Atmadharma magazine - Ank 105
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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ः १७८ः आत्मधर्मः १०प
“मानस्तंभनी मंगल–भेरी”
(अहो! जैनधर्मनो वैभव!)
* * *
सुवर्णपुरी–तीर्थधाममां वैशाख वद सातमना रोज श्री
मानस्तंभजीनुं शिलान्यासमूहूर्त थयुं; ते मंगल प्रसंगे
मानस्तंभनो महिमा बतावनारुं पू. गुरुदेवश्रीनुं खास प्रवचन.
मानस्तंभ ते शुं छे? क्यां क्यां छे? मानस्तंभनो संयोग कोने
होय? अध्यात्मद्रष्टि साथे मानस्तंभनो मेळ कई रीते छे?–
इत्यादि अनेक रहस्य आ प्रवचनमां खुल्लां कर्या छे.
* * *
जे अहीं मानस्तंभना शिलान्यासनुं मुहूर्त थयुं. मानस्तंभ ते शुं चीज छे तेनी केटलाक जीवोने खबर
नथी एटले तेमने नवीनता लागे छे. श्री तीर्थंकर भगवाननी धर्मसभामां चारे बाजु मानस्तंभ होय छे अने
तेने देखतां ज मिथ्याद्रष्टि जीवोनुं अभिमान गळी जाय छे.
आत्माना ज्ञानानंद स्वभावनुं भान थया पछी हजी पूर्ण वीतरागता न थई होय त्यां राग होय
छे, ने ते रागथी कोई जीवने तीर्थंकरनामकर्म बंधाई जाय छे. तीर्थंकर थनार होय ते जीवने ज आवा
प्रकारना परिणाम आवे छे. कोई पूछे के–केम? तो एनुं कोई कारण नथी; ते जीवने कांई पूर्वे
तीर्थंकरनामकर्म बंधायेलुं नथी के जेना उदयथी तीर्थंकरनामकर्मना परिणाम थाय. जे जीव तीर्थंकर थवानो
होय तेने सम्यग्दर्शन पछी एवा प्रकारना परिणाम थई जाय छे. सम्यग्दर्शन पछी पण बधा जीवोने
एकसरखा परिणाम होता नथी. तीर्थंकरनो जीव ज एवो छे के तेने एवा प्रकारना शुभ परिणाम थाय छे
ने तीर्थंकरप्रकृति बंधाय छे. त्यारपछी ते राग टळीने केवळज्ञान थया पछी ते तीर्थंकरप्रकृतिनो उदय आवे
छे, त्यारे इन्द्रो आवीने दैवी समवसरण रचे छे, तेमां चारे बाजु मानस्तंभ होय छे. ते समवसरणनो
अहीं तो नमूनो छे. महाविदेहक्षेत्रमां अत्यारे श्री सीमंधर परमात्मा तीर्थंकरपणे बिराजे छे त्यां ईंद्रोए
रचेलुं समवसरण छे ने तेमां चार मानस्तंभो छे. ते मानस्तंभ मिथ्याद्रष्टि–मानी जीवोनुं अभिमान गाळी
नांखे छे. अहीं भगवानने एवी पुण्यप्रकृतिनो उदय छे ने सामा जीवना परिणामनी तेवी लायकात छे.
भले मिथ्याद्रष्टिनो मिथ्यात्वभाव कदाच न छूटे, पण मानस्तंभ वगेरे धर्मवैभव जोतां ज एक वार तो
तेने तीर्थंकर भगवाननुं बहुमान आवी जाय के अहो! आ पुरुष कोई जुदी जातनो अलौकिक छे! आम
बहुमान आवतां तेनुं अभिमान गळी जाय छे.
तीर्थंकर भगवानने केवळज्ञान थतां ईंद्रो आवीने समवसरण रचे छे, तेमां मानस्तंभ वगेरेनी अलौकिक
रचना करे छे; पछी पोते ज रचेलां ते समवसरणनी अलौकिक शोभा निहाळतां देवो पण आश्चर्यमां पडी जाय छे
के अहो! आवी अद्भुत रचना!! आ रचना अमे करी नथी, भगवानना पुण्यप्रतापे ज आ रचना थई गई
छे. भगवान तो वीतराग छे, तेमने समवसरण साथे कांई लेवा–देवा नथी. जेने अंदरमां चैतन्यनी ऋद्धिनुं
भान थयुं होय तेने ज आवा पुण्य बंधाय छे. भगवानने अंदरमां तो केवळज्ञान अने अनंत आनंदनी विभूति
प्रगटी छे ने बहारमां समवसरणनी विभूतिनो पार नथी.
भगवान महावीर परमात्मा ज्यारे आ भरतक्षेत्रमां तीर्थंकरपणे विचरता हता त्यारे अहीं पण
समवसरण रचाता अने तेमां मानस्तंभ हता; तेने देखीने मानीनां मान गळी जता हता. भगवानने केवळज्ञान
थया पछी ईंद्रोए समवसरण रच्युं, पण छांसठ दिवस सुधी भगवाननी दिव्यवाणी न छूटी. त्यारे ईंद्र अवधि–