Atmadharma magazine - Ank 101
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 7 of 25

background image
ः ९०ः आत्मधर्मः १०१
‘पुराणपुरुषो समस्त कर्मक्षयना उपायना हेतुभूत कारणपरमात्माने अभेद–अनुपचार रत्नत्रय
परिणतिथी सम्यक्पणे आराधीने सिद्ध थया’ .....अनादिकाळथी आ रीते जीवो सिद्ध थतां ज आवे छे.
आज पहेलां शुद्धरत्नत्रयवडे पोताना कारण परमात्माने आराधी–आराधीने अनंत तीर्थंकरो, केवळी
भगवंतो तथा गणधरो सिद्ध थई गया छे. महाविदेहक्षेत्रमां मोक्षनो मार्ग कदी बंध पडतो नथी, त्यां सदाय
जीवोनो मोक्ष थया ज करे छे.–कई रीते? के शुद्धरत्नत्रयवडे कारणपरमात्मानी आराधनाथी. कोई जीवो
कुळपरंपरा वगेरेनी पक्कड करीने व्यवहारना आश्रयथी धर्म मानता होय तो अहीं कहे छे के अरे भाई!
तारी कुळपरंपरा साची के अनंता सिद्धभगवंतो थई गया तेमनी परंपरा साची? जे अनंता पुराणपुरुषो
मोक्ष पाम्या तेओ कोई व्यवहारना के भेदरत्नत्रयना आश्रयथी मोक्ष नथी पाम्या, पण तेओ तो अभेद
रत्नत्रयवडे शुद्ध आत्माने ज आराधीने मुक्ति पाम्या छे; माटे ते ज एक मुक्ति मार्ग छे; तो तुं बीजो
उपाय कयांथी लाव्यो?
अनंत संतो सिद्धि पाम्या ते कई रीते पाम्या? के शुद्ध कारण परमात्माने अभेद रत्नत्रयपरिणतिथी
आराधीने तेओ सिद्धि पाम्या छे. त्रणे काळे आ एक ज सिद्धिनो उपाय छे.–‘एक होय त्रण काळमां परमार्थनो
पंथ.’ आत्मानी आराधना, आत्मानी प्रसन्नता, आत्मानी कृपा, आत्मानी भक्ति, आत्मानी सिद्धि ते
शुद्धरत्नत्रय वडे ज थाय छे, रागादिवडे थती नथी. शुद्ध रत्नत्रयपरिणतिथी अंतरस्वरूपमां वळी गया नमी
गया–झूकी गया–प्रणमी गया ते ज रीतथी बधा सिद्धभगवंतो सिद्धिने पाम्या छे. अंदरमां रागरहित
शुद्धरत्नत्रय वडे आत्मस्वभावनी आराधना करवी ते एक ज त्रणेकाळे मोक्षमार्ग छे, अने सत्समागमे
स्वभावनी रुचि–ज्ञान–मनननो अभ्यास करवो ते व्यवहार छे.
अहीं रत्नत्रयपरिणतिवडे शुद्ध कारण परमात्मानी आराधना करवानुं कह्युं छे. कारणपरमात्मा एटले
शुं? त्रिकाळी शक्तिथी परिपूर्ण द्रव्य ते कारणपरमात्मा छे ने वर्तमान केवळज्ञानादि पूर्ण पर्याय प्रगटे ते
कार्यपरमात्मा छे. ते पूर्ण कार्य प्रगटवाना कारणरूप सामर्थ्य द्रव्यमां त्रिकाळ छे. एक समयनी पर्यायने गौण
करीने जे पूर्ण सामर्थ्यरूप वर्तमान तत्त्व छे तेने ज कारणपरमात्मा कहेवाय छे. सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप
निर्विकल्पपर्याय के परमात्मपर्याय प्रगटे ते कार्य छे, ते कार्य धु्रव आत्मद्रव्यमांथी आवे छे तेथी ते धु्रव
द्रव्यस्वभावने कारणपरमात्मा कह्यो छे; ते सदाकाळ एकरूप परिपूर्ण छे. मोक्षमार्गनी पर्यायने मोक्षनुं कारण
कहेवुं ते व्यवहारथी छे, खरेखर कांई मोक्षमार्गनी पर्यायमांथी मोक्षपर्याय नथी आवती; मोक्षपर्याय तो
आत्मद्रव्यमांथी आवे छे माटे धु्रवआत्मा ज मोक्षनुं निश्चयकारण छे. तेने ज नियमसारमां ‘कारणपरमात्मा’
कहीने गायो छे. सम्यग्दर्शनथी मांडीने सिद्धदशा सुधीनी बधी पर्यायो ते धु्रवकारणपरमात्माना अवलंबने
प्रगटे छे. तेनो परम महिमा करीने तेनुं अवलंबन लेवुं ते ज परमार्थ भक्ति छे अने ते ज मोक्षमार्ग छे.
जे ‘शुद्धकारणपरमात्मा’ कहेवाय छे ते सिद्धभगवाननी ज वात नथी पण बधाय आत्माओ तेवा
छे. सिद्धभगवाननुं त्रिकाळी द्रव्य ते तेमनो कारणपरमात्मा छे तथा तेना आश्रये तेमने जे पूर्ण शुद्धपर्याय
प्रगटी ते तेमनो कार्य परमात्मा छे; ए ज प्रमाणे आ आत्मानो धु्रवस्वभाव छे ते पोतानो कारणपरमात्मा
छे अने तेनो आश्रय करतां केवळज्ञानदशा प्रगटी जाय ते पोतानो कार्यपरमात्मा छे.–आ रीते पोतानो शुद्ध
कारण परमात्मा ते ज परमात्मदशानुं परम कारण छे, ए सिवाय बहारना कोई कारणथी परमात्मदशा
प्रगटती नथी.
जगतमां सिद्ध भगवंतो अनादिथी छे ने सिद्धिनो उपाय पण अनादिथी छे. छ मास अने आठ समयमां
छसो ने आठ जीवो मोक्षमां जाय छे एवो क्रम निरंतर चाल्या ज करे छे. अत्यारे आ भरतक्षेत्रमां मोक्ष नथी
पण महाविदेहमांथी छ मास अने आठ समयमां ६०८ जीवो मोक्षमां जाय छे. तेओ पोताना शुद्ध कारण–
परमात्माने श्रद्धा–ज्ञान–चारित्ररूप अभेद रत्नत्रयपरिणतिथी आराधीने ज सिद्ध थाय छे. निज शुद्ध आत्माना
अवलंबने जे शुद्ध रत्नत्रयपरिणति प्रगटी तेना वडे कारणपरमात्मानी भक्ति करी करीने पुराण पुरुषो सिद्धि
पाम्या छे, वर्तमानमां पण ए ज उपाय छे अने भविष्यमां पण सिद्धिनो ए ज उपाय छे. निमित्तथी, रागथी के
भेदरत्नत्रयथी पण त्रण काळमां मुक्ति थती नथी. चैतन्य–स्वरूपनी भावना करतां करतां तेमां रागरहित
लीनता थई जाय तेनुं नाम अनुपचाररत्नत्रय छे ने तेनाथी ज मुक्ति थाय छे. तीर्थंकरनामकर्मना कारणरूप जे
सोळकारण भावनानो भाव छे ते पण व्यवहार छे, ते आस्रव