सिद्ध थशे, सिद्धिनो बीजो उपाय नथी. मारी परिपूर्ण परमात्मदशा मारा आत्मामांथी ज प्रगटवानी छे–एवी
ओळखाण विना धर्म थाय नहि. लूगडुं लेवा जाय के शाक वगेरे लेवा जाय तथा सोनुं के हीरा–माणेक लेवा जाय
तो त्यां तेने पहेलां ओळखे छे, तेम धर्म करवा माटे पहेलां ओळखवुं तो जोईएने के धर्म कयांथी नीकळे छे?
सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान अने सम्यक्चारित्र ए त्रण चैतन्यरत्नवडे मोक्षनी प्राप्ति थाय छे. कारण परमात्मामां
द्रष्टि, तेनुं ज्ञान अने तेमां एकाग्रता करीने जे जीव रत्नत्रयनी भक्ति करे छे ते भक्त छे अने ते परमात्मदशाने
पामे छे. आवा उपायथी अनंत सिद्धभगवंतो मुक्त थया तेमने ओळखीने तेमनी भक्ति करवी ते निर्वाणना
परंपरा–हेतुभूत व्यवहार भक्ति छे; पण अंदरमां निज परमात्मस्वभावनी आराधनारूप निश्चयभक्ति वर्ते छे
त्यारे तेने व्यवहारभक्ति कहे छे. जे आसन्नभव्यजीव पोताना स्वभावमां अंतर्मुख थईने शुद्धरत्नत्रय प्रगट करे
छे तेने परमार्थभक्ति छे अने ते भक्ति मुक्तिनुं कारण छे.
गुणस्थान प्रगटे छे. ते पंचमगुणस्थानवर्ती श्रावकने अंतरनी
शुद्धताअनुसार अनुक्रमे अगियार पडिमाओ होय छे.–ते
पडिमाओनुं स्वरूप समजावतुं आ खास प्रवचन ध्यानपूर्वक
वांचवा दरेक जिज्ञासुओने भलामण करवामां आवे छे.–संपादक.
अगियार पदो छे पण ते बधाय श्रावकोने अंतरमां आत्मानुं भान होय छे अने तेमां अंशे स्थिरतारूप
रत्नत्रयनी भक्ति होय छे. आ सिवाय श्रावकनी एक पण पडिमा होय नहि.
अहीं आचार्यदेव कहे छे के बधाय श्रावको पण शुद्धरत्नत्रयनी भक्ति–आराधना करे छे. जेटली सम्यग्दर्शन–
ज्ञानपूर्वक वीतरागता छे तेटली शुद्धरत्नत्रयनी भक्ति छे ने तेटलो श्रावकनो धर्म छे; जे राग छे ते कांई
श्रावकनो धर्म नथी. एकथी मांडीने अगियार पडिमावाळा श्रावको शुं करे?–के शुद्धरत्नत्रयनी भक्ति करे.
स्वभावना आश्रये जेटली रत्नत्रयनी आराधना करे तेटलो ज धर्म छे.
गृहस्थश्रावकोने पण पोताना शुद्धपरमात्मतत्त्वनां श्रद्धा–ज्ञान–चारित्ररूप शुद्धरत्नत्रयनुं जे भजन ते ज भक्ति
छे. रत्नत्रयनी भक्ति कहो के रत्नत्रयनी आराधना कहो, ते मुक्तिनुं कारण छे.
सम्यक् भान थया पछी तेमां अंशे स्थिरता वडे रत्नत्रयनी