मानस्तंभनो महिमा बतावनारुं पू. गुरुदेवश्रीनुं खास प्रवचन.
मानस्तंभ ते शुं छे? क्यां क्यां छे? मानस्तंभनो संयोग कोने
होय? अध्यात्मद्रष्टि साथे मानस्तंभनो मेळ कई रीते छे?–
इत्यादि अनेक रहस्य आ प्रवचनमां खुल्लां कर्या छे.
तेने देखतां ज मिथ्याद्रष्टि जीवोनुं अभिमान गळी जाय छे.
प्रकारना परिणाम आवे छे. कोई पूछे के–केम? तो एनुं कोई कारण नथी; ते जीवने कांई पूर्वे
तीर्थंकरनामकर्म बंधायेलुं नथी के जेना उदयथी तीर्थंकरनामकर्मना परिणाम थाय. जे जीव तीर्थंकर थवानो
होय तेने सम्यग्दर्शन पछी एवा प्रकारना परिणाम थई जाय छे. सम्यग्दर्शन पछी पण बधा जीवोने
एकसरखा परिणाम होता नथी. तीर्थंकरनो जीव ज एवो छे के तेने एवा प्रकारना शुभ परिणाम थाय छे
ने तीर्थंकरप्रकृति बंधाय छे. त्यारपछी ते राग टळीने केवळज्ञान थया पछी ते तीर्थंकरप्रकृतिनो उदय आवे
छे, त्यारे इन्द्रो आवीने दैवी समवसरण रचे छे, तेमां चारे बाजु मानस्तंभ होय छे. ते समवसरणनो
अहीं तो नमूनो छे. महाविदेहक्षेत्रमां अत्यारे श्री सीमंधर परमात्मा तीर्थंकरपणे बिराजे छे त्यां ईंद्रोए
रचेलुं समवसरण छे ने तेमां चार मानस्तंभो छे. ते मानस्तंभ मिथ्याद्रष्टि–मानी जीवोनुं अभिमान गाळी
नांखे छे. अहीं भगवानने एवी पुण्यप्रकृतिनो उदय छे ने सामा जीवना परिणामनी तेवी लायकात छे.
भले मिथ्याद्रष्टिनो मिथ्यात्वभाव कदाच न छूटे, पण मानस्तंभ वगेरे धर्मवैभव जोतां ज एक वार तो
तेने तीर्थंकर भगवाननुं बहुमान आवी जाय के अहो! आ पुरुष कोई जुदी जातनो अलौकिक छे! आम
बहुमान आवतां तेनुं अभिमान गळी जाय छे.
के अहो! आवी अद्भुत रचना!! आ रचना अमे करी नथी, भगवानना पुण्यप्रतापे ज आ रचना थई गई
छे. भगवान तो वीतराग छे, तेमने समवसरण साथे कांई लेवा–देवा नथी. जेने अंदरमां चैतन्यनी ऋद्धिनुं
भान थयुं होय तेने ज आवा पुण्य बंधाय छे. भगवानने अंदरमां तो केवळज्ञान अने अनंत आनंदनी विभूति
प्रगटी छे ने बहारमां समवसरणनी विभूतिनो पार नथी.
थया पछी ईंद्रोए समवसरण रच्युं, पण छांसठ दिवस सुधी भगवाननी दिव्यवाणी न छूटी. त्यारे ईंद्र अवधि–