
बहार बीजे क्यांय नथी; तारा आत्मामां ज प्रभुताशक्ति छे तेथी आत्मा पोते ज परमेश्वर छे. अंतर्मुख नजर
करीने तेनो विश्वास कर!
श्रद्धा करवी ते अपूर्व सम्यग्दर्शन छे.
तरीके वर्णव्यो छे.
बाजरानो लोट के धूळ न थाय. तेम विश्वमां अनंता आत्माओनो गंज पडयो छे, तेमां दरेक आत्मा जुदो छे,
दरेक आत्मामां पोतपोतानी चैतन्यप्रभुता भरी छे; तेने पीसीने लोट करतां एटले के प्रतीत करीने परिणमन
करतां एक साथे अनंत गुणोनी प्रभुतानुं परिणमन थाय छे, पण आत्मानी प्रभुता परिणमीने तेमांथी राग
नीकळे–एवुं तेनुं स्वरूप नथी.
प्रभुताना एक अंशने पण कोई खंडित करी शके तेम नथी. अधर्मी जीव एम माने छे के अरेरे! हुं पामर अने
पराधीन छुं, परंतु ते वखतेय तेनी प्रभुता तो तेनामां पडी ज छे पण तेने तेनी प्रतीत नथी तेथी तेनुं निर्मळ
परिणमन थतुं नथी. प्रभुताने भूलीने एकांत पामरता मानी ते एकांत मिथ्यात्व छे. श्री कार्तिकेया– नुप्रेक्षामां
कहे छे के ‘समकिती पोताना आत्माने तृणसमान समजे छे’ त्यां तो प्रभुतानी प्रतीत सहित पर्यायना विवेकनी
वात छे; अहो! कयां दिव्य केवळज्ञान! अने कयां मारी अल्पज्ञता!–एम विवेक करीने द्रव्यना आश्रये पूर्ण
पर्याय प्रगट करवानी भावना भावे छे. जो एकली पामरता ज मानशे अने प्रभुता नहि ओळखे, तो पामरता
टळीने प्रभुता आवशे शेमांथी?
अनुकूळताथी पोतानी मोटाई माने छे, ते देहद्रष्टि–बहिरात्मा छे. अंतरात्मा धर्मी जीव तो एवो निःशंक छे के
बहारमां कोई अपमान करे के शरीर छेदाय तो पण मारी प्रभुताने तोडवानी कोईनी ताकात नथी; मारा
स्वभावमां श्रद्धानुं, ज्ञाननुं, अस्तित्वनुं, जीवननुं, सुखनुं–वगेरे अनंत गुणनुं प्रभुत्व छे तेनी एक कोरने पण
खंडित करवा कोई समर्थ नथी.
आचार्यदेव प्रभुताना अभिनंदन आपे छे,–आत्माने तेनी प्रभुतानो भेटो करावे छे.
अरे भाई! आत्मानी स्वभाव प्रभुतानो अंशमात्र विच्छेद थयो नथी, ते स्वभाव पासे पर्यायनी मुख्यता करे
छे ज कोण? साधक तो पोताना स्वभावने मुख्यकरीने कहे छे के अहो! मारी प्रभुता एवी ने एवी विद्यमान छे.
आत्मा पोते अखंडित ज्ञान प्रकाशथी मंडित एवो पंडित छे. अखंडित आत्मानी प्रभुतामां जे प्रवीण होय ते ज
साचो पंडित छे. केवळज्ञान अने सिद्ध पद प्रगटवानी ताकात आत्मामां सदाय भरी छे. केवळज्ञान तो पर्याय छे,
तेने प्रगट करवानी अखंड ताकात आत्मामां भरी छे. आवा अखंडित प्रतापवाळा स्वातंत्र्यथी शोभित
आत्मानी प्रभुता छे. आत्मानी प्रभुतामां कदी खामी नथी, शोभामां अशोभा नथी, अखंड प्रतापमां खंड नथी
ने स्वातंत्र्यमां पराधीनता नथी.