Atmadharma magazine - Ank 102
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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ः ११६ः आत्मधर्मः १०२
आत्मामां त्रिकाळ छे. आवी अनंतशक्तिओथी अभेदरूप आत्माने प्रतीतमां लेवो ते प्रथम धर्म छे.
* * *
ज्ञान, सुख, वीर्य वगेरे अनंत गुणो आत्मामां छे; ते बधा गुणोनो आधार आत्मा ज छे, कोई राग के
शरीरादिना आधारे ते गुणो रहेला नथी अने एकली पर्यायना आधारे पण रहेला नथी. जेम ते शक्तिओ–
टकवा माटे कोई बीजानो आधार राखती नथी तेम परिणमवा माटे पण कोई बीजानो आधार राखती नथी.
अहीं आत्मानी शक्तिओना वर्णनमां परनी अने विकारनी उपेक्षा छे.
आत्मामां ‘वीर्य’ नामनी शक्ति त्रिकाळ छे; वीर्य एटले आत्मबळ, ते आत्माना ज आधारे छे. शरीर
निर्बळ होय के बळवान होय ते आत्मशक्तिनुं कार्य नथी, शरीरथी तो आत्मानी शक्तिओ अत्यंत जुदी छे.
वर्तमान अवस्थानी रचना थाय तेमां ते अवस्थानुं स्वतंत्र सामर्थ्य छे, अवस्थानी रचना करे एवुं अवस्थानुं
वीर्य छे, त्रिकाळी वीर्यशक्तिना वर्तमान परिणमनमां ज वर्तमान अवस्थानी रचना करवानुं सामर्थ्य छे. जे
आम स्वीकारे तेनी द्रष्टि त्रिकाळीतत्त्व उपर जाय छे केमके वीर्यशक्ति एकली पर्याय जेटली नथी पण द्रव्य–गुण–
पर्याय त्रणेमां ते रहेली छे.
वीर्यशक्ति शक्ति कहो के पुरुषार्थ कहो, ते एक ज छे. आत्मानी दरेके दरेक पर्यायमां पुरुषार्थनुं परिणमन
भेगुं ज छे. पुरुषार्थ वगरनो आत्मा एक समय पण होतो नथी.
कोई एम कहे के ‘जैनो तो सर्वज्ञने माने छे तेथी तेमां पुरुषार्थ नथी; केम के सर्वज्ञभगवाने जोयुं हशे
त्यारे मोक्ष थशे, माटे मोक्षमार्गमां जीवनो पुरुषार्थ नथी’–तो ते मिथ्याद्रष्टि जीवनो ऊंधो तर्क छे. मोक्षमार्गमां
पुरुषार्थ नथी एम जे कहे छे तेणे मोक्षमार्गमां आत्मा ज नथी–एम मान्युं. केम के ज्यां पुरुषार्थ नथी त्यां
आत्मा ज नथी. अनंत शक्तिमांथी एक पण शक्तिने जो न माने तो तेणे आत्माने ज मान्यो नथी. एक
शक्तिनो निषेध करतां शक्तिमान् एवा आखा आत्मानो ज निषेध थई जाय छे. जो वीर्य–पुरुषार्थ न होय तो
मोक्षमार्गनी रचना कोण करे? स्वरूपनी रचनानुं सामर्थ्य तो वीर्यशक्तिमां छे. वळी जे पुरुषार्थने नथी मानतो
तेणे खरेखर सर्वज्ञने पण नथी मान्या; केम के सर्वज्ञ भगवाने तो मोक्षमार्गमां पुरुषार्थनुं परिणमन पण भेगुं
ज जोयुं छे, तेने जे न माने तेणे सर्वज्ञना ज्ञानने खरेखर कबूल्युं ज नथी, सर्वज्ञदेवनी ‘सर्वज्ञता’ नो निर्णय
करनारी पोतानी पर्यायमां पण अनंतो सम्यक्पुरुषार्थ रहेलो छे. जे जीवने पोतानो सम्यक्पुरुषार्थ नथी भासतो
ते जीवे सर्वज्ञने कबूल्या नथी. तेम ज पुरुषार्थवंत एवा पोताना आत्माने पण तेणे कबूल्यो नथी, ते तो
नास्तिक जेवो मिथ्याद्रष्टि छे.
वळी, बहारमां सारी सामग्री मळे के सारा निमित्तो मळे तो मारो पुरुषार्थ जागे–एवी जेनी बुद्धि छे
तेणे पण वीर्यशक्तिने आत्मानी नथी मानी पण परना आश्रये मानी छे. अहीं आचार्यभगवान कहे छे के हे
जीव! तारी अनंतशक्तिओ तारा आत्माना ज आश्रये परिणमी रही छे, माटे तुं तारा आत्मा सामे ज जो.
आत्मानी सन्मुख जोतां तारी बधी शक्तिओ निर्मळपणे खीली जशे.
आत्मानी वीर्यशक्तिनो स्वभाव एवो छे के ते स्वरूपनी ज रचना करे छे, विकारनी रचना करती नथी.
आत्मानी स्वरूपअवस्थानी रचना कोई पर करी शके नहि अने आत्मा कोई परनी रचना करी शके नहि. एक
समय पूरतो विकार ते तो कृत्रिम अटकतो भाव छे, विकारनी उत्पत्ति करे एवुं वीर्यशक्तिनुं स्वरूप नथी. जो के
राग–द्वेषमां अटके छे ते पण आत्मानुं वीर्य छे पण ते विकार जेटली ज वीर्यशक्ति नथी; वीर्यशक्ति त्रिकाळ छे,
ते त्रिकाळनी द्रष्टिमां एक समयना विकारनो अभाव छे, माटे अहीं विकारमां अटके तेने आत्मवीर्य गण्युं नथी,
विकारने पण आत्मा गण्यो नथी; द्रव्य–गुण अने तेमां अभेद थयेली निर्मळ परिणति तेने ज अहीं आत्मा
गण्यो छे.
आत्मानी वीर्यशक्ति पोताना द्रव्य–गुण–पर्यायने निज स्वरूपमां टकावी राखे छे. पोतानुं जीवत्व, श्रद्धा,
ज्ञान, चारित्र, आनंद, प्रभुत्व वगेरेनी रचना करे–तेने पामे–प्रगट करे– सरजे ते वीर्यशक्तिनुं कार्य छे. आत्मा
पोताना वीर्यगुणथी पोतानी सृष्टिने सरजे छे, पण परनी सृष्टिनो सरजनहार आत्मा नथी.
वीर्यशक्ति आत्माना बधा गुणोमां व्यापक छे तेथी आत्मानो दरेक गुण पोते पोतानी पर्यायने
सर्जवामां समर्थ छे. देव–गुरु–शास्त्र वगेरे कोई निमित्तो आवीने आत्मानी पर्यायने सर्जे ए वात तो दूर रहो,
पुण्य वडे आत्मानी निर्मळपर्याय सर्जाय ए वात पण