Atmadharma magazine - Ank 105
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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अषाढः २४७८ः १७९ः
ज्ञानथी जोयुं के गौतमब्राह्मण छे ते भगवानना प्रथम गणधर थवाना छे अने तेनी सभामां गेरहाजरी छे.
पछी ब्राह्मणनो वेष लईने गौतमने वादविवादना बहाने समवसरणमां तेडी लावे छे. ते वखते तो गौतम हजी
मिथ्याद्रष्टि छे. पण समवसरण नजीक आवीने मानस्तंभ देखतां ज तेनुं बधुं अभिमान गळी जाय छे, अने
‘अहो! आवी आश्चर्यकारी विभूति! आ पुरुष कोई जुदी जातना छे’ एम भगवाननुं बहुमान आवे छे ने
तेमनी स्तुति करे छे. पछी सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र प्रगट करीने भगवानना गणधर बने छे, ने बारअंग
चौदपूर्वनी रचना करे छे. अत्यारे महाविदेहक्षेत्रमां सीमंधरादि वीस तीर्थंकर भगवंतो विचरे छे, तेमना
समवसरणमां मानस्तंभ साक्षात् मोजूद छे.
आ मध्यलोकमां असंख्य द्वीप–समुद्रो छे; तेमां अहींथी आठमो ‘नंदीश्वर’ नामनो द्वीप छे. ते नंदीश्वर
द्वीपमां शाश्वत जिनमंदिरो छे अने ते मंदिरोनी सामे शाश्वत मानस्तंभो छे. जेम सर्वज्ञ परमात्मा मनुष्यलोकमां
सदाय होय ज छे, तेनो कदी विरह थतो नथी तेम ते परमात्मानी प्रतिमा पण जगतमां शाश्वत छे.
नंदीश्वरद्वीपमां रत्नमणिना शाश्वत जिनबिंबोनी सामे मानस्तंभो छे तेने शास्त्रमां ‘धर्मवैभव’ कहीने वर्णव्या
छे. जुओ, आ मध्यलोकमां नंदीश्वरद्वीपमां शाश्वत जिनमंदिरो अने शाश्वत मानस्तंभो छे, त्यांनी शोभानो पार
नथी; वर्षमां त्रणवार कारतक, फागण अने अषाड मासमां आठमथी पूनम सुधी देवो त्यां भक्ति करवा जाय छे
अने महोत्सव ऊजवे छे.
श्री नेमिचन्द्र सिद्धांतचक्रवर्ती महा दिगंबर संत हता, छठ्ठा–सातमा गुणस्थाने वीतरागी आनंदमां
झूलता हता; तेमणे ‘त्रिलोकसार’ शास्त्रमां त्रणलोकनी रचनानुं वर्णन कर्युं छे. तेमां नंदीश्वरद्वीपनुं वर्णन करतां
त्यांना मानस्तंभने ‘धर्मविभव’ कह्या छे. परमार्थवैभव तो आत्मामां छे, अनंतगुणोना निजवैभवथी आत्मा
परिपूर्ण छे; अने बहारमां नंदीश्वरद्वीप वगेरेमां जे शाश्वत जिनबिंब तथा मानस्तंभ वगेरे धर्मविभव छे ते
नजरे जोवानुं भाग्य देवोने ज मळे छे, मनुष्यो त्यां थई शकता नथी. समवसरण, मानस्तंभ वगेरे धर्मवैभव
जोवानुं भाग्य पुण्यवंत जीवोने ज सांपडे छे, पुण्य वगर एवो धर्मवैभव जोवा मळतो नथी.
आ पृथ्वीनी नीचे भवनपति तेम ज व्यतंर देवोना निवासस्थान आवेला छे, त्यां पण शाश्वत
जिनमंदिरो अने जिनप्रतिमाओ छे, तेनी सामे शाश्वत मानस्तंभो छे.
आ रीते पहेलां मध्यलोकना मानस्तंभनी वात करी, ने पछी अधोलोकना मानस्तंभनी वात करी,
ऊर्ध्वलोकमां पण मानस्तंभ छे तेनी वात हवे कहेवाय छे.
ऊर्ध्वलोकमां वैमानिक देवलोकमां पण शाश्वत मानस्तंभो छे. तेमां पहेलां सौधर्मस्वर्गनो मानस्तंभ ३६
योजन ऊंचो छे. आवा अनेक मानस्तंभो छे. ते मानस्तंभना उपर–नीचेना लगभग छ–छ योजन छोडीने
वच्चेना २४ योजनमां रत्ननी सांकळथी लटकता पटारा छे, तेमां तीर्थंकरो माटेना आभुषणो रहे छे. ईंद्र तेमांथी
आभूषणो लईने तीर्थंकरने पहोंचाडे छे. जुओ, तीर्थंकरना दागीना पण स्वर्गमांथी आवे छे. तीर्थंकर एवा
पुण्यवंत पुरुष छे के जन्मे त्यारथी ज तेमने शरीरमां अशुचि होती नथी. तीर्थंकरदेव माताना स्तननुं दूध पण
पीता नथी. तेमने माटे दागीना, वस्त्र अने भोजन वगेरे स्वर्गमांथी आवे छे. भगवाने दीक्षा लीधा पहेलांनी
आ वात छे, दीक्षा पछी मुनिदशामां तो वस्त्र के दागीना होता ज नथी.
तीर्थंकरो माटेनां आभरणो स्वर्गना मानस्तंभोमां रहेला छे.
(१) सौधर्मस्वर्गमां जे मानस्तंभ छे तेना पटारामां भरतक्षेत्रना तीर्थंकरोना आभरणो छे.
(२) ईशानस्वर्गमां जे मानस्तंभ छे तेना पटारामां ऐरावतक्षेत्रना तीर्थंकरोना आभरणो छे.
(३) सनत्कुमार स्वर्गमां जे मानस्तंभ छे तेना पटारामां पूर्व–विदेहक्षेत्रना तीर्थंकरोना आभरणो छे.
(४) माहेन्द्रस्वर्गमां जे मानस्तंभ छे तेना पटारामां पश्चिम–विदेहक्षेत्रना तीर्थंकरोनां आभरणो छे.
आ मानस्तंभो देवो द्वारा पण पूज्य छे.
जुओ, आ बधुं शाश्वत छे. आ कांई कल्पना नथी पण सर्वज्ञदेवे ज्ञानमां जोयेली जगतनी वस्तुस्थिति
छे. जगतने आ वात मान्ये छूटको छे. आज माने.....काल माने के भवांतरमां माने,–पण मान्ये छूटको छे.
अहो! जैनधर्मनो वैभव!! जुओ तो खरा, अंदरमां चैतन्यस्वभावनो परम अद्भुत वैभव ने बहारमां