शक्तिमान आखो आत्मा बताववो छे, प्रतीतिनो–द्रव्य द्रष्टिनो विषय बताववो छे. आ तो आचार्यदेवना
महामंत्रो छे. जेम मोरलीनो मधुर नाद सांभळतां सर्प बहार नीकळे अने झेरने भूलीने डोलवा मांडे, तेम
चिदांनदी आत्माना अनंत गुणोना वर्णनरूपी आचार्यदेवनी सुमधुर मोरलीनो नाद सांभळतां भव्य आत्मा
जागृत थाय छे ने विकारने भूली जईने पोताना स्वरूपमां डोली ऊठे छे के अहो! हुं तो त्रिकाळ मारा
अनंतगुणोथी भरपूर छुं, मारा गुणो कोई बीजानी सहाय वगर मारा पोताना स्वभाव सामर्थ्यथी टकी रह्यां
छे.–आम पोतानी शक्तिनी संभाळ करीने आत्मा आनंदमां डोली ऊठे छे.
शक्ति होय तो तो ते त्रणेकाळ रागने रच्या ज करे! राग तो क्षणिक छे ने आ वीर्यशक्ति त्रिकाळ छे. दरेक
आत्मामां अनंत शक्ति छे, पण तेमां कोई पण शक्ति एवी नथी के जे संसारनी रचना करे. आत्माना
स्वरूपमां विकार भर्यो नथी, तो पछी आत्मानी शक्ति विकारने कयांथी रचे? जीव पर्यायबुद्धिथी ज संसार
परिणामने उत्पन्न करे छे, पर्यायबुद्धिमां ज संसारनी (विकारनी) रचना छे, स्वभावबुद्धिमां संसारनी रचना
नथी. अहीं स्वभाव द्रष्टिथी ४७ शक्तिओनुं वर्णन कर्युं छे. आत्मानी एवी थनगणाट करती वीर्यशक्ति छे के ते
द्रव्यद्रष्टिथी स्वरूपनी रचना ज करे छे, विकारने ते पोताना स्वरूपमां स्वीकारती ज नथी. आवी स्वभावशक्तिने
स्वीकारे तेनुं वीर्यबळ स्वभाव तरफ वळ्या विना रहे नहि अने तेने पर्यायमां पण निर्मळ निर्मळ पर्यायोनी ज
रचना थवा मांडे.
त्रिकाळ छे.
पोताना वीर्यसामर्थ्य वडे परनी रचना करी शकतो नथी. शरीरने टकाववुं के भाषानी रचना करवी ते
आत्माना वीर्यनुं कार्य नथी. आत्मानुं स्वभाववीर्य विकारने के जडने रचे नहि. पर्यायमां एक समय पूरती
विकारनी योग्यता छे ते आत्मवीर्यनो स्वभाव नथी, त्रिकाळी शक्तिमां विकारनी योग्यता पण नथी. आवी
स्वभाव शक्तिनी प्रतीत कराववा माटे अहीं द्रव्यद्रष्टिथी विकारमां अटकता वीर्यने आत्मानुं गण्युं ज नथी.
चैतन्यना द्रव्य–गुण–पर्यायनी रचना करे एवुं वीर्यशक्तिनुं सामर्थ्य छे, ते द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणे निर्मळ छे.
पहेलां पोताना आवा स्वभावनो विश्वास आवे तो तेना जोरे साधकदशानो विकास थाय. विकारने रचवानुं
ज पोताना वीर्यनुं सामर्थ्य जे माने तेणे तो आखा आत्माने ज विकारी मान्यो छे. कोई पण विकारमां एवी
ताकात नथी के ते लंबाईने एक समय करतां वधारे वखत टके; केम के आत्मानी वीर्यशक्ति विकारनी रचना
करती नथी. अहो, भगवान आत्मा विकारी भावनी रचना पण नथी करतो, तो पछी जगतनी सृष्टिनी
रचना तो कोण करे? कोइ पण आत्मा परनी रचना करे एम मानवुं ते तो मोटी मूढता छे, महा अधर्म छे.
जेमने अनंत आत्मबळ प्रगटयुं छे एवा सिद्ध भगवानमां पण परनी रचना करवानुं सामर्थ्य बिलकुल
नथी. पोताना स्वरूपनी रचना करवानुं पूरेपूरुं सामर्थ्य छे ने परनी रचना करवानुं जरा पण सामर्थ्य नथी–
एम अस्ति नास्ति छे. छ द्रव्यमय आ सृष्टि स्वयं–सिद्ध छे, कोई तेनो रचनार नथी. ‘रचना रचनार रे
धणी’ एम कहीने अज्ञानी लोको परने जगतनो रचनार माने छे पण अहीं तो कहे छे के दरेक आत्मा पोते
ज पोतानी रचना रचनारो धणी छे, स्वरूपनी रचना रचनारी आ वीर्यशक्ति छे. आत्मा पोते ज पोताना
द्रव्य–गुण–पर्यायनी रचना वीर्यशक्ति वडे करे छे, ए सिवाय कोई ईश्वर के निमित्तो आत्माना द्रव्य–गुण–
पर्यायनी रचना करनारा नथी. आवी वीर्यशक्ति