Atmadharma magazine - Ank 104
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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जेठः २४७८ः १पपः
रीते द्रव्यनो एवो व्यापकधर्म छे के पोताना समस्त पर्यायोमां ते व्यापे छे.
भावनये जोतां वर्तमानपर्यायपणे ज द्रव्य प्रतिभासे छे;
द्रव्यनये जोतां भूत–भावीपर्यायपणे द्रव्य प्रतिभासे छे;
अने सामान्यनये जोतां त्रणकाळना पर्यायोमां व्यापकपणे द्रव्य प्रतिभासे छे.–आनो अर्थ ज ए थयो के
वर्तमाननी पर्याय वर्तमानमां छे, भूतकाळनी पर्याय भूतकाळमां छे ने भविष्यनी पर्याय भविष्यमां छे, कोई
पर्याय आघी पाछी थती नथी. जो भविष्यनी पर्यायनो क्रम द्रव्यमां निश्चित न होय तो भाविपर्यायपणे द्रव्य
प्रतिभासी शके ज नहि. जेम मोतीनी माळामां मोतीनो क्रम आघोपाछो थतो नथी, तेम त्रणकाळनी
पर्यायमाळामां व्यापक एवा द्रव्यमां कोई पर्यायनो क्रम आघोपाछो थतो नथी; अने परने लीधे कोई पर्याय थती
नथी ए वात पण आमां आवी ज गई. द्रव्यनी पर्यायो तेना स्वअवसरे ज थाय छे, आगळ–पाछळ थती
नथी–ए वात ९९ मी गाथाना प्रवचनोमां विशेष विस्तारथी आवी गई छे.
अहीं अध्यात्मनयो छे तेथी नय अने नयना विषयरूप धर्मने एकरूपे वर्णवे छे. वस्तुना अनंत धर्मोमां
अनंत नयो व्यापे छे–एम कहीने नयोनी स्वसन्मुखता बतावी छे; आ नयो परमां व्यापता नथी पण वस्तुना
निजधर्मोमां व्यापे छे एटले पर सामे जोवानुं न रह्युं पण वस्तुनी सामे ज जोवानुं रह्युं.
अहीं कहे छे के आत्मद्रव्यमां एक एवो धर्म छे के पोतानी समस्त पर्यायोमां ते व्यापे छे; कोई पर पदार्थ
तो आत्मानी पर्यायमां व्यापता नथी ने रागादिभावोमां के पर्यायमां पण एवी ताकात नथी के ते सर्व पर्यायोमां
व्यापे! आथी आ व्यापक–धर्मने स्वीकारवा जतां द्रव्य उपर ज द्रष्टि जाय छे. आत्मद्रव्यमां ज एवो धर्म छे के
सर्व पर्यायोमां ते व्यापे छे. पर्याय ते ते काळे द्रव्यमां तन्मय थईने व्यापे छे अने द्रव्य पोतानी बधी पर्यायोमां
व्यापे छे; एटले कोई निमित्त उपर, विकल्प उपर के पर्याय उपर मुख्यपणे जोवानुं न रह्युं, पण द्रव्य उपर ज
जोवानुं रह्युं. अनादिथी जीवनी द्रष्टि ज पोताना द्रव्य उपर पडी नथी, पण संयोग अने विकारमां ज द्रष्टि राखी
छे. सामान्यनये सर्व पर्यायोमां व्यापक एवा आत्मद्रव्यने जे जाणे तेने निर्मळ पर्याय थया विना रहे नहि.
एकेक धर्म एवो छे के तेने यथार्थपणे नक्की करवा जतां आखुं द्रव्य ज नक्की थई जाय छे. बधा धर्मोनो आधार
तो आत्मद्रव्य छे, तेथी ते धर्मोने जोतां धर्मी एवुं आत्मद्रव्य ज प्रतीतमां आवी जाय छे ने तेना आश्रये
सम्यग्दर्शनादि धर्म प्रगटे छे.
प्रश्नः–आत्मद्रव्य समस्त पर्यायोमां व्यापक छे एम कह्युं, तो शुं विकारपर्यायमां पण आत्मा व्यापक छे?
उत्तरः–हा; विकारपर्यायमां पण ते समयपूरतो आत्मा व्यापक छे;–पण आम जेणे नक्की कर्युं तेने
पोतानी पर्यायमां एकलो विकारभाव ज नथी होतो, परंतु साधकभाव होय छे. केम के ‘विकार–भाव कर्मने लीधे
थतो नथी एटले के तेमां कर्म व्यापक नथी, ते विकारपर्यायमां पण आत्मद्रव्य ज व्यापक छे’ आम जेणे नक्की
कर्युं तेने विकार वखते पण द्रव्यनी प्रतीति खसती नथी, एटले ‘पर्यायमां द्रव्य व्यापक छे’ एम नक्की करनारने
एकला विकारमां ज व्यापकपणुं रहेतुं नथी पण सम्यक्त्वादि निर्मळपर्यायमां व्यापकपणुं होय छे, अने तेने ज
आवो सामान्यनय होय छे.
ए रीते सामान्यनयथी आत्मानुं वर्णन कर्युं, हवे तेनी साथे विशेषनयथी आत्मानुं वर्णन करे छे.
(१७) विशेषनये आत्मानुं वर्णन
आत्मद्रव्य विशेषनये, माळाना एक मोतीनी माफक अव्यापक छे; जेम माळानुं एक मोती आखी
माळामां व्यापतुं नथी तेथी ते अव्यापक छे, तेम आत्मानी एक पर्याय समस्त पर्यायोमां व्यापती नथी तेथी
विशेषनये आत्मा अव्यापक छे.
जे आ अनंत धर्मो छे ते बधा धर्मोने आत्माए धारी राख्या छे; तेथी अनंत धर्मवान अखंड आत्मानी
प्रतीतमां आ बधाय धर्मोनी प्रतीत आवी जाय छे. जो आत्माना बधाय धर्मोमांथी एक पण धर्मनो निषेध करे
तो तेने धर्मी एवो अखंड आत्मा प्रतीतमां