नथी एटले ‘वर्तमान पर्यायमां द्रव्य उल्लसे छे’ एम तेने प्रतिभासतुं नथी, तेथी तेने भावनय होतो नथी.
द्रव्य पोते पर्यायपणे उल्लसे छे–एम जेने भासे ते बहारना आश्रये पर्यायनी निर्मळता थवानुं माने नहि. मारी
वर्तमान पर्यायमां मारुं द्रव्य उल्लसे छे एम जेने प्रतिभास्युं तेने द्रव्यसन्मुख द्रष्टि गई ने सम्यग्ज्ञान थयुं अने
तेने भावनय लागु पडयो; आ सिवाय भावनय होतो नथी केम के भावनय ते सम्यग्ज्ञाननो अंश छे.
छे; एवा श्रुतज्ञानने स्वसन्मुख करीने, जेवो सर्वज्ञे जोयो तेवो आत्मा पोताना ख्यालमां आव्या विना ज्ञान
सम्यक् प्रमाण थाय नहि, तेथी अहीं आचार्यदेवे आत्मानी यथार्थ ओळखाण करावी छे.
आत्मानुं वर्णन करे छे.
छे. आ सामान्यनय एम बतावे छे के हे जीव! तारी पर्यायमां सदाय तुं ज व्यापक छो, तारी पर्यायमां कोई
बीजो आवतो नथी; एटले तारी पर्याय प्रगटवा माटे तारे कोई पर सामे जोवानुं रहेतुं नथी, पण तारा द्रव्यनी
सामे ज जोवानुं रहे छे.
छे, ते धर्म छे. आ सिवाय निर्दोष आहारना कारणे धर्म थाय एम जेणे मान्युं तेणे पोतानी धर्म–पर्यायमां
आत्माने व्यापक न मान्यो पण अचेतन आहारने पोतानी पर्यायमां व्यापक मान्यो; पण आहार तो परद्रव्य
छे, ते पोतानी पर्यायमां व्यापतुं नथी तो तेना कारणे धर्म केम थाय? पोतानी पर्यायमां पोतानो आत्मा व्यापक
छे ते ज धर्मनुं कारण छे.
धर्मने धरनार एवा निज आत्माने प्रथम श्रद्धा–ज्ञानमां नक्की करवो ने पछी तेमां एकाग्र थवुं ते धर्मनी क्रिया
छे. धर्मी एवो जे आत्मा तेना आधारे ज धर्मनी क्रिया थाय छे, आत्मा सिवाय परना आधारे धर्मनी क्रिया
थती नथी.
छे. सर्व गुण–पर्यायोमां आत्मद्रव्य ज एकरूपे व्यापक छे एटले ते सामान्य छे.–आम सामान्य धर्मथी द्रव्यने
जाणवुं ते सामान्यनय छे.
बधा मोतीमां माळानो दोरो सळंग छे; वळी ते माळानुं दरेक मोती क्रमसर गोठवायेलुं छे, ते आडुंअवळुं थतुं
नथी. तेम आत्मद्रव्य तेनी अनादि अनंतकाळनी बधी पर्यायोमां व्यापेलुं छे, कोई पण पर्याय आत्मद्रव्य
वगरनी होती नथी; तेम ज ते बधी पर्यायो क्रमसर छे, कोई पर्याय आडीअवळी थती नथी. आ