Atmadharma magazine - Ank 102
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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ः ११८ः आत्मधर्मः १२०
जाग्या वगर रहे नहीं. अहो! क्रमबद्ध पर्यायमां वस्तुओ परिणमी रही छे, ए निर्णयमां तो परम वीतरागता
छे, एकलो ज्ञायकभाव ज घूंटाय छे. ए ज्ञान अने वीतरागताना पुरुषार्थनी अज्ञानीने गंध पण नथी एटले ते
तेने एकांत नियतवाद कहे छे.
साधकने हजी अवस्थामां थोडीक नबळाई छे, परंतु परिपूर्ण स्वभाव सामर्थ्यना स्वीकारमां अवस्थानी
नबळाईनो के विकारनो निषेध छे. स्वभावना सामर्थ्यमां नबळाई केवी? स्वभावनुं सामर्थ्य कहेवुं अने वळी
तेमां नबळाई कहेवी ते तो ‘मारा मोढामां जीभ नथी’ एम बोलवा जेवुं थयुं! अहीं तो अखंड स्वभावनी
द्रष्टिमां पहेलां श्रद्धा खीले ने पछी चारित्र खीले–एवा भेदनी पण मुख्यता नथी. पोताना स्वरूपने प्राप्त करे
एवी वीर्यशक्ति आत्मामां त्रिकाळ छे, ने एवी एवी अनंत शक्तिथी अभेद आत्मा छे, ए आत्माना आश्रये
ज्ञानमात्र भावनुं परिणमन थतां एक साथे अनंती शक्तिओ निर्मळपणे खीली जाय छे.–आवो आत्मानो
अनेकान्त स्वभाव छे.
अहीं छठ्ठी वीर्यशक्तिनुं वर्णन पूरुं थयुं.
(आत्मानी प्रभुतानुं अद्भुत वर्णन आवता अंकमां वांचो)
* * *
‘आत्मा कोण छे ने कई रीते पमाय?’
(७)
श्री प्रवचनसारना परिशिष्टमां ४७ नयोद्वारा आत्मद्रव्यनुं वर्णन कर्युं छे
तेना उपर पूज्य गुरुदेवश्रीनां विशिष्ट अपूर्व प्रवचनोनो सार
(अंक १०० थी चालु)
*
(१३) स्थापनानये, आत्मानुं वर्णन
त्मद्रव्य स्थापनानये, मूर्तिपणानी माफक, सर्व पुद्गलोने अवलंबनारुं छे. जेम मूर्तिमां भगवाननी
स्थापना थाय छे तेम पुद्गलोमां आत्मद्रव्यनी स्थापना करी शकाय छे. जेम सीमंधर भगवाननी प्रतिमा छे ते
पुद्गल छे, तेमां कांई सीमंधर भगवाननो आत्मा नथी; सीमंधर भगवाननो आत्मा तो अत्यारे
महाविदेहक्षेत्रमां अर्हंतपदे समवसरणमां बिराजमान छे, ते आत्मा कांई अहीं आ प्रतिमामां नथी आवतो, पण
प्रतिमामां ‘आ सीमंधर भगवान छे’ एवी स्थापना द्वारा सीमंधर भगवाननो आत्मा ख्यालमां आवे छे.
सीमंधर भगवानना आत्मामां ते प्रकारनो धर्म छे. तेने स्थापनानय जाणे छे. जो भगवानना आत्मामां तेवो
धर्म न होय तो मूर्तिमां स्थापना द्वारा तेमनो आत्मा ख्यालमां न आवी शके. माटे आत्मा सर्व पुद्गलोने
अवलंबनारो छे–आम स्थापनानये समजवुं.
मूर्ति, चित्र वगेरे पुद्गलमां आत्मानी स्थापना करीने आत्मा जणाय तेवो आत्मानो धर्म छे. आत्मा
पुद्गलने अवलंबनारो छे एम अहीं कह्युं छे तेनो अर्थ एवो छे के पुद्गल साथे आत्माने एवा प्रकारनो
निमित्तनैमित्तिक संबंध छे के पुद्गलमां तेनी स्थापना करी शकाय छे पुद्गल मूर्तिक होवा छतां, तेमां स्थापना
द्वारा अमूर्तिक आत्मानुं लक्ष थाय छे एवो आत्मानो एक धर्म छे. आ धर्म सिद्धमां पण छे. सिद्धना आत्मानी
पण मूर्ति, चित्र वगेरेमां स्थापना थई शके छे. अहीं जिनमंदिरमां सिद्ध भगवाननी प्रतिमा छे, ते प्रतिमानी
आकृतिमां सिद्धभगवाननी स्थापना छे के ‘आ सिद्ध भगवान छे.’ आ रीते स्थापनानये आत्मा पुद्गलने
अवलंबे छे एम कहेवाय छे. वळी जुओ! आ पौद्गलिक चित्रमां स्थापना द्वारा ‘आ जीव छे’ एम बतावी
शकाय छे, ए रीते पुद्गलमां जीवनी स्थापना थई शके छे, अने जीवमां ते प्रकारनो धर्म छे.