काळ उपर लक्ष नहि देतां अनंत गुणनो अखंड पिंड पोतापणे त्रिकाळ टकनारो, वर्तमानमां पूर्ण शक्तिरूप, धु्रव
छे, तेने लक्षमां लेवो, तेनामां त्रणे काळनी अनंत शक्ति वर्तमानमां अभेदपणे भरी पडी छे. आवा अखंड
द्रव्यस्वभावनी द्रष्टि ते ज सम्यग्द्रष्टि छे.
अखंड ज्ञायकपणे जे जणायो ते ज परमार्थस्वरूप आत्मा छे. ते ज्ञायकपणे जणायो ते ज हुं छुं–एम अंतरथी
मानवुं ते सम्यग्दर्शन छे. हुं अखंड ज्ञायकज्योत एकरूप छुं, अनंतकाळ टकनार वर्तमानमां परिपूर्ण छुं–एम
प्रगट शुद्ध ज्ञायकभावने लक्षमां लईने अंतरमां अनुभवथी जाणवुं ते सम्यग्ज्ञान छे. आमां जे कांई गूढ हतुं ते
घणुं स्पष्ट करीने कह्युं छे, पण हाथमां लईने बतावाय तेवुं नथी; केमके वस्तु तो अंर्तअनुभवनो विषय छे.
प्रीतिथी सांभळी पण नथी, तेथी समजवुं मुश्केल लागे छे. पण ‘समज पीछे सब सरल है.’ सम्यग्दर्शन
प्रगटवा माटे शरूआतमां ज समजवानी आ वात छे. वर्तमानमां दरेक समये आत्मा पूर्ण स्वरूप होवाथी तेने ज
श्रद्धानो विषय (लक्ष्य–ध्येय) बनावी शुद्ध अखंडपणे लक्षमां लेवा जेवो छे. ते शुद्ध आत्मा ज सम्यग्दर्शननो
विषय छे. वर्तमान विकारी अवस्था तथा अधूरी निर्मळ पर्याय तेने गौण करीने, वर्तमान वर्तती एक एक
अवस्था साथे ज दरेक समयमां अनंत चैतन्यशक्तिरूपे जे आखो सामान्य धु्रव स्वभाव छे ते धर्मी जीवनी
द्रष्टिनो विषय छे. तेना उपर द्रष्टि करीने तेने लक्षमां लेवो ते सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञान छे, अने ते ज
धर्मीजीवनुं महत्वनुं कार्य छे.
अलौकिक वस्तु छे. अनंत काळथी स्वभावनी वात समजाणी
नथी, एटले वस्तुनो परम गंभीर महिमा लावी, लक्ष राखी
समजवुं जोईए. वस्तुनी श्रद्धा विना सम्यग्ज्ञान–चारित्र होय
शके नहि. ‘आ अघरुं छे माटे न समजाय’ ए वात काढी
नांखजो. अनादिनो अणअभ्यास छे तेथी आत्मस्वरूप समजवुं
मोंघुं लागे छे; पण जो तेनो परम महिमा लावीने समजवा
मांगे तो स्वविषय छे तेथी समजाय ज.