Atmadharma magazine - Ank 103
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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वैशाखः २४७८ः १३९ः
माटे पहेलां पोतानी प्रभुतानो विश्वास करो.
आ वखते (वीर सं. २४७पना) सुप्रभात–मंगलमां आ प्रभुत्व शक्तिनुं वर्णन आव्युं हतुं. बेसता वर्षे
लोको शरीर–मकान वगेरे बहारनी शोभा करे छे, पण अहीं तो अंतरमां आत्मानी शोभानी वात छे. घर
वगेरेनी शोभामां आत्मानी शोभा नथी पण पोतानी प्रभुत्व शक्तिथी ज आत्मानी अखंड शोभा छे,
आत्मानो प्रताप अखंड छे.
चैतन्य भगवान अखंड प्रतापथी स्वतंत्रपणे शोभी रह्यो छे; जगतना कोई निमित्तो के प्रतिकूळ संयोगो
तेनी शोभाने नुकशान करी शकता नथी तेमज कोई अनुकूळ संयोगो तेनी शोभाने सहाय पण करता नथी, ते
पोते पोताना अखंडित प्रतापथी शोभे छे, एवी प्रभुता आत्मामां त्रिकाळ छे. द्रव्यमां प्रभुता छे, गुणमां प्रभुता
छे ने पर्यायमां पण प्रभुता छे. द्रव्यगुणनी प्रभुताना स्वीकारथी पर्यायमां पण प्रभुता प्रगटी गई छे.
द्रव्यद्रष्टिथी जोतां आत्मानी प्रभुतामां कदी विकार थयो ज नथी. पर्यायमां एकेक समयनो विकार करतां
करतां अत्यारसुधीनो गमे तेटलो काळ गयो ने गमे तेटली मलिनता थई, परंतु द्रव्यनी प्रभुताने तोडवा ते कोई
समर्थ नथी, द्रव्यनी प्रभुता तो अखंड पणे एवी ने एवी शोभी रही छे, तेमां अंशमात्र खंड पडयो नथी; तेम
ज गुणनुं प्रभुत्व पण एवुं ने एवुं अखंडित छे; अने एकेक समयनी पर्याय पण परनी अपेक्षा वगर स्वाश्रये
स्वतंत्रताथी शोभी रही छे. आ द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणेनी प्रभुता जयवंत वर्ती रही छे. प्रभुत्वशक्ति आत्माना
द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणेमां व्यापी रही छे, तेथी आत्मा पोते प्रभु छे.
‘हे प्रभु, हे प्रभु! शुं कहुं......’ एम बीजाने पोताना प्रभु कहेवा ते विनयथी व्यवहारनुं कथन छे;
खरेखर आ आत्मानो प्रभु कोई बीजो नथी, पोते ज पोतानी प्रभुत्व–शक्तिनो धणी छे, स्वतंत्रताना अखंड
प्रतापथी पोते शोभे छे तेथी पोते ज पोतानो प्रभु छे. आत्मानी प्रभुतानो प्रताप एवो अखंडित छे के अनंत
अनुकूळ के प्रतिकूळ परिषहो आवे तोय तेनो प्रताप खंडित थतो नथी, अरे! क्षणिक पुण्य–पापनी वृत्तिथी पण
तेनी प्रभुतानो प्रताप खंडित थतो नथी; केमके आत्मानी प्रभुत्वशक्ति तो द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणेमां व्यापक छे
ने त्रिकाळ छे, विकार कांई द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणेमां व्यापतो नथी तेमज ते त्रिकाळ नथी, माटे ते क्षणिक विकार
वडे पण आत्मानी प्रभुता खंडित थई जती नथी. आत्मानी आवी प्रभुता छे ते द्रव्य–द्रष्टिनो विषय छे. आवी
आत्मानी प्रभुता जेने बेठी तेने पर्यायमां केवळज्ञानरूपी प्रभुता प्रगटया वगर रहे नहि.
धर्मी जाणे छे के मारी प्रभुता मारामां छे, मारी प्रभुताथी ज मारी शोभा छे; मारी प्रभुतानो प्रताप
एवो अखंडित छे के त्रणलोकमां कोई द्रव्य–गुण–पर्याय मारा द्रव्य–गुण–पर्यायनी स्वतंत्रतानी शोभाने लूंटनार
नथी. मारुं प्रभुत्व अनादि अनंत छे, हुं मारी अखंड स्वतंत्रताना प्रतापथी शोभी रह्यो छुं. मारा एकेक गुणमां
पण प्रभुत्व छे, ज्ञानमां जाणवानुं प्रभुत्व छे के एक समयमां त्रणकाळ त्रणलोकने जाणी ल्ये, श्रद्धामां प्रतीतिनुं
एवुं प्रभुत्व छे के एक क्षणमां परिपूर्ण परमात्माने प्रतीतमां ल्ये, दर्शनमां देखवानुं प्रभुत्व छे, आनंदमां
आह्लादनुं प्रभुत्व छे. ए रीते ज्ञान–श्रद्धा आनंद वगेरे गुणो पोताना अखंड प्रतापथी शोभी रह्या छे. द्रव्य–
गुणनी जेम एकेक समयनी पर्यायमां पण मारी प्रभुता छे. पर्यायमां अल्प रागद्वेष थाय छे ते गौण छे, तेनो
त्रिकाळी आत्मस्वरूपमां अभाव छे. आत्मानी प्रभुता कदी अधूरी के परनी ओशियाळी थई ज नथी, ते तो
त्रिकाळ अबाधित छे, तेनो स्वाधीन प्रताप अखंड छे. विकारमां तो प्रभुत्व ज नथी केम के ते त्रिकाळी द्रव्य
गुणमां के समस्त पर्यायोमां व्यापतो नथी. आत्मानी प्रभुतातो त्रिकाळी द्रव्य–गुणमां तेम ज समस्त पर्यायोमां
व्यापनारी छे.
जेने पोतानी चैतन्य प्रभुतानुं भान नथी एवा अज्ञानी जीवो पर संयोगथी पोतानी मोटप माने छे ने
ते संयोग मेळववानी भावना करे छे. बहारमां रिद्धि सिद्धि मळे ने शरीर सारुं रहे एवी बहारना पदार्थोनी
भावना अज्ञानी करे छे पण पोते पोताना स्वभावनी रिद्धि–सिद्धि अने प्रभुताथी भरेलो छे तेनी ओळखाण ने
भावना करतो नथी. जेणे पोताना सुख माटे पर वस्तुनी जरूर मानी तेणे पोताना आत्मानी प्रभुता मानी
नथी पण पामरता मानी छे, तेथी तेने पर्यायमां प्रभुता प्रगटती नथी. अहीं तो कहे छे के त्रिकाळी प्रभुताना
स्वीकारथी पर्यायमां जे प्रभुता प्रगटी तेना प्रतापने खंडित करवा जगतमां कोई क्षेत्र, कोई काळ के कोई संयोग
समर्थ नथी.