Atmadharma magazine - Ank 101
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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फागणः २४७८ः ९पः
अंतरनी शुद्धपरिणतिना भान वगर, बाह्यक्रियाकांडमां के रागमां धर्म मानीने जे पोताने व्रतधारी माने
छे तेने खरेखर व्रत नथी पण व्रतनुं अभिमान छे, अंतरना स्वरूपना भानपूर्वक तेमां एकाग्रता वधतां तेमांथी
व्रत अने पडिमा आवे छे, कांई बहारमांथी व्रत के पडिमा आवतां नथी. कोई कहे के ‘मने सात पडिमा आपो.’
त्यां सामो कहे के ‘ल्यो, आ सात पडिमा.’–तो शुं कोई बीजा पासेथी पडिमा आवती हशे? पडिमा कोई बीजा
पासेथी आवती नथी तेम ज बहारमां वेश फेरववाथी पडिमा थई जती नथी. पडिमा तो अंतरनी वस्तु छे.
स्वभावमां स्थिरता वधतां रागरहित पर्याय प्रगटे छे ते अनुसार पडिमा छे; एवी पडिमा पोते पोताना
स्वभावमांथी ज्यारे प्रगट करे त्यारे श्रीगुरुए पडिमा आपी एम व्यवहारथी कहेवाय छे.
(८) आरंभ त्याग पडिमाः– पांचमी पडिमामां सचेतनो त्याग हतो, पण त्यां हजी सचेतमांथी
अचेत करवाना आरंभपरिणामनो त्याग न हतो; अहीं तो स्वरूपमां एटली स्थिरता वधी के सचेतमांथी
अचेत करवाना आरंभनो भाव पण आवतो नथी. लीलोतरी कापवी, चूलो सळगाववो वगेरे आरंभना
भाव आठमी पडिमावाळा श्रावकने होता नथी. कोई परने हणवानी के बचाववानी पर्याय हुं करी शकतो
नथी, हुं तो ज्ञानस्वरूप छुं–आवुं भान तो धर्मीने चोथा गुणस्थाने थई गयुं छे, त्यारपछी ज्ञानस्वरूपना
अवलंबनमां स्थिर थतां एवी शुद्धता वधी के आरंभनो राग ज छूटी गयो ने बहारमां आरंभनी क्रिया
पण स्वयमेव छूटी गई,–आनुं नाम आठमी पडिमा छे. ‘आरंभनो त्याग’ एम निमित्तथी कहेवाय छे,
खरेखर आत्माए बहारनी क्रियाने छोडी नथी. तेम ज बहारमां आरंभ छूटयो तेथी अंदरमां शुद्धता
प्रगटी–एम पण नथी. अंदरमां शुद्धता वधतां राग छूटी गयो त्यां निमित्तथी एम बोलाय के आत्माए
आरंभनो त्याग कर्यो. खरेखर बहारना त्यागमां आत्मानी पडिमा नथी, पण अंदरना चिदानंदस्वभावमां
एकाग्रता वधतां शुद्धतानो अंश वध्यो ने आरंभनो भाव छूटी गयो तेनुं नाम पडिमा छे. आ
पडिमावाळा श्रावकने स्वभावनुं अवलंबन एटलुं वर्ते छे के चोवीसे कलाक आरंभत्याग पडिमा वर्ते छे,
आरंभनो भाव तेने उत्पन्न ज थतो नथी.
(९) परिग्रह त्याग पडिमाः आठमी पडिमा सुधी परिग्रहनो राग होय, पण पछी अंदरमां चिदानंद
स्वरूपनुं विशेष आलंबन लेतां परिग्रहनो राग छूटी जाय छे, त्यां परिग्रहने छोडयो एम निमित्तथी कहेवाय छे.
खरेखर तो स्वभावना आश्रये शुद्धता थतां राग थतो ज नथी, तेथी रागनो त्याग पण व्यवहारथी छे. जुओ,
आमां व्यवहार पण आवी जाय छे.–कई रीते? के धु्रव चैतन्यनुं अवलंबन लेतां शुद्धता थई ते निश्चय, अने
राग छूटयो ते व्यवहार; तेम ज राग छूटतां रागना निमित्तो साथेनो संबंध छूटी गयो, त्यां आत्माए ते
निमित्तोने छोडया–एम कहेवुं ते असद्भूतव्यवहार छे. शुद्धता वधतां रागनो अने तेना निमित्तनो संबंध छूटी
ज जाय एवो नियम छे. आ नवमी पडिमावाळाने हजी वस्त्र होय छे, पण पैसा वगेरेनो परिग्रह होतो नथी.
पैसा नजीक आववा के दूर जवा ते तो जडनी क्रिया छे, तेनो कर्ता आत्मा नथी. राग हतो त्यारे लक्ष्मी वगेरेनो
परिग्रह कह्यो अने राग छूटतां लक्ष्मी वगेरे परिग्रहने छोडयो–एम कह्युं. आ तरफ चैतन्यमां स्थिरता वधी त्यां
पैसा वगेरे परिग्रह तरफनो भाव छूटी गयो–तेनुं नाम परिग्रह त्याग पडिमा छे.
जुओ, आ वीतरागदर्शनमां श्रावकनी पडिमा! आमां हठ नथी पण सहज छे; स्वरूपमां जेम जेम
स्थिरता थती जाय छे तेम तेम आ पडिमा होय छे.
(१०) अनुमति त्याग पडिमाः आ पडिमावाळा श्रावक पोताने माटे आहार वगेरेनी अनुमति
आपता नथी. मारे माटे आम करजो–एवुं दसमी पडिमावाळा कहे नहि; शरीरमां रोगादि थाय त्यां ‘मारे माटे
अमुक चीज बनावजो’ एम पोताना माटे आहारनी अनुमोदनानो विकल्प पण आवतो नथी, एवी अंदरनी
शुद्धता वधी गई छे. कोई तेने पूछे के ‘तमारे माटे शुं करुं?’ तो ते जवाब आपे नहि. हजी आ पडिमावाळा
पोताने माटे बनावेलो आहार ल्ये, पण पोते एवी अनुमति न आपे के मारा माटे अमुक चीज करजो.
(११) उदिृष्ट त्याग पडिमाः– आ पडिमावाळा श्रावक पोताने माटे तैयार करेलो आहार लेता नथी.
सहजपणे तेने तेवा आहारनो विकल्प तूटी जाय छे–एटली स्वरूपनी स्थिरता वधी गई छे. आ पडिमावाळा
श्रावकमां क्षुल्लक