‘जिनना समोसरण सौ जयवंत वर्तो.......! ’
‘प्रत्यक्ष जिनवर दर्शने बहु हर्ष एलाचार्यने
ॐकार सूणतां जिनतणो, अमृत मळ्युं मुनि हृदयने’
आजथी दस वर्ष पहेलां–वीर सं. २४६८ना वैशाख वद छठ्ठे सोनगढमां श्री सीमंधर भगवानना
समवसरणनी रचना थई, अने ए समवसरणमां श्री कुंदकुंदाचार्य प्रभुनी पण प्रतिष्ठा थई. आ वैशाख वद छठ्ठे
ए धन्य प्रसंगने दस वर्ष पूरा थाय छे. अहो! पू. गुरुदेवश्रीनो अचिंत्य प्रताप,–के जेणे सीमंधरनाथना
समवसरणने आ सुवर्णपुरीमां ऊतार्युं.....ने भक्तोने भगवाननो भेटो कराव्यो. आ काळे आवा समवसरणना
दर्शन थाय छे ते पण मुमुक्षु जीवोना महा सद्भाग्य छे.
प्रतिष्ठा उत्सव वखते ज्यारे कुंदकुंदाचार्यदेवनी प्रतिष्ठा माटे सीमंधर भगवानना समवसरणमां तेमनो
प्रवेश थई रह्यो हतो त्यारनुं भाव प्रेरक द्रश्य नीरखतां केटलाक भक्तो ने एम थतुं हतुं केः ‘अहा! सीमंधर
भगवानना समवसरणमां आवीने कुंदकुंदाचार्यदेव तेओश्रीने वंदन करी रह्या छे–ए पवित्र प्रसंग जाणे के
पोतानी नजर समक्ष ज बनी रह्यो होय!’
‘श्री समवसरणना दर्शन करतां, श्रीमद् भगवत् कुंदकुंदाचार्य सर्वज्ञ वीतराग श्री सीमंधर भगवानना
समवसरणमां गया हता ते प्रसंग मुमुक्षुओनां नेत्रो समक्ष खडो थाय छे अने तेनी साथे संकळायेलां अनेक
पवित्र भावो हृदयमां स्फुरतां मुमुक्षुओनुं हृदय भक्ति ने उल्लासथी ऊछळी पडे छे. श्री समवसरण–मंदिर थतां,
मुमुक्षुओने तेमना अंतरनो एक प्रियतम प्रसंग द्रष्टिगोचर करवानुं निमित्त प्राप्त थयुं छे.’
आ समवसरणना प्रतिष्ठा–महोत्सव वखते परम पूज्य गुरुदेवश्रीए ‘समवसरणनी स्तुति’
उपर भक्ति भरेलां प्रवचनो करेला, तेमां ज्यारे–
‘आचार्यने मन एकदा जिन विरहताप थयो महा,
–रे! रे! सीमंधर जिनना विरहा पडया आ भरतमां.