो छे; ए
उपरांत स्वभावनुं अवलंबन जेम जेम वधतुं जाय छे तेम तेम त्रीजो प्रत्याख्यानावरणीय कषाय पण मंद पडतो
जाय छे अने आत्मानी शुद्धि वधती जाय छे; ते शुद्धता अनुसार आ अगियार पडिमा होय छे; शुद्धता ना ज आ
अगियार प्रकारो छे.
(प) सचित्त त्याग पडिमाः आगळ वधतां सचित्त वस्तुना ग्रहणनो भाव न थाय एटली सहज–
वीतरागता थई जाय तेनुं नाम पांचमी पडिमा छे. आ पांचमी पडिमावाळाने पोते सचित्तमांथी अचित करे
एवो भाव होय, पण पोते सचित्तआहार–पाणीने ग्रहण करे नहि.
अंतरमां कारण शुद्धपरमात्माना अवलंबने पहेलां सम्यग्दर्शन थतां अपूर्व आत्मशांति प्रगटे छे, ने
पछी तेना विशेष अवलंबने अकषाय शांति वधतां पांचमा गुणस्थाननी पडिमा प्रगटे छे. सचेत आहारादिनो
त्याग ते तो बहारनी वात छे. खरेखर आत्मा आहारादिने ग्रही के छोडी शकतो नथी, पण अंतरमां चिदानंद
ज्ञातानी शांति वधतां तेवो सचेत आहार पाणीनो आज पतो नथी एटले सचेत वस्तुनी साथेनो निमित्त–
नैमित्तिक संबंध पण छूटी जाय छे.–आनुं नाम सचित्तत्याग पडिमा छे. हुं सचित्त आहारने ग्रही के छोडी शकुं
छुं–एवी जेनी बुद्धि छे तेने सचित्तत्याग पडिमा होती ज नथी, तेने तो दर्शनशुद्धि पण नथी. दर्शनशुद्धि पछी
श्रावकने स्वभावना आश्रये जेम जेम विशेष राग छूटतो जाय छे तेम तेम पडिमा वधती जाय छे. जुओ, आ
श्रावकना धर्मनी आराधना! मुनिदशा अने श्रावकदशा ते अंतरनी चीज छे.
(६) रात्रिभोजन त्याग पडिमाः– छठ्ठी पडिमावाळा श्रावकने स्वभावना आश्रये एवी शुद्धता थई
गई छे के रात्रीभोजननो नियमपूर्वक अतिचाररहित त्याग थई गयो छे. अंदर चिदानंद स्वरूपमां स्थिरता
वधतां चारे प्रकारनां रात्रिभोजननो विकल्प पण नथी आवतो तेनुं नाम रात्रिभोजनत्यागपडिमा छे. आ
पडिमावाळा श्रावकने दिवसना भागमां खावानो भाव आवे अने खातो होय त्यारे पण
रात्रिभोजनत्यागपडिमा वर्ते छे.
सामान्यपणे तो रात्रिभोजननो त्याग श्रावकने होय ज, पण आ पडिमावाळाने तो नियमपूर्वक
रात्रिभोजननो त्याग छे ने अंदर स्वभावनी तेटली शुद्धता वधी छे. अंतरमां शुद्धता थई माटे बहारमां
रात्रिभोजन छूटयुं, अथवा तो बहारमां रात्रिभोजन छूटयुं माटे अंदर शुद्धता थई–एम नथी; पण एवो सहज
निमित्तनैमित्तिक संबंध छे के अंतरमां स्वरूपनी शुद्धता वधतां राग छूटयो ते अनुसार तेनां निमित्तो पण छूटी
जाय छे. देहनी ने आहारनी क्रिया तो ते क्षणे तेनां कारण थाय छे ने तेना कारणे अटके छे, हुं तो ज्ञाता छुं–एवा
भानपूर्वक स्वरूपमां स्थिरताना अंशो जेम जेम वधतां जाय छे तेम तेम आ पडिमाओ होय छे.
(७) ब्रह्मचर्यपडिमाः आ श्रावकना धर्मनी वात चाले छे. स्वभावनां आश्रये रत्नत्रयनी
आराधना करतां जेम जेम राग छूटतो जाय तेम तेम आ पडिमाओ होय छे. ज्ञानानंद परम ब्रह्मस्वरूप
निज आत्मानुं भान थईने तेमां एटली लीनता प्रगटी के विषयनो भाव ज छूटी गयो, अने बहारमां
निमित्तपणे देहनी तेवी क्रिया पण छूटी गई, तेनुं नाम ब्रह्मचर्यपडिमा छे. अंतरनी शुद्धपरिणति साथे
संधिपूर्वकनी आ वात छे. आ ब्रह्मचर्यपडिमामां नियमपूर्वकनुं शुद्ध ब्रह्मचर्य होय छे. आ पहेलां सामान्य
ब्रह्मचर्यनो शुभभाव होय पण तेने पडिमा न कहेवाय. अंतरमां चिदानंद स्वरूपना भान सहित विशेष
शुद्धतां प्रगटतां रागनो सहज त्याग थाय त्यारे ज पडिमा कहेवाय. एकलुं बहारमां छोडीने के शुभराग
करीने पोताने व्रत के पडिमाधारी मानी बेसे, ने अंदरमां शुद्धपरिणतिनुं तो ठेकाणुं न होय तेने व्रत के
पडिमा होय नहि. तेने माटे तो कह्युं छे के–
लह्युंस्वरूप न वृत्तिनुं ग्रह्युं व्रत अभिमान,
ग्रहे नहि परमार्थने लेवा लौकिक मान.