बधा गुणोमां व्यापेल न होय तो अनंतगुणनो अभेदपिंड अनुभवमां आवी शके नहि अने बधा गुणनी
अभेदतानो आनंद आवी शके नहि. ‘विभु’ नो अर्थ व्यापक थाय छे. विभुत्वशक्तिथी आत्मा विभु छे, एटले
पोताना सर्वभावोमां रहेलो होवा छतां एक भावरूप छे. ज्ञानगुण बधा गुणोमां व्यापे छे एवुं ज्ञाननुं विभुत्व
छे. ए प्रमाणे अनंता गुणो छे तेमांथी दरेक गुण बीजा बधा गुणोमां व्यापक छे–ए रीते अनंतगुणोनुं विभुत्व
जाणवुं. राग–द्वेष वगेरेमां एवुं विभुत्व नथी के ते आत्माना समस्त भावोमां व्यापे. आत्माना विभुत्वमां
रागादि भावो खरेखर व्यापता ज नथी; एक समयनी राग पर्याय श्रद्धा–ज्ञान–चारित्र वगेरे बधा गुणोमां
व्यापी शकती नथी; जो राग त्रिकाळी गुणमां व्यापक थई जाय तो तो ते कदी जुदो पडी शके नहि. एक समय
पूरतो राग बीजा गुणोमां तो नथी व्याप्यो, पण अखंड चारित्रगुणमां पण ते व्याप्यो नथी. ज्यारे आत्मानी
श्रद्धा, ज्ञान, चारित्र, जीवत्व, अस्तित्व वगेरे शक्तिओ तो बधा गुणोमां त्रिकाळ फेलायेली छे.–आवो आत्मानी
विभुता–शक्तिनो वैभव छे; तेने जाणतां रागादि भावो प्रत्येनो उत्साह लूखोलस थई जाय छे, ने रुचिनो
उत्साह त्रिकाळी स्वभाव तरफ वळी जाय छे.
पोताना भावोमां सर्वव्यापक छे, पोताना अनंतगुण–पर्यायस्वरूपमां आत्मा व्यापेलो छे. बहारमां सर्वथी भिन्न
ने अंतरमां सर्वव्यापक–एवो आत्मानो विभुत्व–स्वभाव छे. आत्मानो महिमा बहारमां क्षेत्रनी विशाळताथी
नथी, आत्मानुं क्षेत्र मर्यादित होवा छतां तेनुं स्वभावसामर्थ्य अचिंत्य–अमर्यादित छे, तेना वडे ज आत्मानो
महिमा छे. जेने अंतरना स्वभावमहिमानुं भान नथी एवा बाह्यद्रष्टि जीवो ज बहारमां सर्वव्यापकताथी
आत्मानो महिमा माने छे, पण आत्मा परमां कदी व्यापतो ज नथी.
राग आखा आत्मामां व्याप्यो नथी ने आत्मा रागमां व्याप्यो नथी.
निर्मळ पर्याय आत्मामां एक समय पूरती व्यापक छे पण ते त्रिकाळ व्यापक नथी.
अस्तित्व वगेरे गुणो छे ते तो आत्मामां त्रिकाळ व्यापक छे. द्रव्य ‘छे’ गुण ‘छे’ पर्याय ‘छे’ श्रद्धा
व्यापक छे. आ रीते विभुत्वशक्तिनुं स्वरूप जाणतां त्रिकाळी आत्मा ज लक्षमां आवी जाय छे. त्रिकाळी तत्त्वनी
सामे जोईने तेनी शक्तिओनो यथार्थ निर्णय थाय छे.
पोतामां रहीने त्रणकाळ त्रणलोकने जाणे छे. आखुं तत्त्व एकरूप थईने पोतामां अखंड व्यापकपणे रह्युं छे, एकेक
शक्ति पण आखा तत्त्वमां व्यापीने पडी छे. सर्वभावोमां प्रसरवा छतां एक भावरूप रहे एवुं विभुत्व छे; अनंत
भावोमां व्यापेलो होवा छतां आत्मा एकपणे ज रहे छे. एकपणे रहीने अनंतमां व्यापे छे पण अनंतरूप थई
जतो नथी. तेम ज ज्ञान, दर्शन वगेरे दरेक गुणो पण पोत–पोतानुं एकपणुं राखीने आखा आत्मामां व्यापेला छे,
एक गुण अनंतगुणोमां व्यापी रह्यो छे. अस्तित्व बधा गुणमां व्यापक, ज्ञान बधा गुणमां व्यापक, आनंद बधा
गुणमां व्यापक–ए प्रमाणे अनंती शक्तिओनुं विभुत्व समजी लेवुं. ‘विभुत्वशक्ति’ तो एक छे. पण तेणे आखा
आत्माने अने बधा गुणोने विभुता आपी छे; जेम अस्तित्वगुणथी बधा