Atmadharma magazine - Ank 103
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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ः १३२ः आत्मधर्मः १०३
‘आत्मा कोण छे ने कई रीते पमाय?’
(८)
श्री प्रवचनसारना परिशिष्टमां ४७ नयो द्वारा
आत्मद्रव्यनुं वर्णन कर्युं छे तेना उपर पूज्य गुरुदेवश्रीनां
विशिष्ट अपूर्व प्रवचनोनो सार
(अंक १०२थी चालु)
*
श्री प्रवचनसारना परिशिष्टमां जिज्ञासु शिष्य पूछे छे के–प्रभो! ‘आ आत्मा कोण छे
अने कई रीते प्राप्त कराय छे?’ तेना उत्तरमां श्री आचार्यदेव कहे छे के ‘आत्मा अनंत
धर्मोवाळुं एक द्रव्य छे, अने अनंत नयात्मक श्रुतज्ञान प्रमाणपूर्वक स्वानुभव वडे ते जणाय
छे.’ आवा आत्मद्रव्यनुं अहीं ४७ नयोथी वर्णन चाले छे; तेमां द्रव्यनय, पर्यायनय, अस्तित्व–
नास्तित्व आदि सप्तभंगीना सात नयो, विकल्पनय, अविकल्पनय, नामनय अने
स्थापनानय–ए तेर नयोथी आत्मद्रव्यनुं जे वर्णन कर्युं तेनुं विवेचन अत्यारसुधीमां आवी गयुं
छे. त्यार पछी आगळनुं अहीं आपवामां आवे छे.
*
(१४) द्रव्यनये आत्मानुं वर्णन
आत्मद्रव्य अनंत धर्मस्वरूप छे; तेने द्रव्यनयथी जोतां, बाळक शेठनी माफक अने श्रमण राजानी माफक
अनागत अने अतीत पर्याये ते प्रतिभासे छे. जेम कोई बाळक भविष्यमां शेठ थवानो होय त्यां ‘आ शेठ छे’
एम भाविपर्यायपणे ते ख्यालमां आवे छे, तथा कोई जीव पहेलां राजा होय ने पछी मुनि थई गयो होय त्यां
‘आ राजा छे’ एम भूतकाळनी पर्यायपणे ते ख्यालमां आवे छे, तेम द्रव्यनयथी जीवद्रव्य पोतानी भावी तेम
ज भूत पर्यायोपणे ख्यालमां आवे छे–एवो तेनो धर्म छे.
आत्मा वर्तमान पर्यायपणे ज जणाय ने भूत–भावी पर्यायोपणे अत्यारे न जणाय–एम नथी; द्रव्य
पोतानी भूत–भविष्यनी पर्यायोपणे पण वर्तमानमां जणाय छे एवो तेनो धर्म छे अने ज्ञाननो पण त्रण
काळने जाणी लेवानो स्वभाव छे. ‘भविष्यनी पर्याय ज्यारे थाय त्यारे तेने जाणे, अत्यारे न जाणे’ एम जे
माने तेने सर्वज्ञनी के वस्तुना स्वभावनी खबर नथी. कोई आत्माने भविष्यमां सिद्धपर्याय थवानी होय, त्यां
‘आ आत्मा सिद्ध छे’ एम भाविपर्यायपणे वर्तमानमां द्रव्य जणाय छे. भूत–भविष्यनी पर्यायोपणे
वर्तमानमां जणाय एवो द्रव्यनो धर्म छे, ने ते धर्मने जाणनार श्रुतज्ञानने द्रव्य नय कहे छे.
पहेलो द्रव्यनय कह्यो हतो अने आ चौदमो द्रव्यनय कह्यो ते बंनेना विषयमां फेर छे. पहेलां जे द्रव्यनय
कह्यो तेनो विषय तो सामान्य चैतन्यमात्र द्रव्य छे, अने आ द्रव्यनयनो विषय तो भूत–भावी पर्यायवाळुं द्रव्य
छे, एटले अहीं पर्यायनी वात छे.
द्रव्यनी जे जे पर्यायो भूतकाळमां थई अने जे जे पर्यायो भविष्यमां थवानी छे ते ते पर्यायोपणे द्रव्य
वर्तमानमां जणाय एवो तेनो स्वभाव छे. जे द्रव्यमां जे जे जातनी भविष्यनी पर्याय थवानी छे ते ते जातनो
धर्म ते द्रव्यमां त्रिकाळ पडयो छे. भविष्यनी पर्यायो तो तेना काळे थशे, पण जे पर्यायो थवानी छे तेवो धर्म तो
वस्तुमां अनादि अनंत छे ज. बधा द्रव्योमां पोतपोतानी त्रिकाळी पर्यायो थवानो धर्म पडयो छे. भविष्यमां
कोई आत्मा सिद्ध थवानो होय अने अत्यारे ते निगोदमां पडयो होय, ते निगोदना आत्मामां पण भावी
सिद्धपर्याय थवानो धर्म तो वर्तमानमां पडयो छे. वर्तमानमां तेने सिद्धपर्याय प्रगट नथी पण भविष्यमां जे
सिद्धपर्याय थवानी छे ते पर्याय थवानो धर्म तो तेनामां अत्यारे पण रहेलो छे.
श्री ऋषभदेव, महावीर वगेरे भगवंतोना आत्माने अत्यारे तो सिद्धदशा वर्ते छे; ते सिद्धजीवोने पूर्वे
तीर्थंकरत्व पर्याय हती; द्रव्यनयथी तेमनो आत्मा अत्यारे भूतकाळनी तीर्थंकरपर्यायपणे ओळखाय छे. ऋषभादि