आवे नहि, ने यथार्थ आत्मा प्रतीतमां आव्या विना कोई रीते कल्याणनो मार्ग प्रगटे नहि.
विशेषनय जाणे छे.
बीजा जे अनंत धर्मो रहेला छे तेमनो ते निषेध नथी करतुं. जो बीजा धर्मोनो सर्वथा निषेध करीने एक धर्मने ज
जाणे तो वस्तुनुं प्रमाणज्ञान नथी, तेमज ते नय नथी पण नयाभास छे.
व्यापक एवा द्रव्य सामे जोवानुं रह्युं. मिथ्यात्व पर्याय टळीने द्रव्यना आश्रये सम्यक्त्व पर्याय प्रगटी. ते बंने
पर्यायमां द्रव्य व्यापक छे, पण सम्यक्त्वपर्यायमां मिथ्यात्वपर्याय व्यापक नथी; आ रीते द्रव्यपणे आत्मा व्यापक
छे ने पर्यायपणे अव्यापक छे. पर्याय अपेक्षाए पण जो आत्मा पोतानी सर्व पर्यायोमां व्यापक होय तो
मिथ्यात्वपर्याय पण बधी पर्यायोमां व्यापक थई जाय एटले पर्यायमांथी मिथ्यात्व कदी टळी ज न शके! माटे
पर्याय अपेक्षाए आत्मा व्यापक नथी. मिथ्यात्व पर्याय टळीने सम्यक्त्वपर्याय थतां जाणे के आखो आत्मा
पलटी गयो होय–तेम पर्याय अपेक्षाए जणाय छे.
केवळज्ञानपर्यायमां अव्यापक छे पण द्रव्य पोते केवळज्ञानपर्यायमां व्यापक छे. माटे, केवळज्ञानपर्याय प्रगट
करवा कोनी सामे जोवुं?–व्यापक एवा द्रव्यनी सन्मुखताथी ज केवळज्ञान प्रगटे छे. ज्यां साधकनी निर्मळ
सम्यग्ज्ञानपर्याय पण केवळज्ञानपर्यायमां व्यापती नथी तो पछी रागादिभाव तो आत्मानी निर्मळपर्यायमां केम
व्यापे?
पर्याय पण बीजी पर्यायने मदद नथी करती, तो पछी शुभरागरूप विकारी पर्याय के शरीरादि जडनी पर्याय
आत्माने धर्मनी पर्यायमां मदद करे ए वात कयां रही? एक पर्यायनुं बीजी पर्यायमां अव्यापकपणुं छे माटे
पर्यायनो आश्रय छोड, ने सर्व पर्यायमां व्यापक एवा द्रव्यनो आश्रय कर.
त्रिकाळ छे. अव्यापकपणुं पर्याय–अपेक्षाए होवा छतां ते धर्म तो आत्मद्रव्यनो छे, एटले पर्यायनो व्यय थई
जवा छतां आत्माना अव्यापकधर्मनो नाश थई जतो नथी; बीजी क्षणे बीजा क्षणनी पर्यायमां ज आत्मा व्यापे
छे, ए रीते तेनो अव्यापकधर्म चालु ज रहे छे. विशेषपणे जोतां ते ते समयनी पर्यायमां आत्मा व्यापे छे अने
सामान्यपणे जोतां आत्मा पोतानी त्रणेकाळनी समस्त पर्यायोमां व्यापक छे.
व्यापतुं नथी ने आत्मा कोई बीजामां व्यापतो नथी. आवा तारा आत्मानो भरोसो कर तो तेना आश्रये तारुं
कल्याण प्रगटे. द्रव्यपणे व्यापक अने पर्यायपणे अव्यापक एवा बंने धर्मो आत्मामां एक साथे ज रहेला छे.
आवा बधा धर्मोथी आत्मवस्तुनो निर्णय करतां बधां विरुद्ध पडखां टळीने ज्ञाननी निर्मळता थाय छे.