Atmadharma magazine - Ank 103
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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वैशाखः २४७८ः १३पः
थई गयो. हवे ते पर्यायना पदनी सामे मुख्यपणे जोतो नथी, द्रव्यनी मुख्यतानी भावनामां अल्पकाळे तेनी
मुक्ति थई जाय छे.
ज्यां द्रव्यना स्वभावने नक्की करीने ज्ञान तेमां एकाग्र थयुं त्यां वच्चे तीर्थंकरादि केवी पदवी आवे छे
तेना उपर ज्ञाननुं वजन न रह्युं. ज्ञाने आखा द्रव्यने विश्वासमां लई लीधुं, ते द्रव्यमां जे जे पद भर्यां छे ते
बहार आव्या विना रहेशे नहि. जेणे आखुं द्रव्य नक्की कर्युं तेने द्रव्यमांथी केवळज्ञान अने सिद्धपद तो अल्पकाळे
आव्या विना रहे ज नहि; वच्चे तीर्थंकरादि पद तो कोईने होय ने कोईने न पण होय. वच्चे तीर्थंकरादि जे पद
हशे ते आव्या विना रहेशे नहि.
जे द्रव्यमां जे पर्याय थवानो धर्म छे ते द्रव्यमां ते पर्याय थया विना रहेवानी नथी. जे जे पर्याय थवानी
छे ते प्रकारनो द्रव्यनो अनादि स्वभाव ज छे एटले प्राप्तनी प्राप्ति छे, द्रव्यमां जे पर्याय थवानो स्वभाव छे ते
ज पर्याय व्यक्त थाय छे. वस्तुनो आवो धर्म अनादि अनंत छे. आवा वस्तु धर्मने नक्की करतां त्रिकाळी द्रव्यनुं
सम्यग्ज्ञान थाय छे, ते सम्यग्ज्ञाननो स्व–परप्रकाशक स्वभाव छे. अनंत धर्मवाळा वस्तु स्वभावनो निर्णय
करीने साधक जीव स्वभावना आश्रये ज्ञाताद्रष्टापणे स्व–पर प्रकाशक रह्यो, त्यां तेना ज्ञानना स्व–परप्रकाशक
सामर्थ्यनो जेवो विकास हशे तेवा ज ज्ञेयो आवशे, अने द्रव्यमां तीर्थंकर, गणधर, चक्रवर्ती वगेरे जे पर्याय
थवानो धर्म छे ते ज पर्याय थशे.
कोई आत्मद्रव्य चक्रवर्ती पद पामीने मोक्ष जाय एवा अनादि स्वभाववाळुं होय ने कोई द्रव्य तीर्थंकर
पद पामीने मोक्ष जाय एवा अनादि स्वभाववाळुं होय, कोई द्रव्य चक्रवर्ती पद तेमज तीर्थंकरपद बन्ने पद
पामीने मोक्ष जाय एवा स्वभाववाळुं होय, कोई गणधर थईने मोक्ष जाय, कोई बळदेव थईने मोक्ष जाय, कोई
अनुक्रमे बळदेव अने चक्रवर्ती एम बंने पद पामीने मोक्ष जाय–ए प्रमाणे द्रव्यनो ते प्रकारनो अनादि स्वभाव
ज होय छे; अने कोई द्रव्य चक्रवर्ती, बळदेव के तीर्थंकरादि कोई पद पाम्या वगर सामान्य केवळीपणे मोक्ष पामे–
एवो पण तेनो अनादि स्वभाव ज छे. कोई जीव एक ज भवमां चक्रवर्तीपद अने तीर्थंकरपद–ए बंने पद पामे;
पण बळदेव के वासुदेवपद होय अने ते ज भवे तीर्थंकर पद पामे–एम न बने; तीर्थंकरपणे मोक्ष जनार ते ज
पर्याय पामीने मोक्ष जाय, ते पर्याय फरे नहि, बळदेव थईने मोक्ष जवानी योग्यतावाळो जीव बळदेव पर्याय
पामीने ज मोक्ष जाय ने तीर्थंकर थईने न जाय;–ए प्रमाणे जे द्रव्यमां जे पर्याय थवानो स्वभाव होय ते ज
पर्याय थाय छे. कोई कहे के एक आत्मा तीर्थंकर थईने मोक्ष पामे ने बीजो आत्मा एम ने एम सामान्यपणे
मोक्ष पामे,–गुणमां बंने सरखा, छतां आम केम? तो अहीं कहे छे के–तेवी पर्याय थवानो ते द्रव्यनो अनादिधर्म
छे. अहो! आमां निर्विकल्पता छे–वीतरागता छे, ‘आम केम’ एवो विषमभावनो प्रश्न रहेतो नथी. ‘आम
केम?’–के एवो ज ए द्रव्यनो स्वभाव! एटले पोताने पोताना द्रव्यस्वभावनी सन्मुख जोईने ज्ञाताद्रष्टाभाव
थई जाय छे, एवुं आ निर्णयनुं फळ छे.
परने लीधे मारी पर्याय थाय अथवा तो हुं परनी पर्यायमां कांई फेरफार करी दउं–एवी मान्यताना
भावमां तो मिथ्यात्वनी अनंती विषमता छे, अने हुं मारी पर्यायोमां फेरफार करुं–एवी जे पर्यायने फेरववानी
बुद्धि छे तेमां पण पर्यायद्रष्टिनी विषमता छे. धर्मी जीव तो जाणे छे के मारी जे पर्याय थवानी छे ते मारा
द्रव्यमांथी ज थवानी छे अने मारा द्रव्यना स्वभाव प्रमाणे ज ते पर्याय थवानी छे; एटले द्रव्य–स्वभावना
आश्रये तेने पर्यायबुद्धिनो विषमभाव टळी गयो छे. ते साधक जीव पोतानी एकेक पर्यायने जुदी पाडीने भले न
जाणी शके, पण सामान्यपणे तेने एवो निःसंदेह निर्णय थई गयो छे के मारी बधी पर्यायो थवानो धर्म मारा
द्रव्यमां ज भर्यो छे; आथी ते साधकना अभिप्रायमां सदा स्वद्रव्यनो ज आश्रय वर्ते छे, ने ते ज मोक्षमार्ग छे.
जुओ, आमां क्यांय कांई फेरववुं नथी; द्रव्यशक्ति अनादि–अनंत छे, तेने फेरववी नथी, ते द्रव्यमां जे
जे पर्यायो थवानो धर्म छे ते पर्यायने फेरववी नथी, शुभाशुभ विकल्पने फेरववा नथी. निमित्तने फेरववा नथी,
संयोगने फेरववा नथी–ए बधुं जेम छे तेम छे, तेने नक्की करीने पोते पोताना अंर्त स्वभावसन्मुख थईने
वीतरागी ज्ञाताभावे रही गयो त्यां पोतानी पर्याय मोक्षमार्ग अने मोक्षरूपे परिणमी जाय छे.–आवी धर्मनी
रीत छे. बधुं जेम छे तेम नक्की करतां पोतानी संयोगीद्रष्टि छूटीने स्वभावद्रष्टि थई जाय छे