
अनेकांतपणुं छे. अहीं ज्ञानमात्र भावनी साथे रहेला धर्मोनुं वर्णन चाले छे.
(स्वाधीनताथी) शोभायमानपणुं जेनुं लक्षण छे एवी प्रभुत्वशक्ति आत्मामां त्रिकाळ छे. जेम आत्मामां
ज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्य, जीवन वगेरे शक्तिओ छे तेम आ प्रभुत्वशक्ति पण छे. आत्माना द्रव्य–गुण–
पर्याय त्रणेमां प्रभुता रहेली छे. आत्मामां क्यांय पामरता नथी पण प्रभुता छे; द्रव्यमां प्रभुत्व छे,
ज्ञानादि अनंतगुणोमां प्रभुत्व छे ने पर्यायमां पण प्रभुत्व छे. द्रव्य–गुण ने पर्याय त्रणेनी स्वतंत्रताथी
आत्मा शोभी रह्यो छे. आत्माना द्रव्यनी गुणनी के पर्यायनी प्रभुताना प्रतापने खंडित करवा कोई समर्थ
नथी. कोई निमित्त वगेरे परवस्तुथी के पुण्यथी आत्मा शोभतो नथी पण पोतानी अखंड प्रभुताथी ज
आत्मा शोभे छे. जेटला प्रभु थया ते बधाय पोताना आत्मानी प्रभुताने जाणी–जाणीने ज थया छे,
प्रभुता क्यांय बहारमांथी नथी आवी. पामरतामांथी प्रभुता नहि आवे, पण आत्मस्वभाव त्रिकाळ
प्रभुतानो पिंड छे तेमांथी ज प्रभुता आवशे.
आत्मद्रव्यने अंदरमां शुद्ध चैतन्यमात्र देखे छे ज.” एटले पोताना शुद्धचैतन्य मात्र आत्मस्वभावने देखवो ते
ज आ बधाय नयोनुं तात्पर्य छे.
वर्तमानपर्याय जेटलुं ज नथी पण ते तो त्रणकाळनी पर्यायना सामर्थ्यनो पिंड छे. वर्तमान पर्याय ज जणाय
ने भूत–भविष्यनी पर्यायो ज्ञानमां न जणाय–एम नथी, वर्तमान पर्यायनी माफक भूत–भविष्यनी पर्यायो
पण ज्ञानमां जणाय छे. श्रुतज्ञानथी सामान्यपणे एम ख्यालमां आवे छे के आ द्रव्ये पूर्वे अनंत भवो कर्या
छे; ने जो विशेष निर्मळता थाय तो श्रुतज्ञानीने पूर्वना असंख्य वर्षोना अनेक भवो ख्यालमां आवी जाय
छे. जीव अनादिनो छे ने तेनी पर्यायो पण अनादिथी छे. पूर्वे एकलुं द्रव्य ज हतुं ने पर्यायो न हती–एम
नथी, केमके पर्याय वगरनुं द्रव्य कदी होय नहि. पूर्वे मोक्षपर्याय आ जीवने कदी थई नथी, केम के जो
मोक्षपर्याय थई होय तो तेने आ संसार होय नहि; माटे अत्यार सुधीनो अनादिकाळ जीवे जुदा जुदा
भवमां ज गाळ्यो छे. आ रीते श्रुतज्ञानमां द्रव्यनी भूत–भावि पर्यायो पण प्रतिभासे छे. पूर्व भवनी
पर्यायपणे जणाय एवो आत्मामां धर्म छे. एक द्रव्यनयमां आटलुं सामर्थ्य छे के द्रव्यनी भूत भविष्यनी
पर्यायोने नक्की करी शके; द्रव्यमां आवो ज्ञेयधर्म छे ने ज्ञानमां तेवुं जाणवानो धर्म छे. आ एक धर्मने पण
यथार्थ नक्की करतां त्रिकाळी द्रव्यनुं स्वरूप प्रतीतमां आव्या वगर रहेतुं नथी.