Atmadharma magazine - Ank 103
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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ः १३४ः आत्मधर्मः १०३
कोई चक्रवर्ती थाय, कोई तीर्थंकर थाय, कोई एक ज भवमां चक्रवर्ती अने तीर्थंकर बंने पदवी पामे, कोई
सामान्य केवळी थईने मोक्ष पामे,–ए वगेरे पर्यायोनी योग्यता ते ते द्रव्यना स्वभावमां अनादिथी ज छे.
पर्याय अपेक्षाए ते पर्याय नवी प्रगटती देखाय छे. पण द्रव्यना स्वभावमां तो अनादिथी ज ते पर्याय
थवानुं नक्की थई गयेलुं छे. आवुं द्रव्यनुं स्वरूप जे नक्की करे तेने पर्यायबुद्धि छूटीने द्रव्यनी प्रतीत थई
गई, ते साधक थई गयो, हवे द्रव्यना आश्रये तेने अल्पकाळमां सिद्ध पर्याय प्रगटी जशे एटले द्रव्यनये तो
ते वर्तमानमां सिद्ध थई गयो. आ रीते, साधक जीव आ नयो वडे पोते पोताना आत्माने जुए छे–एवी
अहीं वात छे; अज्ञानीने तो नय होता नथी. कोई जीव भविष्यमां सिद्ध थवानो छे पण वर्तमानमां अज्ञानी
छे; तो ते अज्ञानभाव वखते पण भविष्यमां सिद्ध थवानो तेना द्रव्यनो स्वभाव छे, पण तेने पोताने तेनी
खबर नथी; बीजो ज्ञानी पोताना ज्ञाननी निर्मळताथी तेने जाणी ल्ये छे. वर्तमान अज्ञान–दशा होवा छतां
भविष्यमां भगवान थवानो ते ज आत्मद्रव्यनो धर्म तेनामां वर्तमान पडयो छे–आम जे जाणे तेने
पर्यायबुद्धिथी राग–द्वेष थाय नहि ने पोतामां वर्तमान अज्ञान–दशा रहे नहि. वर्तमान पर्यायमां
अज्ञानीपणुं अने वळी ते ज क्षणे तेनामां भविष्यमां सिद्धपर्याय थवानो धर्म!–ए धर्मने कोनी सामे जोईने
नक्की करशे? वर्तमानमां अज्ञानी–पर्याय छे तेनी सामे जोईने कांई भविष्यनी सिद्धपर्यायनो निर्णय थाय
नहि. सिद्धपर्याय थवानी ताकात तो द्रव्यना स्वभावमां भरी छे, एटले पोतामां द्रव्यस्वभावनो निर्णय थया
विना ‘आ जीव भविष्यमां सिद्ध थवानो छे’ एवो सामा जीवना धर्मनो निर्णय थई शके नहि. आ रीते,
भविष्यनी पर्यायपणे जणाय एवो द्रव्यनो स्वभाव छे तेने जे जाणे ते पोते तो वर्तमानमां साधक थई जाय
छे. वस्तुमां जे पर्यायो थाय छे ते पर्यायो थवानो स्वभाव तो तेनामां अनादिथी एटले वस्तुमां प्राप्तनी ज
प्राप्ति छे. द्रव्यनो स्वभाव ज अनादिअनंत पर्यायोथी व्यवस्थित छे.
आत्मामां भूतकाळे जे पर्यायो थई के भविष्यकाळे जे पर्यायो थशे ते ते पदनो पदवीधर आत्मा पोते छे;
जीवद्रव्यनो स्वभाव ज एवो छे के द्रव्यनये ते भूतभावी पर्यायोपणे जणाय छे. जे जीवने भविष्यमां जे पर्याय
थवानी ज नथी ने भूतकाळमां पण थई नथी तेनामां ते जातनी पर्याय थवानो धर्म ज अनादि अनंत नथी;
अने जे जीवने भविष्यमां जे जातनी पर्याय थवानी छे तेनामां ते जातनी पर्याय थवानो धर्म अनादिथी ज
रहेलो छे. द्रव्यनये जे द्रव्यमां जे पदवी स्थित छे ते पलटे नहि, अने जे पदवी न होय ते कदी थाय नहि. आमां
क्रमबद्ध पर्यायनो महा सिद्धांत पण समाई जाय छे.
अहो! भावी पर्यायपणे वर्तमानमां लक्षित थाय एवो पण द्रव्यनो धर्म छे; अनादि अनंत काळना
समयोमां जेवा जेवा पर्यायो छे तेवो द्रव्यनो अनादि स्वभाव ज छे; एटले ‘हुं आवी पर्यायरूपे थाउं’–एवी
पर्यायनी मागणी (पर्यायनी भावना) ज यथार्थ नथी. पण पर्याय थवानो धर्म द्रव्यमां छे–एम द्रव्यने लक्षमां
लईने तेनी भावनामां एकाग्र थतां ज्ञान निर्विकल्प थाय छे ने निर्मळ पर्याय प्रगटी जाय छे. ज्ञानीनी द्रष्टिमां
द्रव्यनी ज भावना छे, तेने पर्यायनी बुद्धि नथी एटले आवी पर्यायने टाळुं ने आवी पर्याय प्रगट करुं–एवो
पर्याय बुद्धिनो विषमभाव के खदबदाट तेने होतो नथी. ज्ञानी मोक्षनी भावना भावे छे–एम क्यारेक
व्यवहारथी कहेवाय पण खरेखर तो ज्ञानीनी द्रष्टिमां अखंड द्रव्यनी ज भावना छे. भविष्यनी मोक्ष पर्याय
थवानो धर्म द्रव्यमां पडयो छे, तेथी ते द्रव्यनी भावनामां मोक्षपर्याय खीली जाय छे. ‘ज्ञानीने बंध–मोक्ष प्रत्ये
समभाव छे’ एनो आशय एम छे के ज्ञानीने अखंड द्रव्यनी भावनामां ‘बंध टाळुं ने मोक्ष करुं’ एवो
पर्यायबुद्धिनो विकल्प नथी. आ रीते द्रव्यनी भावनामां ज मोक्षनो वीतरागी पुरुषार्थ आवी जाय छे; पण
पर्यायनी भावनामां तो रागनी उत्पत्ति थाय छे.
त्रणकाळनी पर्यायपणे द्रव्य जणाय छे–एवो द्रव्य स्वभाव जेणे नक्की कर्यो तेने पर्यायनी भावना रहेती
नथी पण स्वभाव बुद्धिथी ज तेनुं परिणमन थाय छे एटले क्षणे क्षणे तेनी पर्याय निर्मळ थती जाय छे; अमुक
पर्यायने फेरवीने अमुक पर्याय करुं–एवी पर्यायबुद्धि तेने रहेती नथी. पर्यायो तो द्रव्यना स्वभाव प्रमाणे थाय
छे ने द्रव्यनो स्वभाव अनादि अनंत स्वयंसिद्ध छे.–जेणे आवो द्रव्यस्वभाव नक्की कर्यो तेनुं ज्ञान स्वभावना
आश्रये निर्मळ थई ज गयुं अने तेने मोक्षमार्ग शरू