Atmadharma magazine - Ank 102
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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चैत्रः २४७८ः ११९ः
वळी अहीं तो एम कह्युं छे के आत्मद्रव्य सर्व पुद्गलोने अवलंबनारुं छे; एटले के मात्र मूर्तिमां ज तेने
स्थापना थई शके ने बीजामां न थाय–एम नथी; परंतु फूल, लविंग, लाकडानी सोगठी वगेरे गमे ते पुद्गलमां
स्थापना करीने आत्मा समजावी शकाय छे. शतरंजनी सोगठीमां ‘आ राजा, आ हाथी, आ सिपाई’ इत्यादि
प्रकारे स्थापना कराय छे तेम कोई पण पुद्गलमां ‘आ आत्मा छे’ एम स्थापना थई शके छे. आत्मामां ते
जातनो धर्म छे.
जड–पुद्गलमां आत्मानी स्थापना करी शकाय छे एनो अर्थ एम न समजवो के ते जड वडे आत्मा
समजाय छे. समजनार तो पोताना ज्ञाननी ताकातथी ज समजे छे, पण तेने निमित्त तरीके कोईवार शब्दो होय
छे ने कोई वार स्थापना पण होय छे. समजनारने स्थापनानयथी आत्मा आवा प्रकारना धर्मवाळो जणाय छे.
जुओ, आ आत्मानो महिमा? दरेक आत्मा अनंत धर्मोनो धणी छे. पोताना धर्मनुं जेने भान नथी ते
बहारमां धर्म शोधवा जाय छे. पोताना आत्मामां ज आवा आवा अनंत धर्मो भरेला छे ए वात घणा जीवोए
तो सांभळी पण नहि होय.
पुद्गलमां आत्मानी स्थापना थई त्यां अज्ञानीने ते पुद्गलनो महिमा लागे छे, केम जाणे के
पुद्गलमांथी तेनो धर्म आवतो होय? पण भाई! पुद्गलमां जेनी स्थापना थई तेना धर्मने तो जो. जो
पुद्गलमां स्थापना थई शके तेवा प्रकारनो धर्म आत्मामां न होय तो तेनी स्थापना ज कयांथी थाय? माटे
आत्माना ते धर्मने जो, अने एवा अनंतधर्मो जेनामां एक साथे रहेला छे–एवा तारा आत्मानो महिमा प्रगट
कर. अनंत धर्मनो पिंड आत्मा जेवडो छे तेवडो जाणीने, ज्ञानमां तेनुं माहात्म्य आवतां ज्ञान सम्यक् थाय छे.
एवा सम्यग्ज्ञान वगर कदी साची शांति थती नथी.
अनादिथी आत्मा जेवो छे तेवो कदी जाण्यो नथी. ज्यांसुधी आत्मानुं साचुं ज्ञान न थाय त्यांसुधी तेनो
महिमा अने तेमां एकाग्रता केम थाय? ने आत्मामां एकाग्रता वगर भवथी नीवेडा थाय नहि. जेने चैतन्यनुं
भान नथी ते परनो महिमा करीने परमां एकाग्र थाय छे तेथी ते भवमां रखडे छे. चैतन्यवस्तु जेवी छे तेवी
जाणीने तेना महिमामां एकाग्र थाय तो कल्याण प्रगटे. पोताना कल्याण माटे शिष्यने जिज्ञासा थई छे तेथी
अहीं प्रश्न पूछया छे के प्रभो! आ आत्मा केवो छे? ते जिज्ञासु शिष्यने समजाववा माटे अहीं आचार्यदेवे
आत्मानुं विशेष वर्णन कर्युं छे.
भगवान आत्माने प्रसन्न करवा माटे तेने ओळखीने तेनो महिमा आववो जोईए. जो आत्मा करतां
जगतना कोई पण पदार्थनो महिमा के रुचि वधी जाय तो भगवान आत्मा प्रसन्न थाय तेम नथी. जेम कोई
राजाने अरजी आपवी होय तो तेमां ‘नेक नामदार, महाराजाधिराज,’ वगेरे विशेषणो लगाडवा पडे छे तेम ज
टिकिट चोंटाडवी पडे छे; तेम अहीं भगवान आत्मा चैतन्यराजा छे तेने अरजी करवा माटे–एटले के तेनो
अनुभव करवा माटे–तेना अनंत धर्मोरूपी विशेषणोथी ओळखीने तेनी रुचि करे तो ज ते जवाब आपे तेवो
छे; जो एक पण धर्मने ओछो माने तो भगवान आत्मा जवाब नहिं आपे एटले के तेनो अनुभव नहि थाय.
आत्मा पोताना अनंत धर्मोनो स्वामी छे पण पर वस्तुना कोई धर्मनो स्वामी आत्मा नथी, तेम ज
आत्माना धर्मनो कोई बीजो स्वामी नथी. आत्मानी मिल्कत केटली?–के पोताना अनंत धर्मो छे तेटली. पोताना
अनंत धर्मोमां आत्मा व्यापीने रह्यो छे, परमां ते रह्यो नथी ने तेनामां पर रह्यां नथी. आम आत्माना भिन्न
धर्मो वडे आत्माने ओळखीने श्रद्धा करे तो सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञान थाय; त्यारपछी ज आत्मामां एकाग्रता
रूप सम्यक्चारित्र होय. तेथी आत्माने ओळखाववा माटे अहीं तेना धर्मोनुं वर्णन चाले छे.
बारमा धर्ममां एम कह्युं के नामनये आत्मा शब्दब्रह्मथी वाच्य थाय तेवो छे. परम ब्रह्मनुं पूर्णस्वरूप
कहेनारी दिव्यवाणी ते शब्दब्रह्म छे. ते वाणीमां बधुंय आवे छे. आत्मामां एवो धर्म छे के आखो आत्मा
शब्दब्रह्मवडे कही शकाय छे. ते पूर्ण कहेनार तीर्थंकर देवाधिदेवनो ॐध्वनि छे ते शब्दब्रह्म छे. नामनयथी जोतां
आत्मा दिव्यध्वनिने स्पर्शनारो छे एटले के दिव्यध्वनिथी तेनुं स्वरूप वाच्य थाय छे एवो तेनो धर्म छे.
त्यारपछी स्थापनानयथी एम कह्युं के आत्मा सर्व पुद्गलोने अवलंबनारो छे, एटले के ज्यारे ज्यारे जे
जे पुद्गलोमां आत्मानी स्थापना करवामां आवे त्यारे ते ते पुद्गलोथी आत्मा जणाय एवो तेनो धर्म छे.