स्थापना करीने आत्मा समजावी शकाय छे. शतरंजनी सोगठीमां ‘आ राजा, आ हाथी, आ सिपाई’ इत्यादि
प्रकारे स्थापना कराय छे तेम कोई पण पुद्गलमां ‘आ आत्मा छे’ एम स्थापना थई शके छे. आत्मामां ते
जातनो धर्म छे.
छे ने कोई वार स्थापना पण होय छे. समजनारने स्थापनानयथी आत्मा आवा प्रकारना धर्मवाळो जणाय छे.
तो सांभळी पण नहि होय.
पुद्गलमां स्थापना थई शके तेवा प्रकारनो धर्म आत्मामां न होय तो तेनी स्थापना ज कयांथी थाय? माटे
आत्माना ते धर्मने जो, अने एवा अनंतधर्मो जेनामां एक साथे रहेला छे–एवा तारा आत्मानो महिमा प्रगट
कर. अनंत धर्मनो पिंड आत्मा जेवडो छे तेवडो जाणीने, ज्ञानमां तेनुं माहात्म्य आवतां ज्ञान सम्यक् थाय छे.
एवा सम्यग्ज्ञान वगर कदी साची शांति थती नथी.
भान नथी ते परनो महिमा करीने परमां एकाग्र थाय छे तेथी ते भवमां रखडे छे. चैतन्यवस्तु जेवी छे तेवी
जाणीने तेना महिमामां एकाग्र थाय तो कल्याण प्रगटे. पोताना कल्याण माटे शिष्यने जिज्ञासा थई छे तेथी
अहीं प्रश्न पूछया छे के प्रभो! आ आत्मा केवो छे? ते जिज्ञासु शिष्यने समजाववा माटे अहीं आचार्यदेवे
आत्मानुं विशेष वर्णन कर्युं छे.
राजाने अरजी आपवी होय तो तेमां ‘नेक नामदार, महाराजाधिराज,’ वगेरे विशेषणो लगाडवा पडे छे तेम ज
टिकिट चोंटाडवी पडे छे; तेम अहीं भगवान आत्मा चैतन्यराजा छे तेने अरजी करवा माटे–एटले के तेनो
अनुभव करवा माटे–तेना अनंत धर्मोरूपी विशेषणोथी ओळखीने तेनी रुचि करे तो ज ते जवाब आपे तेवो
छे; जो एक पण धर्मने ओछो माने तो भगवान आत्मा जवाब नहिं आपे एटले के तेनो अनुभव नहि थाय.
अनंत धर्मोमां आत्मा व्यापीने रह्यो छे, परमां ते रह्यो नथी ने तेनामां पर रह्यां नथी. आम आत्माना भिन्न
धर्मो वडे आत्माने ओळखीने श्रद्धा करे तो सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञान थाय; त्यारपछी ज आत्मामां एकाग्रता
रूप सम्यक्चारित्र होय. तेथी आत्माने ओळखाववा माटे अहीं तेना धर्मोनुं वर्णन चाले छे.
शब्दब्रह्मवडे कही शकाय छे. ते पूर्ण कहेनार तीर्थंकर देवाधिदेवनो ॐध्वनि छे ते शब्दब्रह्म छे. नामनयथी जोतां
आत्मा दिव्यध्वनिने स्पर्शनारो छे एटले के दिव्यध्वनिथी तेनुं स्वरूप वाच्य थाय छे एवो तेनो धर्म छे.