Atmadharma magazine - Ank 101
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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ः ९२ः आत्मधर्मः १०१
सिद्ध थशे, सिद्धिनो बीजो उपाय नथी. मारी परिपूर्ण परमात्मदशा मारा आत्मामांथी ज प्रगटवानी छे–एवी
ओळखाण विना धर्म थाय नहि. लूगडुं लेवा जाय के शाक वगेरे लेवा जाय तथा सोनुं के हीरा–माणेक लेवा जाय
तो त्यां तेने पहेलां ओळखे छे, तेम धर्म करवा माटे पहेलां ओळखवुं तो जोईएने के धर्म कयांथी नीकळे छे?
सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान अने सम्यक्चारित्र ए त्रण चैतन्यरत्नवडे मोक्षनी प्राप्ति थाय छे. कारण परमात्मामां
द्रष्टि, तेनुं ज्ञान अने तेमां एकाग्रता करीने जे जीव रत्नत्रयनी भक्ति करे छे ते भक्त छे अने ते परमात्मदशाने
पामे छे. आवा उपायथी अनंत सिद्धभगवंतो मुक्त थया तेमने ओळखीने तेमनी भक्ति करवी ते निर्वाणना
परंपरा–हेतुभूत व्यवहार भक्ति छे; पण अंदरमां निज परमात्मस्वभावनी आराधनारूप निश्चयभक्ति वर्ते छे
त्यारे तेने व्यवहारभक्ति कहे छे. जे आसन्नभव्यजीव पोताना स्वभावमां अंतर्मुख थईने शुद्धरत्नत्रय प्रगट करे
छे तेने परमार्थभक्ति छे अने ते भक्ति मुक्तिनुं कारण छे.
* * *
दर्शनशुद्धिपूर्वक श्रावकनी
अगियार पडिमाओनुं वर्णन
(वीर सं. २४७८ माह सुद त्रीजना रोज श्री नियमसार गाथा. १३४ उपर पू. गुरुदेवश्रीनुं प्रवचन)
सौथी पहेलां दर्शनविशुद्धि चोथा गुणस्थाने होय छे; त्यार
पछी शुद्धात्मस्वभावना अवलंबने शुद्धता वधतां पांचमुं
गुणस्थान प्रगटे छे. ते पंचमगुणस्थानवर्ती श्रावकने अंतरनी
शुद्धताअनुसार अनुक्रमे अगियार पडिमाओ होय छे.–ते
पडिमाओनुं स्वरूप समजावतुं आ खास प्रवचन ध्यानपूर्वक
वांचवा दरेक जिज्ञासुओने भलामण करवामां आवे छे.–संपादक.
सौथी पहेलां चोथा गुणस्थाने दर्शनशुद्धि होय छे, त्यार पछी ज पांचमागुणस्थाने दर्शनपडिमा वगेरे
अगियार पडिमा होय छे; ते पडिमा अंतरना गुणने अनुसार होय छे, बहारनी क्रियाअनुसार नथी. श्रावकोना
अगियार पदो छे पण ते बधाय श्रावकोने अंतरमां आत्मानुं भान होय छे अने तेमां अंशे स्थिरतारूप
रत्नत्रयनी भक्ति होय छे. आ सिवाय श्रावकनी एक पण पडिमा होय नहि.
एकादशपदी श्रावकोमां जघन्य छ छे, मध्यम त्रण छे अने उत्तम बे छे.–आ बधा शुद्धरत्नत्रयनी भक्ति
करे छे. श्रावकोना अगियार भेद छे एटले के अगियार पडिमा छे, ते दरेक सम्यग्दर्शन–ज्ञानपूर्वक ज होय छे.
अहीं आचार्यदेव कहे छे के बधाय श्रावको पण शुद्धरत्नत्रयनी भक्ति–आराधना करे छे. जेटली सम्यग्दर्शन–
ज्ञानपूर्वक वीतरागता छे तेटली शुद्धरत्नत्रयनी भक्ति छे ने तेटलो श्रावकनो धर्म छे; जे राग छे ते कांई
श्रावकनो धर्म नथी. एकथी मांडीने अगियार पडिमावाळा श्रावको शुं करे?–के शुद्धरत्नत्रयनी भक्ति करे.
स्वभावना आश्रये जेटली रत्नत्रयनी आराधना करे तेटलो ज धर्म छे.
आ नियमसार भागवतशास्त्र छे; अत्यारे आ भागवतशास्त्रनो भक्तिअधिकार वंचाय छे. श्रावकोने के
श्रमणोने साची भक्ति कोने कहेवाय के जेनाथी मुक्ति मळे? ते अहीं आचार्यदेव बतावे छे. मुनिवरोने के
गृहस्थश्रावकोने पण पोताना शुद्धपरमात्मतत्त्वनां श्रद्धा–ज्ञान–चारित्ररूप शुद्धरत्नत्रयनुं जे भजन ते ज भक्ति
छे. रत्नत्रयनी भक्ति कहो के रत्नत्रयनी आराधना कहो, ते मुक्तिनुं कारण छे.
पहेलां शुद्धआत्मानुं निर्विकल्प सम्यग्दर्शन ते पण भक्ति छे. हुं तो शुद्धचिदानंद छुं, रागनो एक अंश
पण मारो नथी–एवुं यथार्थ भान करीने शुद्धआत्मानी आराधना करवी ते परमभक्ति छे. शुद्धपरमात्मतत्त्वनुं
सम्यक् भान थया पछी तेमां अंशे स्थिरता वडे रत्नत्रयनी