Atmadharma magazine - Ank 103
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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वैशाखः २४७८ः १३३ः
‘द्रव्यस्वभावनुं’ खास वर्णन
–जेमां क्रमबद्धपर्यायनो मुख्य सिद्धांत पण
विशिष्टपणे समजाई जाय छे
*
चोवीस भगवंतो अत्यारे कांई तीर्थंकरपणे विचरता नथी, अत्यारे तो तेओ सिद्धदशामां बिराजे छे,
छतां वर्तमानमां तेमने तीर्थंकरपणे लक्षमां लईने तेमनी स्तुति पूजा करवी ते द्रव्यनय छे; अने भूतकाळनी
तीर्थंकरादि पर्यायपणे अत्यारे लक्षमां आवे छे एवो ते आत्मद्रव्यमां धर्म छे. ए ज प्रमाणे भविष्यकाळनी
पर्यायपणे पण लक्षमां आवे एवो द्रव्यनो धर्म छे. जेम के श्रेणिक राजानो आत्मा अत्यारे तो नरकमां छे, ते
भविष्यमां तीर्थंकर थवाना छे. ‘आ तीर्थंकर छे’ एम भविष्यनी तीर्थंकरपर्यायपणे तेमने अत्यारे लक्षमां लेवा
ते द्रव्यनय छे. त्यां भविष्यनी तीर्थंकरपर्यायपणे अत्यारे लक्षमां आवे छे तेवो ते आत्मामां धर्म छे. वर्तमानमां
तो नरकपर्याय होवा छतां, भूतकाळनी श्रेणिकपर्यायरूपे तेम ज भविष्यकाळनी तीर्थंकरपर्यायरूपे ते आत्मा
ख्यालमां आवे छे एवो तेनो एक धर्म छे.
श्री कुंदकुंद भगवान पहेलां मुनिदशामां हता, अत्यारे एमनो आत्मा स्वर्गमां छे; पूर्वनी
मुनिदशारूपे तेमना आत्माने अत्यारे लक्षमां लेवो ते द्रव्यनय छे. आ भूतकाळनी पर्यायनी वात करी, ते
ज प्रमाणे भविष्यनी पर्यायनुं पण समजवुं. द्रव्यमां त्रणे काळनी पर्यायो निश्चित छे; जो द्रव्यनी
त्रणेकाळनी पर्यायो निश्चित न होय तो भूत–भाविपर्यायोपणे तेनुं ज्ञान थई शके नहि. द्रव्यनी
त्रणेकाळनी पर्यायो निश्चित छे एम नक्की कर्युं तेमां पुरुषार्थ ऊडी जतो नथी, पण तेमां तो द्रव्यनी
सन्मुखता थईने मोक्ष–मार्गनो अपूर्व पुरुषार्थ प्रगटी जाय छे. केम के भविष्यनी पर्याय थवानो धर्म तो
द्रव्यनो छे, तेथी भविष्यनी पर्यायनो निर्णय करवा जतां द्रव्यनी सन्मुख थईने द्रव्यनो ज निर्णय थई जाय
छे एटले तेमां द्रव्यद्रष्टिनो पुरुषार्थ आवी जाय छे. द्रव्य तरफ वलण थईने द्रव्य–पर्यायनी एकता थई ते
ज मोक्षमार्गनो पुरुषार्थ छे, एनाथी जुदो बीजो पुरुषार्थ नथी.
जे द्रव्यमां चक्रवर्तीपणुं, तीर्थंकरपणुं, सिद्धपणुं वगेरे पर्यायो थाय छे ते द्रव्यमां तेवो स्वभाव
अनादिथी ज छे. तीर्थंकर थनारा अमुक आत्माओ ज होय छे अने तेमने ज तीर्थंकर–नामकर्म बंधाय छे;
ए सिवाय बीजा सामान्य जीवो सोळ भावना भावीने तीर्थंकर–नामकर्म बांधवा मागे तो एम कांई
तीर्थंकरनामकर्म बंधातुं नथी. तीर्थंकर थनारा खास आत्मामां ज तीर्थंकर पर्याय थवानो अनादि स्वभाव
होय छे. ए ज प्रमाणे चक्रवर्तीपणुं, गणधरपणुं, बळदेवपणुं, वासुदेवपणुं, वगेरे पर्यायो थवानुं पण ते ते
प्रकारना खास आत्मामां अनादिथी सिद्ध थयेल छे, एवो ते ते द्रव्यनो अनादिस्वभाव छे. ते तीर्थंकरपणुं
वगेरे पर्यायो ज्यारे प्रगट होय त्यारे तो ते भावनयनो विषय छे. अने ते पर्याय प्रगट थया पहेलां
अथवा तो प्रगट थई गया पछी ते पर्यायपणे द्रव्यने जाणवुं तेनुं नाम द्रव्यनय छे. कोई जीवो भूतकाळमां
तीर्थंकर थई गया अने कोई जीवो भविष्यमां तीर्थंकर थशे, तेओ वर्तमानमां ‘आ जीव तीर्थंकर छे’ एम
भूत–भावी पर्यायपणे लक्षमां आवे छे, –एवो ते द्रव्यनो धर्म छे; अने ते धर्मद्वारा आत्माने लक्षमां
लेनारा ज्ञानने द्रव्यनय कहेवाय छे.
बधा जीवोनी पर्यायो सरखी होती नथी, जुदी जुदी थाय छे; एवी पर्याय थवानो द्रव्यनो स्वभाव
अनादिथी नक्की थई गयेलो छे. द्रव्यनी पर्यायनो अनादि संततिप्रवाह नक्की थई गयेलो छे; तेमां कांई आडुं–
अवळुं के फेरफार थाय नहि. कोई जीव बळदेव थाय,