उपर ज द्रष्टि छे. आवी ज्ञायकभावनी उपासना एटले के तेनी श्रद्धा तेनुं ज्ञान अने तेमां लीनता ते मोक्षमार्ग छे.
तेमां ते कांई नुकसान करे नहि, तो राग आत्माने नुकसाननुं कारण छे के नथी?
पण नुकसान करतो नथी. रागने लीधे प्रतीत कांई काची थई गई–एम नथी.
नथी पण आत्मानुं ज्ञेय ज छे.
जे निर्मळता प्रगटी छे ते तो प्रगटी ज छे, ते निर्मळतानो कांई राग अभाव करतो नथी. माटे चारित्रनी
वर्तमान प्रगटेली निर्मळतामां ते समयनो राग नुकसान करतो नथी. जुओ, स्वभाव अने राग बंने
जुदा पडी गया, स्वभावमां रागनो अभाव, रागमां स्वभावनो अभाव.
जेमके चोथा गुणस्थाने सम्यग्द्रष्टिने स्वरूपाचरण चारित्र प्रगटयुं छे तेटली चारित्रनी निर्मळता प्रगटी
(स्वरूपाचरणने) नुकसान करतो नथी. वळी ए ज प्रमाणे छठ्ठा–सातमा गुणस्थाने मुनिने चारित्रनी घणी
निर्मळता प्रगटी छे अने संज्वलननो अति अल्प राग रह्यो छे; पण ते राग ते भूमिकामां प्रगटेला
निर्मळचारित्रने कांई नुकशान करतो नथी.–आम छतां चारित्रमां रागने नुकसानकर्ता कहेवामां आवे छे तेनुं
कारण शुं छे ते समजवुं जोईए. ते आ प्रमाणे छेः सम्यग्ज्ञाने वस्तुना अभेदस्वभावने जाण्यो छे तेमज दर्शन–
ज्ञान–चारित्र आदि गुणभेदने पण जाण्या छे तथा तेनी पर्यायने पण जाणी छे. ते ज्ञानमां चारित्रनी पूर्णतानुं
स्वरूप जणायुं छे; चारित्र गुणनुं पूर्ण स्वरूप रागरहित होवुं जोईए तेवुं वर्तमान पर्यायमां नथी माटे पर्यायमां
तेटलुं नुकसान छे.
पण जेटली निर्मळता प्रगटी छे तेमां तो कांई राग नुकसान करतो नथी, ते पर्याय सत् छे. जे निर्मळता छे तेमां
रागनो अभाव छे तेथी ते निर्मळताने राग नुकसान करतो नथी.
शके नहि, अने जे निर्मळता पोते प्रगटी ज नथी तेमां पण कर्म शुं करे? जे पर्याय प्रगटेली छे ते तो सत् छे,
तेमां कर्म कांई फेरफार न करी शके, अने जे पर्याय प्रगटी ज नथी एटले के असत् छे तेमां पण कर्म कांई करी शके
नहि. आ रीते कर्म आत्मानी पर्यायमां कांइ करतुं नथी. आवा समय–समयना सत्नी निरपेक्षता जे जीव
यथार्थपणे जाणे ते जीव परथी निरपेक्ष थईने द्रव्यसन्मुख थयां विना रहे नहीं.