केवळज्ञानपर्याय कदी प्रगटे नहि–एवो पण तेनो स्वभाव छे. अहीं तो, जे जीव पोताना द्रव्यस्वभावने नक्की
करे ते जीवने पोतामां केवळज्ञान अल्पकाळे प्रगटे एवो स्वभाव होय ज, तेने केवळज्ञान न प्रगटे–एम बने
नहि. वर्तमान पर्यायमां केवळज्ञान प्रगट न होवा छतां ‘भविष्यमां केवळज्ञाननी पर्यायपणे मारो आत्मा
थवानो छे’–एम जेणे नक्की कर्युं तेणे कोनी सामे जोईने ते नक्की कर्युं? द्रव्यमां केवळज्ञान थवानो स्वभाव
त्रिकाळ भर्यो छे तेनी सामे जोईने तेणे ते नक्की कर्युं छे, एटले वर्तमानमां तो ते साधक थई गयो छे ने
अल्पकाळे तेने केवळज्ञानदशा प्रगटी जशे.
थनार बाळक वर्तमानमां शेठ तरीके प्रतिभासे छे एवो तेनो धर्म छे. तेम सिद्धांतमां एवो जीव लेवो के जे
भविष्यमां सिद्ध थनार छे, ते वर्तमानमां सिद्धपणे प्रतिभासे एवो तेनो धर्म छे. धर्मी पोते पोताना आत्माने
भविष्यनी सिद्धपर्यायपणे वर्तमानमां जुए छे. आ द्रव्यमां भविष्यमां आ पर्याय थवानी छे–एम पोताना
ज्ञानमां ते वात आवी गई त्यारे द्रव्यनय लागु पडयो.
ज्ञानमां द्रव्यनय छे; त्यां द्रव्यनयथी जोतां भविष्यनी सिद्ध–पर्यायपणे जणाय तेवो धर्म तो ते आत्मानो छे;
भगवाननी वाणीने लीधे के ज्ञानने लीधे ते धर्मनुं होवापणुं नथी.
चक्रवर्ती मुनि थया ने तेमने रोग थयो; त्यां द्रव्यनयथी एम कहेवाय के ‘आ सनत्कुमार चक्रवर्तीने रोग थयो.’
–ए रीते पूर्वनी पर्याय तरीके जणाय एवो वस्तुनो एक धर्म छे.
जुदो–एम जुदा जुदा बे धर्मो नथी, एक ज धर्ममां ते बंने पडखा समाई जाय छे.
वस्तु प्रमाणनो विषय छे. श्रुतज्ञान जाणनार छे ने धर्मो तेनो विषय छे, एक नयनो विषय एक धर्म छे.
वस्तुमां अनंत धर्मो छे तेमांथी एक पण अंशने जो ओछो माने तो वस्तु ज सिद्ध थाय नहि. आत्माने सर्वथा
क्षणिक धर्मवाळो ज माननार बौद्धनी के सर्वथा कूटस्थ धर्मवाळो ज माननार वेदांत वगेरेनी कोई वात आमां
रहेती नथी; केम के ते तो बधा एकांत एक पक्षने ज पूरुं माननारा छे एटले तेनो एक पक्ष पण साचो रहेतो
नथी. अंश अंशपणे त्यारे साचो कहेवाय के जो अंशीना बीजा अंशोने पण मानतो होय! परंतु जे एक अंशने
ज आखुं स्वरूप मानी ल्ये तेने तो अंश अंश तरीके पण न रह्यो ने अंशी पण न रह्यो, एटले तेने तो अंशी के
अंश एकेय साचा नथी.
पण न रह्यो.–एटले के वस्तु ज तेनी श्रद्धामां न आवी, तेनी श्रद्धा मिथ्या थई. वस्तु तो अनंत धर्मवाळी जेम
छे तेम छे.
आघुंपाछुं माने तो चाले तेम नथी.