जेठः २४७८ः १प९ः
अस्तिरूप छे तेम विभुत्वशक्तिथी बधा विभुस्वरूप छे.
एक गुण बीजा अनंत गुणोमां व्यापे छे ने एक गुणमां बीजा अनंतगुणो व्यापे छे. कोई एक गुण
एवो नथी के ज्यां बीजा गुणो व्याप्या न होय. जुओ, आ आत्माना अंतरंग समाजनो संप! अनंत गुणोनो
समाज परस्पर व्यापीने त्रिकाळ केवो संपीने रह्यो छे! ज्ञानगुण सर्वमां व्यापक छे एवी ज्ञाननी विभुता छे,
अस्तित्वगुण सर्वमां व्यापक छे एवी सत्तानी विभुता छे. अस्तित्वमां जो ज्ञान न होय तो अस्तित्व अचेतन
ठरे; अने ज्ञानमां जो अस्तित्व न होय तो ज्ञान अभावरूप ठरे. तेम ज आनंदमां जो ज्ञान न होय तो
आनंदगुण ज्ञानवगरनो जड थई जाय, अने जो ज्ञानमां आनंद न होय तो ज्ञान आनंद वगरनुं लूखुंलस थई
जाय.–एम बधा गुणो एकबीजामां व्यापी रह्या छे. पुण्य–पापना विकारीभावो तो एक गुणनी एक समयपूरती
पर्यायमां ज व्यापक छे, बीजा अनंत गुणोमां के बीजा समयनी पर्यायमां ते विकारीभावो व्यापता नथी; माटे
विकारमां विभुत्व नथी, विकार वस्तुनुं स्वरूप नथी. अनंता गुणोमां एक गुण व्यापक ने एक गुणमां अनंता
गुणो व्यापक–आवो आत्मगुणोनो समाज छे.
अस्तित्व बधामां व्यापीने बधाने अस्तिपणे राखे छे,–जेम के ज्ञाननुं अस्तित्व, आनंदनुं अस्तित्व,
वगेरे.
वस्तुत्व बधामां व्यापीने बधा गुणोना प्रयोजनने सिद्ध करे छे,–जेम के ज्ञाननुं प्रयोजन जाणवुं ते,
आनंदनुं प्रयोजन अनाकुळ आह्लाद आपवो ते, वगेरे.
द्रव्यत्वगुण बधामां व्यापीने बधाने परिणमावे छे,–जेम के ज्ञाननुं परिणमन, आनंदनुं परिणमन,
वगेरे. आत्मद्रव्य परिणमतां तेना बधा गुणोनुं परिणमन थई जाय छे.
प्रमेयत्वगुणे बधामां व्यापीने बधा गुणोने प्रमेयरूप बनाव्या; चेतनाए बधामां व्यापीने बधाने
चेतनरूप बनाव्या; विभुत्वे बधामां व्यापीने बधाने व्यापकरूप बनाव्या.
–ए प्रमाणे एक विभुत्वशक्तिने स्वीकारतां अनंतगुणनो अखंड समाज ऊभो थाय छे. एवा
अखंडतत्त्वनी द्रष्टि ते ज धर्मीनी द्रष्टि छे. धर्मी जीव एकेक समयनी पर्यायने के एकेक शक्तिना भेद पाडीने
मुख्यपणे नथी जोतो, पण त्रिकाळी तत्त्वने ज मुख्यपणे जुए छे, धर्मीनी द्रष्टि त्रिकाळी तत्त्व उपर थंभी गई छे.
एक घरमां रहेनारा दस माणसो एकबीजामां व्यापी शकता नथी पण चैतन्यघरमां रहेनारा अनंतगुणो
एक बीजामां व्यापक छे. एक ज घरमां रहेनारा दस माणसोमां तो कोई कयांयथी आव्यो होय ने कोई कयांयथी
आव्यो होय, तथा अल्पकाळमां कोइ कयांक चाल्यो जाय ने कोई कयांय चाल्यो जाय, त्यां तो कोईने कोई साथे
लागतुं वळगतुं नथी, बधा जुदेजुदां ज छे; परंतु आत्माना अनंतगुणो तो त्रिकाळ भेगां ने भेगां ज रहेनारा
छे, कदी जुदा पडता नथी. आत्मामां एवो कोई गुण नथी के जेनामां संसारभाव व्यापे, संसारभावने उत्पन्न
करीने तेमां व्यापे एवुं आत्माना कोई गुणनुं स्वरूप नथी.
जेम सोनामां तेनी पीळाश बधे व्यापक छे, चीकाश बधे व्यापक छे. वजन बधे व्यापक छे, तेम
चैतन्यधातुमां अनंतगुणो सर्वव्यापक छे. ने चैतन्यवस्तु एक पिंड पणे सर्वगुणोमां व्यापेली छे, आवी
आत्मानी विभुता छे. ‘एक आत्मा क्षेत्रथी सर्वव्यापक विभु छे अर्थात् जड अने चेतन समस्त पदार्थोमां
विभुनो वास छे’–एम अज्ञानी कहे छे; पण अहीं तो एक आत्मा पोताना अनंत गुणोमां सर्वव्यापक रहीने,
जड–चेतन बधानो जाणनार विभु छे–एम श्री सर्वज्ञ कहे छे.
अस्तित्वने मुख्य करीने जुओ तो आत्माना बधा गुणोमां अस्तित्वपणुं भासे, जीवत्व शक्तिने मुख्य
करीने जोतां बधा गुणोमां जीवत्व भासे, ज्ञानने मुख्य करीने जोतां बधा गुणोमां ज्ञान भासे, आनंदने मुख्य
करीने जोतां बधा गुणोमां आनंद भासे; एम एक गुण साथे ज अनंतगुणनो पिंड संकळायेलो छे. एक गुणनो
भेद पाडीने लक्षमां लेवो ते रागनो विकल्प छे, अनंतगुणना अभेदपिंडने लक्षमां लेवो तेमां वीतरागता छे.
जुओ, आंख–कान वगेरे ईंद्रियो बंध करीने पण अंतरमां ‘हुं ज्ञान छुं, हुं सहज आनंद छुं’ एम
विचार थाय छे ने! ते विचार कोण करे छे? कई सामग्रीथी ते विचार करे छे? विचार करनारो एटले के ज्ञान
करनारो आत्मा पोते ज छे; बाह्य सामग्रीनो अभाव होवा छतां अंतरमां अखंड स्वभावसामग्री पडी छे तेना
अवलंबने पोते विचार करे छे. आत्माना अंतरमां कांई आंख–कान वगेरे ईंद्रियो नथी. बाह्य