Atmadharma magazine - Ank 101
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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फागणः २४७८ः ८९ः
त्मपद आपवानी शक्ति तेनामां ज पडी छे, ए सिवाय कोई परमां–निमित्तमां, रागमां के पर्यायमां एवी ताकात
नथी के ते परमात्मपदने आपे; माटे पोताना धु्रव चिदानंद कारण परमात्माने ज ध्येयरूप करीने तेना उपर
द्रष्टिनुं त्राटक लगाववुं तेनुं नाम शक्तिमाननुं भजन छे अने ते ज खरी भक्ति छे. हुं एक समयमां परिपूर्ण
परमात्मा छुं–एवी द्रष्टिनुं अंर्तपरिणमन थयुं तेमां धर्मीने एक समय पण विरह नथी पडतो; बहारमां
विषयादिना अशुभ राग वखते पण तेवी द्रष्टि निरंतर रहे छे.–आवी द्रष्टिवाळो जीव रत्नत्रयनो भक्त छे. जो
एक क्षण पण आवी भक्ति करे तो अल्पकाळमां मुक्ति थया विना रहे नहीं.
जे जीव चैतन्यमहिमामां लीन थईने शुद्धरत्नत्रयनी अतूल भक्ति करे छे, ते समस्त विषय–कषायथी
विमुक्त चित्तवाळो जीव भक्त छे; तेना अंतरनी रत्नत्रयनी भक्ति भवभयनो नाश करनारी छे. जेणे चिदानंद
परमात्मतत्त्वनी भक्ति करी–तेनी रुचि करीने आराधना करी–तेने विषयोनी के विकारनी रुचि रहे ज नहि,
परिणति ज्यां स्वभावमां अंतर्मुखपणे परिणमी गई त्यां बहारना काम–क्रोधादिथी विमुखता थई गई.–आ
रीते विषयकषायथी विमुक्त चित्तवाळो जे जीव शुद्धरत्नत्रयनी भक्ति करे छे ते जीव निरंतर भक्त छे..... भक्त
छे.–पछी भले ते श्रावक हो के मुनि हो.
श्री मुनिराज पोकार करे छे के अहो! चिदानंद परमात्मतत्त्वनी श्रद्धा करीने तेने जे आराधे छे ते जीव
निरंतर भक्त छे–भक्त छे; तेने हालतां–चालतां खातां–पीतां निरंतर चैतन्यनुं भजन वर्ते छे. श्रावकने
कदाचित् लडाई वगेरेनो जराक अशुभभाव आवी जाय तो ते वखते पण द्रष्टिमांथी शुद्ध चैतन्यतत्त्वनुं
अवलंबन तेने खसतुं नथी माटे कह्युं के ते निरंतर भक्त छे, भक्त छे.
हवे, निश्चयभक्तिनी साथे व्यवहारभक्ति पण केवी होय ते बतावे छे–
वळी मोक्षगत पुरुषो तणो गुणभेद जाणी तेमनी
जे परम भक्ति करे, कही शिवभक्ति त्यां व्यवहारथी.–१३प.
सिद्ध जेवा पोताना शुद्धात्मानी अभेदभक्ति ते निश्चय छे अने पोताथी भिन्न एवा सिद्ध परमात्मानी
भक्ति ते व्यवहारभक्ति छे.
जे जीव मोक्षगत पुरुषोनो गुणभेद जाणीने तेमनी पण परमभक्ति करे छे ते जीवने व्यवहारनये
निर्वाणभक्ति छे. जेने शुद्ध चैतन्य–स्वभावनुं भान छे पण हजी पूर्ण वीतरागता थई नथी ते जीव शुभराग
वखते सिद्ध भगवानना गुणोने लक्षमां लईने भक्ति करे छे. पोतानो आत्मा सिद्ध जेवो छे एवा भानपूर्वक
तेमां लीनता ते निश्चयभक्ति छे. अने त्यां सिद्धभगवाननी भक्तिनो भाव ते व्यवहारभक्ति छे.
मोक्ष एटले आत्मानी परिपूर्ण ज्ञान–आनंदमय निर्विकारी पर्याय; अने संसार एटले एक समयपूरतो
विकारी भाव. स्वभावना श्रद्धा–ज्ञान–रमणतारूप शुद्धरत्नत्रयथी जेओ मुक्ति पाम्या एवा मोक्षगत सिद्ध–
भगवंतोना गुणने ओळखीने तेमनी भक्ति पण श्रावको अने श्रमणो करे छे. श्रावको अने श्रमणो पोते शुद्ध–
रत्नत्रयना आराधक छे तेथी पूर्वे शुद्धरत्नत्रयने आराधीने जेओ मुक्ति पाम्या तेमनो पण आदर–बहुमान करे
छे. अहीं सिद्ध भगवाननी वात करी छे तेनी साथे अरिहंत भगवान वगेरेनी भक्तिनी वात पण समजी लेवी.
अत्यारे श्री सीमंधर भगवान वगेरे तीर्थंकरो अने लाखो केवळज्ञानी भगवंतोनां टोळां महाविदेहक्षेत्रमां
बिराजी रह्या छे; अनंत सिद्धभगवंतो लोकना छेडे बिराजी रह्या छे; तेओ अनंतज्ञान, अनंतदर्शन, अनंतवीर्य
अने अनंतसुख वगेरे गुणो सहित छे, तेमने ओळखीने तेमना बहुमान वगेरेनो सम्यग्ज्ञानीनो भाव ते
व्यवहारथी निर्वाणभक्ति छे.
जुओ, आजे आश्रमना मांगळिकमां आत्मानी भक्ति आवी, तेम ज सिद्धभगवाननी भक्ति पण
आवी. अहीं व्यवहारनी प्रधानताथी सिद्धभक्तिनुं कथन छे, पण व्यवहारनी प्रधानता ते मोक्षमार्ग नथी.
सिद्धभगवाननी भक्तिने व्यवहारथी निर्वाणभक्ति कही तेथी एम न समजवुं के ते मोक्षमार्ग छे. मोक्षमार्ग तो
स्वभावना आश्रये जे निश्चयरत्नत्रय प्रगटे ते ज छे. वच्चे राग आवे ते खरेखर मोक्षमार्ग नथी. धर्मीने
शुद्धस्वभावनुं भान छे ने राग पण थाय छे, पण त्यां ते समजे छे के आ राग मारो स्वभाव नथी, ने तेना
आश्रये मारो मोक्षमार्ग नथी; छतां राग वखते सिद्धभगवान प्रत्येनी भक्तिनो उल्लास पण आव्या विना
रहेतो नथी.–आ रीते निश्चय–व्यवहारनी संधि छे.
* सिद्ध भगवंतो कई रीते सिद्धि पाम्या? *
अहीं सिद्धनी भक्तिनी वात करतां ते सिद्धभगवंतो कई रीते सिद्धि पाम्या ते पण ओळखावे छे.