Atmadharma magazine - Ank 101
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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फागणः २४७८ः ९१ः
श्री श्रावीका–ब्रह्मचर्याश्रमना उद्घाटन प्रसंगे पू. गुरुदेवश्रीए आश्रममां प्रवचन कर्युं ते प्रसंगनुं
द्रश्य; प्रवचन पछी श्रीमान वछराजजी शेठ ऊभा थइने पू. गुरुदेवश्रीनो उपकार मानी रह्या छे.
छे–धर्म नथी. प्रथम तो दर्शनशुद्धि वगर अज्ञानीने सोळकारणभावना ज यथार्थ होती नथी. सोळकारणभावना
ज्ञानीने ज होय छे, पण ज्ञानी ते भावने आदरणीय मानता नथी; ज्ञानी तो जाणे छे के शुद्धरत्नत्रयवडे निज
कारण–परमात्माने आराधवो ते ज सिद्धिनो उपाय छे.
परमात्मदशा कयांथी प्रगटे छे! अंदरमां दरेक आत्मा परमात्मशक्तिथी पूरो छे तेमांथी ज परमात्मदशा
प्रगटे छे. जेम लींडीपीपरने घसतां चोसठपोरी तीखास प्रगटे छे, ते कयांथी प्रगटे छे? खरलमांथी नथी प्रगटती
पण तेनामां ज चोसठपोरी तीखास शक्तिपणे हती ते ज प्रगटी छे; बहारथी नथी आवी तेमज एक थी मांडीने
त्रेसठ पोरी सुधीनी तीखासमांथी पण चोसठपोरी तीखास आवी नथी, ते अधूरी तीखासनो तो अभाव थईने
पीपरना सामर्थ्यमांथी ज पूरी तीखास आवी छे. उंदरनी लींडी पण लींडीपीपर जेवी लागे, पण तेने घसतां
तेमांथी तीखास नहि प्रगटे, केम के तेनामां तेवो स्वभाव नथी. लींडीपीपरमां स्वभाव छे तेमांथी ज तीखास
प्रगटे छे, ते कोई संयोगने लीधे नथी. तेम आत्मा परिपूर्ण परमात्मशक्तिथी भर्यो छे, तेनां श्रद्धा–ज्ञान–
एकाग्रता वडे तेमांथी परमात्मदशा प्रगटे छे. पण कांई शरीरादिने घसी नांखवाथी परमात्मदशा प्रगटती नथी
केम के तेनामां तेवो स्वभाव नथी; तेम ज अधूरी दशामांथी पण पूर्णदशा आवती नथी. धु्रवस्वभाव त्रिकाळ
भर्यो छे तेना ज अवलंबने अधूरीदशानो व्यय थईने पूर्ण परमात्मदशा प्रगटी जाय छे. आ रीते शुद्धआत्मानी
आराधना ते ज सिद्धिनो उपाय छे. आ उपायथी ज भूतकाळमां अनंत सिद्धो थया, वर्तमानमां आ उपायथी ज
सिद्ध थाय छे अने भविष्यमां आ उपायथी ज