Atmadharma magazine - Ank 104
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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जेठः २४७८ः १प७ः
जेम माळा बधा मोतीमां रहेली छे, पण माळानुं एक मोती बीजा मोतीमां रहेलुं नथी. तेम आत्मद्रव्य
बधा गुण–पर्यायोमां व्यापक छे, पण तेनी एक पर्याय बीजी पर्यायमां व्यापक नथी. द्रव्य–गुण त्रिकाळ ते ने ते
ज रहे छे ने पर्यायो क्षणे क्षणे नवी नवी थाय छे. पहेली क्षणे अज्ञानदशा हती ने बीजी क्षणे ज्ञानदशा थई, तो
त्यां पहेलांनी अज्ञानपर्याय बीजी ज्ञानपर्यायमां अव्यापक छे, पण द्रव्य तो बंने पर्यायोमां व्यापक छे.
केवळज्ञान सादि–अनंत एवुं ने एवुं रहे छे, परंतु तेमां पण पहेला समयनी केवळज्ञान पर्याय बीजा
समयनी पर्यायमां व्यापती नथी. बीजा समये ‘एवी ने एवी’ पर्याय थवा छतां ‘ते ने ते ज’ पर्याय नथी.
एक समयनी पर्यायमां त्रणकाळने जाणवानुं सामर्थ्य होवा छतां ते पोते तो एक समय ज टके छे. क्षायिकभावने
सादि–अनंत कह्यो ते तो प्रवाहे छे, पण तेमां पहेली क्षणनो क्षायिकभाव बीजी क्षणे रहेतो नथी, बीजी क्षणे
बीजो नवो क्षायिकभाव प्रगटे छे.–ए प्रमाणे पर्यायोनुं परस्पर अव्यापकपणुं छे. आवो यथार्थ निर्णय करतां
पर्यायना आश्रयनी बुद्धि छूटीने द्रव्यसन्मुख बुद्धि थतां साधकभाव प्रगटे छे.
(४७ नयोथी आत्मद्रव्यनुं वर्णन कर्युं छे तेमांथी १७ मा नय उपरनुं विवेचन अहीं पूरुं थयुं.)
***
अनेकान्तमूर्ति भगवान आत्मानी
केटलीक शक्तिओ
ज्ञानस्वरूप आत्माने जाणे तो सम्यग्ज्ञान अने धर्म थाय छे. ज्ञानस्वरूप आत्मामां अनंत धर्मो रहेला
छे. ते आत्मानुं ज्ञान कराववा माटे अहीं आत्मानी शक्तिओनुं वर्णन चाले छे. अत्यार सुधीमां नीचेनी सात
शक्तिओनुं वर्णन थयुं छे.
(१) सौथी पहेलां जीवत्वशक्ति बतावी; जडमां अस्तित्व छे पण जीवत्व नथी, आत्मामां जीवत्व
त्रिकाळ छे तेथी ते चैतन्यप्राणवडे सदा जीवी रह्यो छे. आत्मा परने जीवाडे के पोते परथी जीवे–एवुं तेनुं स्वरूप
नथी.
(२) बीजी चितिशक्ति छे; जो आ चितिशक्ति न होय तो आत्मा जड थई जाय, अने जीवने जाणे
कोण? आ चेतनाशक्ति सदा जागृतिस्वरूप छे.
(३–४) दशिशक्ति अने ज्ञान शक्ति कहीने चेतनानी क्रिया बतावी; दर्शन समस्त पदार्थोना सामान्य
अवलोकनरूप छे, ने ज्ञान समस्त पदार्थोने विशेषपणे जाणनारुं छे.
(प) पांचमी सुखशक्ति कहीने तेमां सम्यक्त्व अने चारित्र बंनेनुं फळ समावी दीधुं. ज्ञानदर्शनमय
आत्मानी प्रतीति करे तेवी एक सम्यक्त्वशक्ति छे, अने तेमां लीन थाय तेवी चारित्रशक्ति छे. आत्मानी प्रतीत
करीने तेमां लीन थतां परम अनाकुळ शांत–आह्लादरूप सुखनो अनुभव थाय छे. आवी सुखशक्ति आत्मामां
त्रिकाळ छे.
(६) छठ्ठी वीर्यशक्ति छे. आत्मानुं सुख सम्यक् पुरुषार्थपूर्वक प्रगटे छे, ते पुरुषार्थ अर्थात् वीर्यशक्ति
आत्मामां त्रिकाळ छे; तेना वडे स्वरूपनी रचना थाय छे. द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणेमां आत्मानुं वीर्य छे.
(७) सातमी प्रभुत्वशक्तिना वर्णनमां तो अद्भुत वात करी. आ प्रभुत्वने लीधे आत्माना द्रव्य–गुण–
पर्याय स्वतंत्रताथी शोभी रह्यां छे. आ प्रभुत्वशक्ति आत्माना प्रतापने अखंड राखे छे, आत्मानी प्रभुता
आत्मामां ज भरी छे एम ते बतावे छे.
ए प्रमाणे सात शक्तिओनुं वर्णन कर्युं; हवे विभुत्व नामनी आठमी शक्तिनुं वर्णन करे छे.