Atmadharma magazine - Ank 102
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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चैत्रः २४७८ः १११ः
अनेकान्तमूर्ति भगवान आत्मानी
केटलीक शक्तिओ
*
पः सुख शक्ति
चैतन्यमूर्ति भगवान आत्मामां अनंत शक्तिओ छे, तेमांथी केटलीक शक्तिओनुं आचार्यदेव वर्णन करे
छे; चार शक्तिओनुं वर्णन कर्युं, हवे पांचमी सुखशक्तिनुं वर्णन करे छे.
अनाकुळता जेनुं लक्षण छे एवी सुखशक्ति आत्मामां त्रिकाळी छे. कांई पण करवानी वृत्तिनुं उत्थान ते
आकुळता छे अने आकुळता ते दुःख छे. अशुभ के शुभ कोई पण वृत्ति रहित शांत निराकुळ दशा ते ज सुखनुं
स्वरूप छे. आत्मानी अनंत शक्तिओमां आवी सुखशक्ति पण भेगी ज छे.
प्रश्नः– जो आत्मामां आनंद त्रिकाळी भर्यो छे तो ते केम अनुभवमां आवतो नथी?
उत्तरः– जो स्वभावशक्तिनो विश्वास करीने तेनी सन्मुख थाय तो आनंदनो अनुभव थया विना रहे
नहि. पोताना स्वभावमां आनंद भर्यो छे त्यां शोधतो नथी पण बहारमां शोधे छे तेथी पोतानुं स्वभावसुख
जीवना अनुभवमां आवतुं नथी. ज्यां सुख भर्युं छे त्यां शोधे तो मळेने? जडमां तो क्यांय एवी सुखशक्ति
नथी के ते आत्माने सुख आपे; जडना लक्षे जे कृत्रिम शुभअशुभ आकुळतारूपे भावो थाय छे तेमां पण सुख
नथी; सुखशक्ति तो आत्मामां छे. आत्मा त्रिकाळ सुखनो समुद्र छे, तेने सुख माटे कोई बाह्य पदार्थनी पैसा
वगेरेनी–जरूर पडे तेवुं नथी. जे आवी सुखशक्तिवाळा आत्माने समजे तेने परमांथी सुखबुद्धि ऊडी जाय, ने
तेनुं ज्ञान स्वभाव तरफ वळी जाय; ते ज्ञानपरिणमनमां सुखशक्ति पण भेगी ज ऊछळे छे. एकेक शक्तिओ
जुदी नथी, ज्यां एक शक्ति छे त्यां ज अनंतशक्तिनो पिंड छे, एटले एक शक्तिने जोतां आखो चैतन्यपिंड
लक्षमां आवे छे. ज्यां ज्ञान परिणमे त्यां ज आनंद वगेरे अनंती शक्तिओ भेगी ज परिणमे छे–आवुं
अनेकांतस्वरूप छे. कोई कहे के अमने ज्ञान थयुं छे पण सुख क्यांय देखातुं नथी,–तो तेणे ज्ञान अने सुखने
सर्वथा जुदा मान्या छे एटले तेणे अनेकान्तस्वरूपी आत्माने जाण्यो नथी. अनंत धर्मोनो एक पिंड आत्मा छे
तेनी श्रद्धा–ज्ञान करतां सम्यग्ज्ञान परिणम्युं तेनी साथे ज सुख पण परिणमे छे; आत्मानुं सम्यग्ज्ञान थतां तेनी
साथे ज सिद्ध जेवा आनंदनो अंश अनुभवमां आवे छे. ए प्रमाणे अनंती शक्तिओ एक साथे निर्मळपणे
परिणमी रही छे.–कोने?–के जेने आत्मा उपर द्रष्टि छे तेने. अज्ञानी तो यथार्थ आत्माने मानतो ज नथी तेथी
तेने शक्तिओनुं निर्मळ परिणमन थतुं नथी.
आत्मानो स्वभाव त्रिकाळ सुखथी भरेलो छे, तेमां दुःखनो एक अंश पण नथी. परनुं कांई करवानी
आकुळता आत्मामां नथी. परनुं हुं कांई करी शकुं–एवी जेनी मान्यता छे ते जीव परनुं करवाना अभिमानथी
सदाय आकुळ ज रह्या करे छे. हुं कोई परनो कर्ता नथी, हुं तो ज्ञाता छुं–एम ज्ञातापणे रहेवामां अनाकुळ शांति
छे ते ज सुख छे. मारुं सुख परमां छे एवी जेनी बुद्धि छे ते, करोडो रूपिया होय ने मेवा–जांबु खातो होय तथा
सोनाना हिंडोळे हींचतो होय तोपण, आकुळताथी दुःखी ज छे. आनंदधाम एवा स्वतत्त्वनो महिमा छोडीने
परनो महिमा कर्यो ते ज दुःख छे. बहारमां प्रतिकूळता होवी ते कांई दुःखनुं लक्षण नथी. दुःख एटले आकुळता;
आकुळता कहो के मोह कहो. जेटलो मोह तेटलुं दुःख छे. आ दुःख आत्मानी क्षणिक पर्यायमां थाय छे, पण
आत्माना स्वभावमां दुःख नथी. आत्माना स्वभावमां तो एकलुं सुख ज भर्युं छे. जेने आकुळता जोईती होय–
दुःख जोईतुं होय तेने चैतन्यस्वभावमांथी ते नहि मळे; अने जेने निराकुळ सुख जोईतुं होय तेने
चैतन्यस्वभाव सिवाय बीजे क्यांयथी ते नहि मळे.