विशिष्ट अपूर्व प्रवचनोनो सार
धर्मोवाळुं एक द्रव्य छे, अने अनंत नयात्मक श्रुतज्ञान प्रमाणपूर्वक स्वानुभव वडे ते जणाय
छे.’ आवा आत्मद्रव्यनुं अहीं ४७ नयोथी वर्णन चाले छे; तेमां द्रव्यनय, पर्यायनय, अस्तित्व–
नास्तित्व आदि सप्तभंगीना सात नयो, विकल्पनय, अविकल्पनय, नामनय अने
स्थापनानय–ए तेर नयोथी आत्मद्रव्यनुं जे वर्णन कर्युं तेनुं विवेचन अत्यारसुधीमां आवी गयुं
छे. त्यार पछी आगळनुं अहीं आपवामां आवे छे.
एम भाविपर्यायपणे ते ख्यालमां आवे छे, तथा कोई जीव पहेलां राजा होय ने पछी मुनि थई गयो होय त्यां
‘आ राजा छे’ एम भूतकाळनी पर्यायपणे ते ख्यालमां आवे छे, तेम द्रव्यनयथी जीवद्रव्य पोतानी भावी तेम
काळने जाणी लेवानो स्वभाव छे. ‘भविष्यनी पर्याय ज्यारे थाय त्यारे तेने जाणे, अत्यारे न जाणे’ एम जे
माने तेने सर्वज्ञनी के वस्तुना स्वभावनी खबर नथी. कोई आत्माने भविष्यमां सिद्धपर्याय थवानी होय, त्यां
‘आ आत्मा सिद्ध छे’ एम भाविपर्यायपणे वर्तमानमां द्रव्य जणाय छे. भूत–भविष्यनी पर्यायोपणे
वर्तमानमां जणाय एवो द्रव्यनो धर्म छे, ने ते धर्मने जाणनार श्रुतज्ञानने द्रव्य नय कहे छे.
छे, एटले अहीं पर्यायनी वात छे.
धर्म ते द्रव्यमां त्रिकाळ पडयो छे. भविष्यनी पर्यायो तो तेना काळे थशे, पण जे पर्यायो थवानी छे तेवो धर्म तो
वस्तुमां अनादि अनंत छे ज. बधा द्रव्योमां पोतपोतानी त्रिकाळी पर्यायो थवानो धर्म पडयो छे. भविष्यमां
कोई आत्मा सिद्ध थवानो होय अने अत्यारे ते निगोदमां पडयो होय, ते निगोदना आत्मामां पण भावी
सिद्धपर्याय थवानो धर्म तो वर्तमानमां पडयो छे. वर्तमानमां तेने सिद्धपर्याय प्रगट नथी पण भविष्यमां जे
सिद्धपर्याय थवानी छे ते पर्याय थवानो धर्म तो तेनामां अत्यारे पण रहेलो छे.