त्मपद आपवानी शक्ति तेनामां ज पडी छे, ए सिवाय कोई परमां–निमित्तमां, रागमां के पर्यायमां एवी ताकात
नथी के ते परमात्मपदने आपे; माटे पोताना धु्रव चिदानंद कारण परमात्माने ज ध्येयरूप करीने तेना उपर
द्रष्टिनुं त्राटक लगाववुं तेनुं नाम शक्तिमाननुं भजन छे अने ते ज खरी भक्ति छे. हुं एक समयमां परिपूर्ण
परमात्मा छुं–एवी द्रष्टिनुं अंर्तपरिणमन थयुं तेमां धर्मीने एक समय पण विरह नथी पडतो; बहारमां
विषयादिना अशुभ राग वखते पण तेवी द्रष्टि निरंतर रहे छे.–आवी द्रष्टिवाळो जीव रत्नत्रयनो भक्त छे. जो
एक क्षण पण आवी भक्ति करे तो अल्पकाळमां मुक्ति थया विना रहे नहीं.
परमात्मतत्त्वनी भक्ति करी–तेनी रुचि करीने आराधना करी–तेने विषयोनी के विकारनी रुचि रहे ज नहि,
परिणति ज्यां स्वभावमां अंतर्मुखपणे परिणमी गई त्यां बहारना काम–क्रोधादिथी विमुखता थई गई.–आ
रीते विषयकषायथी विमुक्त चित्तवाळो जे जीव शुद्धरत्नत्रयनी भक्ति करे छे ते जीव निरंतर भक्त छे..... भक्त
छे.–पछी भले ते श्रावक हो के मुनि हो.
कदाचित् लडाई वगेरेनो जराक अशुभभाव आवी जाय तो ते वखते पण द्रष्टिमांथी शुद्ध चैतन्यतत्त्वनुं
अवलंबन तेने खसतुं नथी माटे कह्युं के ते निरंतर भक्त छे, भक्त छे.
जे परम भक्ति करे, कही शिवभक्ति त्यां व्यवहारथी.–१३प.
वखते सिद्ध भगवानना गुणोने लक्षमां लईने भक्ति करे छे. पोतानो आत्मा सिद्ध जेवो छे एवा भानपूर्वक
भगवंतोना गुणने ओळखीने तेमनी भक्ति पण श्रावको अने श्रमणो करे छे. श्रावको अने श्रमणो पोते शुद्ध–
रत्नत्रयना आराधक छे तेथी पूर्वे शुद्धरत्नत्रयने आराधीने जेओ मुक्ति पाम्या तेमनो पण आदर–बहुमान करे
अने अनंतसुख वगेरे गुणो सहित छे, तेमने ओळखीने तेमना बहुमान वगेरेनो सम्यग्ज्ञानीनो भाव ते
व्यवहारथी निर्वाणभक्ति छे.
सिद्धभगवाननी भक्तिने व्यवहारथी निर्वाणभक्ति कही तेथी एम न समजवुं के ते मोक्षमार्ग छे. मोक्षमार्ग तो
स्वभावना आश्रये जे निश्चयरत्नत्रय प्रगटे ते ज छे. वच्चे राग आवे ते खरेखर मोक्षमार्ग नथी. धर्मीने
शुद्धस्वभावनुं भान छे ने राग पण थाय छे, पण त्यां ते समजे छे के आ राग मारो स्वभाव नथी, ने तेना
आश्रये मारो मोक्षमार्ग नथी; छतां राग वखते सिद्धभगवान प्रत्येनी भक्तिनो उल्लास पण आव्या विना
रहेतो नथी.–आ रीते निश्चय–व्यवहारनी संधि छे.