धिकभाव छे, ते आत्मानुं शुद्धस्वरूप नथी माटे ‘असद्भुत’ छे–एम समजतां उपाधिरहित शुद्ध स्वरूपनुं ज्ञान
थाय छे.
पूरुं कार्य करे (सूक्ष्म रागने पण जाणे तेवुं थई जाय) तो केवळज्ञान थई जाय अने त्यां विकार होय ज नहि.
माटे ‘विकार छे’ एम जे उपचरित असद्भुत व्यवहारनय जाणे छे ते एम सिद्ध करे छे के बीजो ख्यालमां न
आवे तेवो विकार पण छे; अने जेम आ बुद्धिपूर्वकनो विकार असद्भुत छे तेम ते अबुद्धिपूर्वकनो विकार
असद्भुत छे. आ रीते पहेलो नय बीजा नयनो साधक छे.
राग छे’ एम अबुद्धिपूर्वक राग जुदो पाडीने ख्यालमां नथी आवतो तेथी ते ‘अनुपचरित’ छे, पण ते
अबुद्धिपूर्वकनो राग पण असद्भुत छे एटले ते रागथी पण ज्ञान जुदुं छे एम आ नय सिद्ध करे छे; ए रीते
बीजो नय त्रीजा नयनो साधक छे. जो के बधाय नयोनुं परमार्थ तात्पर्य तो शुद्ध स्वभावनी द्रष्टि करवी ते ज छे,
पण नयोनो परस्पर संबंध बताववा पहेला नयने बीजा नयनो साधक कह्यो छे.
ओछुं, अने राग पण थाय छे. ते रागने ज्ञान जाणे छे पण हजी ज्ञाननो उपयोग तद्न सूक्ष्म थयो नथी तेथी
अव्यक्त रागने ते जुदो पकडी शकतो नथी, व्यक्तरागने पकडी शके छे. व्यक्तराग अव्यक्तरागने सिद्ध करे छे, ने
अव्यक्तरागने पण ‘असद्भुत’ कहेतां ते औपाधिकभाव छे, ज्ञाननुं मूळस्वरूप नथी एम सिद्ध थाय छे.
पण ज्ञान सामान्यने लीधे ज छे, एटले के ज्ञान परनुं नथी पण ज्ञान तो आत्मानुं ज छे. ‘ज्ञान परने जाणे
छे’ तेने उपचार कहीने एम बताव्युं के खरेखर ज्ञाननो संबंध पर साथे नथी पण ज्ञान तो ज्ञान ज छे एटले
ज्ञाननो संबंध त्रिकाळी गुण साथे छे. आ रीते उपचरित सद्भुतव्यवहार अनुपचरित सद्भुत व्यवहारने
साबित करे छे.
सामान्यज्ञान–स्वभावने साबित करे छे. पर्याय त्रिकाळी गुणने सिद्ध करे छे ने गुणमां विकार नथी एटले
विकारथी जीवनुं जुदापणुं सिद्ध थाय छे.–ए रीते, शुद्ध आत्मा द्रष्टिमां आवे ते आ अध्यात्मनयोनुं तात्पर्य छे.
थाय छे, अने मारा स्वभावमां ते असद्भुत छे एम जाणे तो तेनो निषेध थाय.
भेद पाडीने कथन करवुं ते व्यवहार छे, अने ज्ञान आत्मानुं त्रिकाळीस्वरूप छे तेथी ते व्यवहार अनुपचरित
सद्भुत छे. ‘ज्ञान ते आत्मा’ एम कहेनारो आ अनुपचरित सद्भुतव्यवहार पण ‘ज्ञायकआत्मा’ ने ज
साबित करे छे. आ नयमां गुणगुणीभेद होवा छतां ते ज्ञानने अभेद आत्मा तरफ लई जाय छे; ए रीते चोथो
प्रकार पांचमा प्रकारने साधे छे. ज्ञायक आत्माने द्रष्टिमां लेवो ते ज बधा नयोनुं तात्पर्य छे. ज्यारे व्यवहारना
भेदो उपरनुं लक्ष छोडीने अभेद आत्माने लक्षमां लीधो त्यारे व्यवहारद्वारा पण परमार्थने ज साध्यो–एम
कहेवाय छे. पण जो भेदरूप व्यवहारनो ज आश्रय करीने रोकाय