Atmadharma magazine - Ank 101
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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ः ९८ः आत्मधर्मः १०१
उपर ज द्रष्टि छे. आवी ज्ञायकभावनी उपासना एटले के तेनी श्रद्धा तेनुं ज्ञान अने तेमां लीनता ते मोक्षमार्ग छे.
२४७६ अषाड सुद ९ः श्री समयसार गा. ६ उपरना प्रवचनमांथी.
पः स्वभाव अने विभावनुं भेदज्ञान
(पर्यायनुं सत्पणुं)
एक वस्तुमां बीजी वस्तुनो अभाव छे तेथी एक वस्तुने बीजी वस्तु कांई लाभ के नुकसान करी शके
नहि, आवो सिद्धांत छे. अहीं प्रश्न थाय छे केः आत्मस्वभावमां रागनो अभाव छे, जेमां जेनो अभाव होय
तेमां ते कांई नुकसान करे नहि, तो राग आत्माने नुकसाननुं कारण छे के नथी?
नीचेना त्रण प्रकारथी ते प्रश्ननो उत्तर आपवामां आवे छे–
(१) द्रष्टिनी अपेक्षाए आत्मामां रागनो अभाव ज छे, द्रष्टिना विषयभूत अखंड स्वभावमां राग छे ज
नहि तेथी ते नुकशान करे नहि; एटले राग अखंड स्वभावने नुकसान करतो नथी ने स्वभावनी द्रष्टिने
पण नुकसान करतो नथी. रागने लीधे प्रतीत कांई काची थई गई–एम नथी.
(२) जे राग छे ते ज्ञाननी अपेक्षाए ज्ञेय छे, रागने अने ज्ञानने ज्ञेयज्ञायकसंबंध छे. राग छे तेने साधक
जाणे छे पण ज्ञानने अने रागने एकमेक मानता नथी; एटले खरेखर राग आत्माने नुकशान करतो
नथी पण आत्मानुं ज्ञेय ज छे.
(३) हवे चारित्र अपेक्षाए जोतां जरा सूक्ष्म वात छे. राग ते चारित्रगुणनी विकारी दशा छे, परंतु ते राग
चारित्रनी प्रगटेली निर्मळताने कांई नुकसान करतो नथी. राग वखते पण चारित्रनी वर्तमान पर्यायमां
जे निर्मळता प्रगटी छे ते तो प्रगटी ज छे, ते निर्मळतानो कांई राग अभाव करतो नथी. माटे चारित्रनी
वर्तमान प्रगटेली निर्मळतामां ते समयनो राग नुकसान करतो नथी. जुओ, स्वभाव अने राग बंने
जुदा पडी गया, स्वभावमां रागनो अभाव, रागमां स्वभावनो अभाव.
जेमके चोथा गुणस्थाने सम्यग्द्रष्टिने स्वरूपाचरण चारित्र प्रगटयुं छे तेटली चारित्रनी निर्मळता प्रगटी
छे अने ते पर्यायमां अप्रत्याख्याननो राग पण छे, छतां ते राग चारित्रनी प्रगटेली निर्मळताने
(स्वरूपाचरणने) नुकसान करतो नथी. वळी ए ज प्रमाणे छठ्ठा–सातमा गुणस्थाने मुनिने चारित्रनी घणी
निर्मळता प्रगटी छे अने संज्वलननो अति अल्प राग रह्यो छे; पण ते राग ते भूमिकामां प्रगटेला
निर्मळचारित्रने कांई नुकशान करतो नथी.–आम छतां चारित्रमां रागने नुकसानकर्ता कहेवामां आवे छे तेनुं
कारण शुं छे ते समजवुं जोईए. ते आ प्रमाणे छेः सम्यग्ज्ञाने वस्तुना अभेदस्वभावने जाण्यो छे तेमज दर्शन–
ज्ञान–चारित्र आदि गुणभेदने पण जाण्या छे तथा तेनी पर्यायने पण जाणी छे. ते ज्ञानमां चारित्रनी पूर्णतानुं
स्वरूप जणायुं छे; चारित्र गुणनुं पूर्ण स्वरूप रागरहित होवुं जोईए तेवुं वर्तमान पर्यायमां नथी माटे पर्यायमां
तेटलुं नुकसान छे.
आम गुण पर्यायनी सरखामणी अपेक्षाए, जेटलो राग छे तेटलुं चारित्रपर्यायमां नुकसान छे–एम
कहेवामां आवे छे. चारित्रनुं परिणमन पूरुं नथी, चारित्रनी पूर्णदशा प्रगटी नथी ए अपेक्षाए नुकसान कह्युं;
पण जेटली निर्मळता प्रगटी छे तेमां तो कांई राग नुकसान करतो नथी, ते पर्याय सत् छे. जे निर्मळता छे तेमां
रागनो अभाव छे तेथी ते निर्मळताने राग नुकसान करतो नथी.
अहो! प्रगटेली निर्मळ पर्यायने राग पण नुकसान करतो नथी तो पछी कर्म कांई नुकसान करे ए तो
वात ज कयां रही? कर्म कोने नुकसान करे? जेटली निर्मळता प्रगटी छे ते तो प्रगटी ज छे, तेमां कर्म कांई करी
शके नहि, अने जे निर्मळता पोते प्रगटी ज नथी तेमां पण कर्म शुं करे? जे पर्याय प्रगटेली छे ते तो सत् छे,
तेमां कर्म कांई फेरफार न करी शके, अने जे पर्याय प्रगटी ज नथी एटले के असत् छे तेमां पण कर्म कांई करी शके
नहि. आ रीते कर्म आत्मानी पर्यायमां कांइ करतुं नथी. आवा समय–समयना सत्नी निरपेक्षता जे जीव
यथार्थपणे जाणे ते जीव परथी निरपेक्ष थईने द्रव्यसन्मुख थयां विना रहे नहीं.
रात्रिचर्चा–अषाड सुद १ः २४७७