Atmadharma magazine - Ank 104
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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जेठः २४७८ः १प३ः
जेणे एक धर्मने ज आखो आत्मा मान्यो तेने तो ते धर्म अंश तरीके पण साचो न रह्यो. अंश साचो
कयारे कहेवाय? के आखाना स्वीकारपूर्वक अंशने स्वीकारे तो अंश साचो कहेवाय; आखाना स्वीकार वगर अंश
कोनो? आखी वस्तुना स्वीकारपूर्वक तेना अंशने जाणे तो अंशी अने अंश बंने यथार्थ रहे छे. आ रीते अंशी
अने अंश (अर्थात् वस्तु अने तेना धर्म) ए बंनेनुं यथार्थ ज्ञान साथे ज छे. अखंड अंशीने मान्या वगर तेना
अंशनुं यथार्थ ज्ञान होय नहि तेमज अंशीना बधा अंशोने स्वीकार्या वगर अंशीनुं यथार्थ ज्ञान थाय नहि;
एटले अनेकान्तमां तो जराय अधूराश नथी रहेती ने एकान्तवादीनो जराय अंश पण साचो रहेतो नथी,
एकमां पूरुं सत्य छे ने बीजामां अंश पण सत्य नथी.
द्रव्यनय एम जाणे छे के सिद्ध, तीर्थंकर, गणधर, चक्रवर्ती, वासुदेव–बळदेव वगेरे जे जे पर्याय
भविष्यमां थवानी छे ते ते पर्याय थवानो धर्म द्रव्यमां वर्तमानमां ज छे; ते पर्याय प्रगटया पहेलां ते पर्याय
थवानो धर्म तो आत्मामां त्रिकाळ छे एटले कोई संयोगोना कारणे ते पर्याय थाय छे ए वात रहेती नथी.–आम
जे समजे तेने संयोगद्रष्टि छूटीने स्वभावद्रष्टि थया वगर रहे नहि. आ रीते स्वभावद्रष्टि थवी ते ज नयनुं
तात्पर्य छे.
–ए प्रमाणे चौदमा द्रव्यनयथी आत्मानुं वर्णन पूर्ण थयुं.
(१प) भावनये आत्मानुं वर्णन
आत्मद्रव्य भावनये, पुरुष समान प्रवर्तती स्त्रीनी माफक, तत्काळना (वर्तमान) पर्यायरूपे उल्लसे छे –
प्रकाशे छे–प्रतिभासे छे; जेम पुरुष समान प्रवर्तती स्त्री पुरुषत्वरूप पर्यायरूपे प्रतिभासे छे तेम आत्मा
भावनये वर्तमान पर्यायरूपे जणाय छे.
त्रिकाळी द्रव्य उल्लसीने वर्तमान पर्यायपणे प्रतिभासे छे एवो तेनो धर्म छे. पर्याय तो द्रव्यमां समाय,
परंतु अहीं तो कहे छे के आखुं द्रव्य वर्तमान पर्यायमां उल्लसी आवे छे एटले के भावनयथी जोतां वर्तमान
वर्तती पर्यायपणे द्रव्य देखाय छे. वर्तमान सम्यग्दर्शन पर्याय होय त्यां आत्मा ज सम्यग्दर्शनपणे देखाय छे.
‘आत्मा सम्यग्द्रष्टि छे, आत्मा मुनि छे, आत्मा केवळज्ञानी छे’ एम वर्तमान पर्यायपणे द्रव्यने जोवुं ते
भावनय छे; अने द्रव्यमां एवो एक धर्म छे के वर्तमान पर्यायपणे ते जणाय.
अहीं आचार्यदेवे स्त्रीनो दाखलो आपीने समजाव्युं छे. शास्त्रकार आचार्य भगवान तो वीतरागी संत
छे; वस्तुनुं स्वरूप समजाववा माटे जे द्रष्टांत लक्षमां आव्युं ते द्रष्टांत निःशंकपणे आप्युं छे, तेमां पोताने तो
वीतरागभाव छे. जेम कोई वार पुरुषना जेवी चेष्टारूपे स्त्री प्रवर्तती होय त्यारे ते स्त्री पुरुषपणे प्रतिभासे छे,
तेम वर्तमान पर्यायपणे प्रवर्ततुं द्रव्य पण भावनयथी ते पर्यायपणे प्रतिभासे छे. पर्याय तो द्रव्यमां तन्मय
थईने परिणमे छे पण अहीं तो कहे छे के द्रव्य पोते उल्लसीने ते ते काळना पर्यायमां तन्मय थई जाय छे, एटले
ते पर्यायपणे जणाय छे. शुद्ध सम्यग्दर्शन वगेरे पर्यायो थई ते पर्यायमां तन्मयपणे आखुं द्रव्य ज प्रतिभासे छे,
एवो आत्मानो स्वभाव छे. सम्यग्दर्शनादि पर्याय थई तेमां तन्मयपणे आत्मा ज प्रतिभासे छे एटले के
आत्मा ज सम्यग्दर्शन छे–एम भावनये प्रतिभासे छे.
आखुं द्रव्य वर्तमान पर्यायपणे जणाय एवो अनादि अनंत स्वभाव छे, ज्यां आवो स्वभाव नक्की
कर्यो त्यां निर्मळ पर्यायमां उल्लसतुं द्रव्य प्रतिभास्युं. पर्यायमां द्रव्य उल्लसतुं प्रतिभासे छे,–पण कोने? के जेणे
द्रव्यने प्रतीतमां लीधुं छे तेने. आ रीते अहीं साधकना सम्यक् पर्यायोनी वात छे. केवळी भगवान तो
नयातिक्रान्त छे. तेमने नयथी कांई साधवानुं रह्युं नथी; ने अज्ञानी जीवने तो द्रव्यनुं भान नथी तेथी तेने पण
पर्यायमां द्रव्य उल्लसतुं भासतुं नथी; तेणे तो विकल्पने अने रागने ज आत्मा मान्यो छे एटले तेने तो
पर्यायमां राग ज उल्लसतो भासे छे. जेने अखंड द्रव्यनुं भान छे एवा साधक जीवने पर्यायमां द्रव्य उल्लसतुं
प्रतिभासे छे. ते ज्यारे भावनयथी जुए छे त्यारे सम्यग्दर्शनादि वर्तमान पर्यायपणे आखो आत्मा तेने भासे
छे. ए प्रमाणे वर्तमानपर्यायरूपे उल्लसतुं प्रतिभासे एवो द्रव्यनो धर्म छे. अज्ञानीना आत्मामां पण आवो धर्म
तो छे, परंतु तेने पोताने द्रव्यनुं भान