Atmadharma magazine - Ank 103
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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वैशाखः २४७८ः १४१ः
प्रभुता छे.–आवी प्रभुताने जाणवाथी जीव पोताना अनंत प्रभुत्वने पामे छे. आवी पोतानी प्रभुतानुं श्रवण–
मंथन करीने तेनो महिमा–रुचि अने तेमां लीनता करवी ते अपूर्व मंगळ छे.
सम्यक्श्रद्धाए आखा आत्मानी प्रभुतानी प्रतीत करी छे, पर्यायनी प्रभुताए आखा द्रव्यनी प्रभुतानो
स्वीकार कर्यो छे. हवे ते द्रव्यना ज लक्षे एकाग्र थईने पूर्ण केवळज्ञानरूपी प्रभुता थशे. ते प्रभुताना
अप्रतिहतभावमां वच्चे कोई विघ्न करनार आ जगतमां नथी.
आत्मानी प्रभुता केवडी हशे?–शुं मेरुपर्वत जेवडी हशे! तो कहे छे के ना; मेरुनी उपमा तो तेने बहु
नानी पडे. क्षेत्रनी विशाळताथी आत्मानी प्रभुतानुं माप न नीकळे, एक समयनी पर्यायमां अनंता मेरुने जाणी
ल्ये–एवुं तेनुं भावप्रभुतानुं सामर्थ्य छे. आत्मानी एक ज्ञानपर्याय एक साथे समस्त लोक–अलोकने जाणी ल्ये
छतां हजी अनंतुं जाणे तेवुं सामर्थ्य बाकी रही जाय छे; एटले लोकालोकनी उपमाथी पण एक ज्ञानपर्यायना
सामर्थ्यनुं य पूरुं माप नथी नीकळतुं, तो आखा आत्मानी प्रभुताना सामर्थ्यनी शुं वात करवी? आत्मानी एक
पर्यायनी आवडी मोटी प्रभुतानो जेने विश्वास अने आदर थयो ते जीव पोतानी पर्यायमां कोई परनो आश्रय
न माने, रागनो आदर न करे, अपूर्णतामां तेने उपादेय भाव न रहे, ते तो पूरा स्वभावना आश्रये पूरी दशा
प्रगट कर्ये ज छूटको करे. पूर्ण ध्येयने लक्षमां लीधा वगरनी शरूआत साची होय नहि; केम के पूर्ण ध्येय जेना
लक्षमां नथी आव्युं ते तो अधूरी दशानो ने विकारनो आदर करीने त्यां ज अटकी जशे, तेने पूर्णता तरफनो
प्रयत्न ऊपडशे नहि. जेने आत्मानी प्रभुतानो विश्वास आव्यो तेने पूर्णताना लक्षे शरूआत थई गई एटले
तेना आत्मामां सम्यग्दर्शनरूपी परोढियुं थयुं–अंशे सुप्रभात शरू थयुं, हवे अल्पकाळमां सुप्रभात थशे ने
केवळज्ञानरूपी झगमगतो सूर्य ऊगशे. आचार्यदेव कहे छे के एवुं सुप्रभात जयवंत वर्ते छे. ते सुप्रभात प्रगटया
पछी कदी अस्त थतुं नथी.
अहो जीवो! प्रतीत तो करो.......तमारी प्रभुतानी प्रतीत तो करो.....तमारा ज्ञान स्वभावमां तमारी
प्रभुता भरी छे तेनो विश्वास तो करो, ‘हुं एक समयना विकार जेटलो तुच्छ–पामर नथी पण मारो आत्मा
त्रणलोकनो चैतन्यनाथ छे, हुं ज अनंत शक्तिवाळो प्रभु छुं.’–एम पोतानी प्रभुतानो एवो द्रढ विश्वास करो के
फरीथी कदी कोई अनुकूळ के प्रतिकूळ संयोगमां सुख के दुःखनी कल्पना न थाय अने अखंड प्रतापवंत केवळज्ञान
लेवामां वच्चे विघ्न न आवे.
अखंड प्रतापवाळी स्वतंत्रताथी शोभायमानपणुं ते प्रभुतानुं लक्षण छे. आत्मामां एवो अखंड प्रताप
छे के अनंती प्रतिकूळताना गंज आवी पडे तोय पोतानी प्रभुताने ते न छोडे, कोईने आधीन थई जाय एवो
तेनो स्वभाव नथी; तेने कोई परनी ओशियाळ न करवी पडे, कोईना ओजसमां–प्रभावमां ते अंजाई न जाय,
कोईथी भय न पामे,–आवी स्वाधीन प्रभुताथी आत्मा शोभी रह्यो छे. आत्माना स्वभाव करतां मोटो कोई
जगतमां छे ज नहि तो तेने कोनो भय? जे जीव कल्पना करीने रागथी के संयोगथी पोतानी प्रभुताने खंडित
माने छे ते मिथ्याद्रष्टि छे, तेने अहीं आचार्यदेव तेनी प्रभुता बतावे छे.
आत्मानी प्रभुता आत्मामां छे ने जडनी प्रभुता जडमां छे, एकेक परमाणुमां तेनी प्रभुता छे. कोई
कोईनी प्रभुताने खंडित करता नथी. अज्ञानीओ एम कहे छे के जगतना जड–चेतनमां सर्वत्र एक प्रभु रहेलो
छे,–तेनी वात तो मिथ्या छे; अहीं तो कहे छे के चेतनमां ने जडमां–बधा पदार्थोमां पोतपोतानी प्रभुता रहेली
छे. आत्मानी क्रिया आत्मानी प्रभुताथी थाय छे ने जडनी क्रिया जडनी प्रभुताथी थाय छे. कोईनी प्रभुता
बीजामां चालती नथी. जेम अन्यमति एम माने छे के ईश्वरे जगतने बनाव्युं तेम जैनमतमां रहेला पण कोई
एम माने के में पर जीवने बचाव्यो, –तो ते बंने जीवो प्रभुतानी प्रतीत वगरना मिथ्याद्रष्टि छे. अहो! दरेक
द्रव्य पोतपोतानी प्रभुतामां स्वतंत्रताथी शोभी रह्युं छे. अहीं तो जीवनी पोतानी प्रभुतानी वात छे. पोतानी
प्रभुताने चूकीने परनो आश्रय मानवो तेमां जीवनी शोभा नथी. रागादिथी जीवनी शोभा नथी. जीवनी शोभा
पोतानी प्रभुत्वशक्तिथी छे. ते प्रभुतानी प्रतीत करवी ते ज धर्म छे प्रभुता शक्तिने मानतां अखंड आत्मा
प्रतीतमां आवे छे, ते–ज धर्मीनी द्रष्टिमां उपादेय छे. जुओ! आ स्वतंत्रतानो ढंढेरो छे, आ स्वतंत्रतानो ढंढेरो
एकेक आत्माने प्रभु जाहेर करे छे.
परमेश्वर कयां रहे छे? ... प्रभुने कयां शोधवो? –तो कहे छे के तारो प्रभु तुं ज छो, तारो प्रभु ताराथी